इंडियन मैथोलाॅजी में असुरों को पराजितों की तरह दिखाया गया है, यही वजह है कि उनके बारे में ज्यादा लिखा नहीं गया है. रावण ऋषि विश्रवा के पुत्र थे, प्रकांड विद्वान थे फिर आखिर ऐसी कौन सी घटना हुई, जिसने रावण को नकारात्मकता से भर दिया. मेरी किताब ‘त्रिलोकपति रावण’ में इन्हीं बातों का जिक्र है.
उक्त बातें साहित्यकार सुशील स्वतंत्र ने आज प्रभात खबर के साथ बातचीत में कही. उन्होंने कहा कि रावण के जीवन में जो कुछ हुआ, वह सबकुछ निगेटिव नहीं था, उसमें अच्छे गुण भी थे, फिर उसपर राक्षसी प्रवृत्ति क्यों हावी हुईं? इसे लेकर रावण का नजरिया क्या था, उसे ध्यान में रखते हुए मैं यह किताब लिखी है. एक तरह से यह किताब रावण के नजरिये से रावण के व्यक्तित्व को बताने का प्रयास है.
मेरी किताब ‘त्रिलोकपति रावण’ का नायक रावण है. हमारे देश में कई ऐसी जगहें हैं जहां रावण की पूजा होती है. झारखंड के असुर जनजाति के लोग रावण को अपना पुरखा मानते हैं. भारतीय मैथोलाॅजी में असुरों पर ज्यादा लिखा नहीं गया है और जो लिखा गया है वह उनके व्यक्तित्व को समझने के लिए काफी नहीं है.
मेरी किताब ‘त्रिलोकपति रावण’ कोई समानांतार विचार क्रियेट नहीं कर रही है, मेरी किताब में भी यही जिक्र है कि रावण ने सीता का हरण किया. लेकिन मैंने अपनी किताब में यह बताने का प्रयास किया है कि आखिर रावण ने सीता का हरण क्यों किया. मेरा ऐसा मानना है कि हर चरित्र और प्रतिचरित्र को अपनी बात कहने का मौका मिलना चाहिए और वही मौका मैंने अपनी किताब के जरिये रावण जैसे उस चरित्र को दिया है, जिसके बारे में यह सच स्थापित है कि वह एक प्रकांड विद्वान था और महान शिवभक्त था.
रावण के किरदार का वर्णन मेरी किताब में तरुणावस्था से है. वह कैसा था, क्या पढ़ा, क्या सीखा. मैंने उसे एक अचानक अवतरित हुए चक्रवर्ती सम्राट के रूप में नहीं दिखाया, बल्कि मैंने यह दिखाया कि चक्रवर्ती सम्राट बनने की तमाम प्रक्रिया क्या थी.
साहित्यकार सुशील स्वतंत्र की किताब ‘त्रिलोकपति रावण’ अपनी कथावस्तु के वजह से काफी चर्चा में है. इस किताब का लोकार्पण दिल्ली में विश्व पुस्तक मेले के दौरान 26 फरवरी को हो रहा है. इस पुस्तक को प्रयागराज के इंक प्रकाशन ने प्रकाशित किया है.
किताब के लेखक सुशील स्वतंत्र मूलत: झारखंड के रामगढ़ जिले के रहने वाले हैं. इनका जन्म 1978 में हुआ है. इन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षा हासिल की है और इनकी रुचि सामाजिक कार्यों में अत्यधिक है. दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण करने के दौरान ही वे झुग्गी बस्तियों में सामाजिक कार्य करने लगे थे. सुशील स्वतंत्र कविता, कहानी, आलेख, ऑडियो शो एवं उपन्यास लिखते हैं. वे हिंदी साहित्य की विस्तृत निर्देशिका ‘हिंदी साहित्यानामा’ के संपादक एवं प्रकाशक हैं. असुर गाथा श्रृंखला की रचना के माध्यम से वे साहित्य जगत में अपने सर्वश्रेष्ठ साहित्यिक योगदान के साथ उपस्थित हुए हैं.
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