पूर्व बर्दवान, मुकेश तिवारी. पूर्व बर्दवान जिले के आउसग्राम दो ब्लॉक के देवशाला ग्राम पंचायत अधीन घने जंगल के मध्य अवस्थित है लवनधारा ग्राम .जो कभी नक्सलियों से प्रभावित था. जिस गांव के नाम और उस गांव में जाने से लोग भय पाते थे ,वही गांव आज अपने चित्रकारी के माध्यम से लोगों को अपनी और आकर्षित करने में लगा हुआ है.
समूचे गांव में चित्रकारी के माध्यम से लोगों को जागरूक करने की कोशिश की जा रही है. गांव में मौजूद नव निर्मित अन्नपूर्णा मंदिर की कि गई सजावट पौराणिक कथाओं को चित्रकारी के माध्यम से सुसज्जित किया गया है.
गांव के ही युवक मिथुन मंडल ने बताया की आज से तीन चार वर्ष पूर्व मंदिर के नव निर्माण के बाद यह विचार आया की समाज और आने वाली पीढ़ी को एक ऐसा संदेश दिया जाए जिससे उन्हें जागरूकता के साथ ही धर्म संस्कृति और इतिहास और पर्यावरण के संबंध में बोध कराया जा सके. यही कारण है की इस गांव में प्रत्येक घर के बाहर की दीवारों पर चित्रकारी के मार्फत यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है.
उन्होंने बताया की हमलोगों का एक संस्था है जिसके माध्यम से हम लोग जंगल की रक्षा करते है और लोगों को जंगल की रक्षा उनमें रहने वाले वन्य प्राणीयों की रक्षा कर सके इसे लेकर सचेतनता के साथ जागरूक करते है.इसके साथ ही आदिवासियों के सांस्कृतिक शिक्षा पर हमलोग काम करते है.
अन्नपूर्णा वेलफेयर एसोसिएशन के माध्यम से पहले नव निर्मित मंदिर को पौराणिक चित्रकारी से सुसज्जित किया गया. जिसमें बाहर से आए कई कलाकारों ने इस दिशा में मदद की. मिथुन मंडल आदि के नेतृत्व में कोटा ग्राम में एक वार्कसॉप भी आयोजित हुआ था.
इस वर्ष जीवन दाई अरण्य 2023 के तहत वन्य संरक्षण जंगल में आग लगने के कारण और उपाय विषय पर चित्रकारी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया. लवनधारा अन्नपूर्णा वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा तीन दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किए गए.मूल उधोक्ता तारक दत्त, मिथुन मंडल तथा मानकर कॉलेज के प्रोफेसर अर्नव घोष के नेतृत्व और तत्वाधान में ही इस गांव की रूप रेखा तैयार कर यह रूप दिया गया है.
यहां उड़ीसा, झारखंड, बंगाल समेत देश के अन्य प्रांतों के चित्रकार आकार गांव के प्रत्येक दीवारों पर इन चित्रों को गढ़े है. अब लवनधारा ग्राम अलापना ग्राम के नाम से भी प्रसिद्ध हो गया है. बताया जाता है की कभी 1970 के दौरान कभी यह ग्राम नक्सलियों का गढ़ हुआ करता था.
तत्कालीन राज्य सरकार की पुलिस वाहिनी के साथ यहां नक्सलियों की तब कई बार मुठभेड़ भी हुई थी. नक्सल प्रभावित इस गांव को नक्सल मुक्त करने और बचे हुए नक्सलियों को सामाजिक मूल धारा में जोड़ने की कोशिश सफल हुए थी. जो गांव कभी नक्सल के आतंक से प्रभावित था लोग इसे अन्य नजर से देखते थे लेकिन धीरे-धीरे समाज के मूल धारा में आने के बाद यहां नक्सल पूरी तरह से शेष हो गए हैं.
अब यह गांव अपने इस अनोखे अंदाज के लिए जाना जा रहा है. इस गांव की भूमि पर विश्व भारती, रविंद्र भारती, कल्याणी यूनिवर्सिटी, बर्दवान विश्वविद्यालय समेत उड़ीसा ,झारखंड ,बिहार से करीब 48 आर्टिस्ट कलाकार स्वय आकर यहां पर एक से बढ़ कर एक चित्रकारी कर गए है.
बताया जाता है यह सिलसिला लगातार जारी रहता है. इन प्रत्येक चित्रकारी से एक संदेश दिया जा रहा है. ये बड़े और सुनामी चित्रकार यहां इस गांव में आते है और नए नए विषयों के आधार पर इस गांव के मूल स्वरूप के अनुसार लोगों को जागरूक करने की कोशिश करते हैं.
इस चित्रकारी या चित्र प्रदर्शनी के द्वारा गांव के प्रत्येक घर की दीवार पर यह चित्र प्रदर्शनी विभिन्न विषयों को उजागर करती है लेकिन इन सबके बीच जो मूल विषय रहता है जंगल की रक्षा और वन्य प्राणियों की रक्षा करना. विश्व को बचाने के लिए अरण्य रहे सबसे ऊपर.