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झारखंड में एनीमिया को दूर भगाएगा गुमला का मड़ुआ, डायबिटीज मरीजों को भी मिलेगा लाभ, जानें कैसे

गुमला में मड़ुआ से बने आटे, नूडल्स, लड्डू और हलुवा से एनीमिया पीड़ित और डायबिटीज मरीजों को काफी लाभ मिलेगा. यह राज्य का पहला जिला होगा जहां इसकी पहल हुई है. इस जिले में पहले 1500 हेक्टेयर में खेती होती थी. इस साल 10 हजार हेक्टेयर में इसकी खेती होगी. इसमें कैल्शियम और आयरन पाये जाते हैं.

गुमला, जगरनाथ : गुमला जिले में मड़ुआ से नूडल्स, आटा, लड्डू और हलुवा बनेगा. गुमला राज्य का पहला जिला है, जहां इस प्रकार की पहल हुई है. मड़ुआ स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद है. इसलिए प्रशासन इसकी खेती पर विशेष ध्यान दे रही है. इससे किसानों की आर्थिक स्थिति भी मजबूत होगी. गुमला जिले में इस साल खरीफ मौसम में 10 हजार हेक्टेयर भूमि पर रागी (मड़ुआ) का उत्पादन कराने की योजना है.

रागी में कैल्शियम और आयरन भरपूर मात्रा में उपलब्ध

डीसी सुशांत गौरव के निर्देश पर मिशन रागी अंतर्गत जिला कृषि विभाग गुमला रागी उत्पादन के लिए योजना बनाकर काम कर रहा है. मिशन रागी का उद्देश्य रागी के उत्पादन से किसानों की आर्थिक उन्नति के साथ ही रागी से जिले से एनीमिया (कुपोषण) की समस्या को दूर करना है. रागी में कैल्शियम और आयरन भरपूर मात्रा में होता है. रागी के आटे से बनी रोटी, लड्डू, हलवा, नूडल्स समेत अन्य प्रकार से खाने में उपयोग करने से एनीमिया की शिकायत दूर होती है.

रागी एक बेहतर विकल्प

एनीमिया पीड़ित लोग विशेषकर बच्चों में खून की कमी की समस्या को दूर करने के लिए रागी एक बेहतर विकल्प है. डायबिटीज मरीजों के लिए भी रागी फायदेमंद हैं. जिले में एनीमिया की काफी शिकायत है. जिले के प्राय: सरकारी अस्पतालों में एनीमिया पीड़ित मरीज इलाजरत हैं. डीसी ने इस समस्या को दूर करने के लिए रागी को एक बेहतर विकल्प के रूप में चयन करते हुए मिशन रागी के तहत पिछले साल से काम शुरू कराया है.

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1500 हेक्टेयर भूमि में रागी की खेती

पिछले साल से पहले तक जिले में 1500 हेक्टेयर भूमि में रागी की खेती होती रही है, लेकिन विगत वर्ष डीसी की पहल पर रागी के उत्पादन में वृद्धि हुई. बीते वर्ष लगभग 3500 हेक्टेयर भूमि पर रागी का उत्पादन हुआ. उक्त उत्पादित रागी को प्रशासनिक स्तर पर खरीदारी की गयी. खरीदे गये रागी का प्रोसेसिंग का काम शुरू हो गया है. रागी को पीस कर आटा और लड्डू बनाया जा रहा है, जिसे आंगनबाड़ी केंद्र एवं एमटीसी केंद्रों में भोजन के रूप में परोसा जायेगा. इस निमित इस साल 10 हजार हेक्टेयर भूमि पर रागी का उत्पादन करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. इसके लिए कृषि विभाग द्वारा राज्य से 50 मीट्रिक टन रागी बीज की मांग की गयी है.

रागी खेती में लागत और पानी दोनों कम

जिला कृषि पदाधिकारी (डीएओ) अशोक कुमार सिन्हा ने बताया कि रागी कम लागत और कम पानी में भी उत्पादित होने वाली फसल है. रागी में जितने गुण हैं, उसे खाने से उतने ही फायदे भी हैं. इसकी खेती करने वाले किसान भी आर्थिक रूप से मजबूत होंगे. इस वर्ष रागी की खेती कराने के लिए राज्य से 50 मीट्रिक टन रागी बीज की मांग हैं. इसके साथ इस वर्ष गुमला में ही रागी बीज के उत्पादन का कार्य करेंगे. प्रयास रहेगा कि 20 मीट्रिक टन तक रागी बीज का उत्पादन स्थानीय स्तर पर ही हो. किसानों के बीच बीते वर्ष की भांति मुफ्त में रागी बीज का वितरण किया जायेगा. डीएओ ने बताया कि रागी उत्पादन के लिए सभी प्रखंडों का लक्ष्य निर्धारित किया जायेगा. इसकी तैयारी चल रही है. सभी प्रखंडों के बीडीओ अपने-अपने प्रखंड में रागी की खेती कितने क्षेत्र में होगी. इसकी समीक्षा कर रिपोर्ट बना रहे हैं. उन्होंने बताया कि किसानों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चला रहे हैं. साथ ही रागी से होनेवाले फायदों के बारे में जानकारी देते हुए किसानों को अधिक से अधिक रागी की खेती करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

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