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किसानों का हाल बेहाल, झारखंड में 50 साल बाद भी डैमों का निर्माण अधूरा

झारखंड में 50 साल बाद भी कई डैमों का निर्माण पूरा नहीं हो सका. इसका सीधा असर किसानों पर पड़ रहा है. हर साल-दो साल में सुखाड़ की मार झेलनेवाले किसानों की खेतों को आवश्यकतानुसार पानी नहीं मिल रहा है.

राज्य में 50 साल बाद भी कई डैमों का निर्माण पूरा नहीं हो सका. वहीं दर्जन भर डैमों का निर्माण कई दशक से अधूरा पड़ा है. जो डैम बन कर तैयार हैं, उनका भी हाल दिन पर दिन बदतर होता जा रहा है. डैमाें की सिंचाई क्षमता में लगातार कमी आ रही है. जीर्णोद्धार के नाम पर करोड़ों खर्च के बाद भी डैमों का कैचमेंट क्षेत्र कम हो रहा है. नहरें सूख रही हैं. इसका सीधा असर किसानों पर पड़ रहा है. हर साल-दो साल में सुखाड़ की मार झेलनेवाले किसानों की खेतों को आवश्यकतानुसार पानी नहीं मिल रहा है.

डैमों से शहरी क्षेत्रों में पेयजलापूर्ति की सुविधा देने का विरोध शुरू हो गया है. जल संसाधन विभाग राज्य में लगभग 10 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की सुविधा का दावा करता है. जबकि राज्य में 29.74 लाख हेक्टेयर खेती योग्य जमीन है. राज्य में कुल 31 सिंचाई परियोजनाएं हैं, जिसमे से नौ वृहत सिंचाई परियोजनाएं हैं. इन सिंचाई परियोजनाओं के निर्माण में हुई देर का खामियाजा राज्य को भुगतना पड़ रहा है.

सिंचाई योजना – शुरू हुई – खर्च (करोड़ रुपये में) – सिंचाई क्षमता (हेक्टेयर में)

  • स्वर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना – 1978 – 6639.56 – 10465

  • कोनार सिंचाई परियोजना – 1975 – 498.65 – 54435

  • पुनासी जलाशय परियोजना – 1982 – 506.02 – 22089

  • गुमानी बराज परियोजना – 1976 – 180.0 – 16194

  • अमानत बराज परियोजना – 1974 – 317.60 – 26990

  • शहीद नीलांबर-पीतांबर उत्तरी – 1970 – 102.97 – 22104

  • कोयल जलाशय परियोजना – 1970 – 102.97 – 22104

  • रामरेखा जलाशय योजना – 1987 – 50.48 – 4405

  • नकटी जलाशय योजना – 1983 – 29.92 —-

  • बटाने जलाशय योजना 1975 234.08 2360

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