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टाइगर श्रॉफ को केले के छिलके पर ट्रेन कर चुके हैं झारखंड के मास्टर राजू दास, रवि किशन भी इनके फैन

राजू दास ने बताया, मेरे बेहतरीन स्टूडेंट्स में से टाइगर श्रॉफ रहा है. उसको 2004 में ट्रेनिंग देनी शुरू की थी.तीन साल तक ये ट्रेनिंग चली थी. एक्टर रंजीत जी के बंगले पर तीन लोगों की ट्रेनिंग के लिए मैं जाता था. एक था टाइगर दूसरा डैनी का बेटा रेंजी और रंजीत का बेटा जीवा.

झारखंड के राजू दास, ग्लैमर इंडस्ट्री के स्टंट की दुनिया का एक परिचित नाम हैं. कई टीवी शो और फिल्मों के एक्शन डायरेक्टर रहे मास्टर राजू दास टाइगर श्रॉफ के गुरु भी रह चुके हैं. अभी भी वह कई एक्टर्स के मार्शल आर्ट ट्रेनर हैं. बीते 27 सालों से मुंबई में संघर्षरत मास्टर राजू दास बताते हैं कि मुंबई ने बहुत देर से मुझे अपनाया,लेकिन अपनाया तो बहुत अच्छे से अपनाया. उनके संघर्ष और सफलता पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.

झारखंड की गरीबी ने कोलकाता में भी पीछा नहीं छोड़ा?

झारखंड के गिरडीह से थोड़ी दूर एक जगह है खिदिसरगांव,वहां पर मेरा जन्म हुआ था. मैं वहां पर पांच से छह साल तक रहा था. उसके बाद मेरा परिवार कोलकाता शिफ्ट हो गया. गांव में हमलोग खेती बारी करते थे. पापा अच्छी जिंदगी के लिए कोलकाता चले गए. वे मिस्त्री का काम कोलकाता में करने लगे, लेकिन वहां भी हमारे हालात नहीं बदले. हम दो भाई और चार बहने थी .जब आप बड़े होते हैं, तो आपको ना चाहते हुए भी जिम्मेदारी लेनी पड़ती है. मैंने चाय की दुकान में 150 रुपये महीने में काम करना शुरू किया फिर पापा के साथ काम करने लगा. वो काम बहुत मुश्किल था. मैं मार्शल आर्टिस्ट बनना चाहता था.

13 साल की उम्र में मैंने मुंबई जाने का फैसला किया

बचपन से ही मेरी मार्शल आर्ट में बहुत रूचि थी, लेकिन घरवाले सपोर्ट नहीं करते थे. पापा कहते थे कि वो सब नहीं सीखना है.काम पर ध्यान दो. मैंने मुंबई आकर कुछ करने का फैसला कर लिया. मुझे पता था कि कुछ बड़ा करना होगा, तो ही घर और मेरे हालात बदलेंगे. मैं मार्शल आर्ट में कुछ करना छाजटा था.कोलकाता से मुंबई एक दोस्त के साथ आया था, लेकिन उसने मुझे दादर स्टेशन पर ही छोड़ दिया था. ये 1996 के आसपास की बात है. कोलकाता से सिर्फ 500 रुपये लेकर निकला था. दो दिन का सफऱ था तो ट्रेन में कुछ दोस्त बन गए थे. वो लोग होटल में काम करते थे. उनके साथ मैं मुंबई के सात बंगला चला गया. वहां चॉल में स्टाफ रूम के नाम पर 10 बाय 10 का कमरा होता था. उसमें रहने वाले पंद्रह लोग थे . होटल बंद होने के बाद जब वे लोग रात 12 के बाद आए तो सभी ने अपनी अपनी जगह ले ली. मेरे लिए जगह नहीं थी मैं बाहर आकर बैठ गया था. कहीं जा नहीं सकता था.500 में से 300 ही बचे थे. रात बैठकर ही गुज़ार दी. सुबह उनके लड़कों की मदद से एक जूस की दुकान में काम ढूंढा. रात में जूस का दुकान बंद होने पर वही पर चटाई बिछाकर सो जाता था और सुबह वहां पर काम करता था.

फिर शुरू हुई मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग

काम मिलने के बाद अपनी मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग शुरू कर दी. यहां पर मुझे एक टीचर मिले अरविन्द डिसिल्वा जिन्होंने मुझे कराटे सिखाया. जूस की दुकान में मुझे 900 रूपया मिलते थे, जिनसे मैं कराटे की फीस भी देता और अपना खर्च भी संभालता था .कराटे सीखते -सीखते मेरा एक कांटेक्ट बन गया था. मैं मार्शल आर्ट सीखने के लिए नागालैंड गया. दो साल मैंने वहां सीखा. इस दौरान वहां पर भी मैंने नूडल्स बेचा और भी कुछ काम किया और इन सब खर्चो को उठाया. दो साल बाद वापस मुंबई आ गया. एक म्यूजिक कम्पनी है वीनस वहां की एक कैंटीन में काम रहा था.. कमल साहनी करके एक डायरेक्टर हैं. उनके बेटे को मैंने मार्शल सिखाया , जिससे इंडस्ट्री में थोड़ी बहुत बहुत जां पहचान हो गयी. इस दौरान फिर मैं आगे की ट्रेनिंग के लिए गुजरात गया फिर लखनऊ और फिर कानपुर गया. मेरा सीखना जारी रहा. इस दौरान मालूम पड़ा कि गोरेगांव में एक टीचर हैं, जो अच्छे जानकार हैं, लेकिन उनके पास समय नहीं है. मैंने उनको बोला मैं सुबह बजे सीखूंगा. वो राजी हो गए. वीनस का ऑफिस ओशिवारा में है जबकि वो गोरेगांव में रहते थे. हर दिन उनके घर जाकर सुबह चार बजे उनको उठाता था. वो एक घंटे में फिर रेडी हो जाते थे. नाश्ता करवाकर उनको फिर मैं जुहू लेकर जाता था. वो जुहू में मुझे प्रैक्टिस करवाते थे. उसके बाद मैं उनको ऑटो से घर पर छोड़ता था.अच्छी बात ये थी कि वे पैसे नहीं लेते थे. फिर मैं कैंटीन जाकर संभालता था.जिससे मैं दो से तीन घंटे ही सो पाता था.

कई बड़े एक्शन डायरेक्टर्स ने मेरा हक का नाम और पैसा खाया है

ये सब करते करते दस साल हो गए पता भी नहीं चला. थोड़ा अच्छा कमाने लगा तो घर भी थोड़ा भेजनें लगा,क्यूंकि कैंटीन सँभालने के साथ -साथ अब मैं बच्चों को मार्शल आर्ट सीखाने लगा था फिल्मों में कांटेक्ट भी बन गया था. कई बड़े स्टंट डायरेक्टर्स के अंडर में मैंने शुरुआत में स्टंटमैन के तौर पर कई काम किया.ज्यादा पढ़ा लिखा भी नहीं था. ये सब चीज़ों की समझ नहीं थी बस काम करना है और सीखना है. यही जानता था.इस दौरान कई बड़े बड़े एक्शन मास्टर्स ने मेरा बहुत इस्तेमाल भी किया. वे लोग मुझे दिन का 150 रुपये देते थे जबकि उनको एक फाइटर के लिए प्रोडक्शन हाउस से एक हजार रुपये मिलते थे.वो हमारे हक़ का पूरा पैसा खा जाते थे. अरे कुछ तो ऐसे थे कि सेट की कैंटीन से अगर थोड़ा ज्यादा खाना खा लें,तो उनको दिक्कत हो जाती थी कि यहां क्या खाना खाने के लिए आया है, जबकि उनके जेब से उन्हें एक रूपया भी नहीं देना होता था

मैंने बड़े -बड़े एक्शन मास्टर्स के साथ काम किया है,

पूरा एफर्ट आप दोगे, लेकिन नाम उनका होता था .मुझे याद है 18 साल पहले की बात है. एक एक्शन सीन करना था. मुझे मशाल लेकर एक झोपड़ी में कूदना था. कूदते हुए मेरे हाथ में आग लग गयी, लेकिन जब तक डायरेक्टर ने कट नहीं बोला. मैं हिला नहीं, जैसे डायरेक्टर ने कट बोला, मैंने कपड़े फाड़कर खुद फेंके. कोई मेरी मदद करने को आगे नहीं आया था. मेरा हाथ जल गया था, लेकिन एक्शन डायरेक्टर ने डॉक्टर को बुलाना तो छोड़िए. मेरे जख्म को देखा तक नहीं था. मैंने तय किया कि अब करना है, तो खुद का करना है.

फिर न्यूयॉर्क फिल्म अकादमी से किया एक्शन का कोर्स

मार्शल आर्ट सीखाना और परदे पर एक्शन सीन डायरेक्ट करने में काफी फर्क होता है. मुझे ए बात धीरे -धीरे ही सही समझ आ गयी थी.एक मेरा स्टूडेंट था विशाल ठाकुर करके. वह न्यूयॉर्क फिल्म अकादमी से एक्टिंग भी सीख रहा था . मैंने उससे पूछा एक्शन का कोर्स है क्या. मालूम पड़ा हां है, मैंने बोला मुझे करना है. आप जो मुझे फीस दे रहे हो उसमें से काट लो. जिसके बाद मैंने ऑनलाइन क्लास शुरू कर दी. वहां से मैंने जाना कि स्क्रीन एक्शन के लिए ब्लॉक क्या होती है. ट्रिक क्या होती है.वो सब बताते हैं, फिर आपको वीडियो बनाकर उनकी साइड में अपलोड करना होता है.. वो सीखा. उसके बाद मुझे रामानंद सागर फिल्म्स से मुझे एक्शन डायरेक्टर के तौर पर जुड़ने का मौका मिला. वहां पर मैंने पृथ्वीराज चौहान, धर्मवीर,महावीर हनुमान जैसे शोज के लिए एक्शन सीन्स किए. यही से रजत टोक्स और विक्रांत मेस्सी मेरे स्टूडेंट्स बने. वहां पर साढ़े चार साल तक काम किया. मैंने सीआईडी के लिए भी काम किया है. सीआईडी में अभिषेक को मार्शल आर्ट की जानकारी थी.

अभी फोकस फ़िल्में और वेब सीरीज

अभी मैंने सीरियल छोड़ दिया है.अभी मेरा फोकस फिल्म, एड फिल्म और वेब सीरीज पर है. अभी मैं दो वेब सीरीज कर रहा हूं. एक सुपरहीरो वाली है. राखी सांवत के एक प्रोडक्शन हाउस के लिए भी फिल्म कर रहा हूं. एक फिल्म जॉनी लिवर की बेटी के साथ भी कर रहा हूं. फिल्मों और वेब सीरीज के अलावा मुंबई में मेरे डेढ़ हज़ार से अधिक स्टूडेंट्स हैं. मैं अनुपम खेर एक्टिंग अकादमी, क्रिएटिव करैक्टर एक्टिंग स्कूल और व्हिस्टलिंग वुडस में फाइटिंग की ट्रेनिंग देता हूं.

केले के छिलके पर टाइगर श्रॉफ की ट्रेनिंग

मेरे बेहतरीन स्टूडेंट्स में से टाइगर श्रॉफ रहा है. उसको 2004 में ट्रेनिंग देनी शुरू की थी.तीन साल तक ये ट्रेनिंग चली थी. एक्टर रंजीत जी के बंगले पर तीन लोगों की ट्रेनिंग के लिए मैं जाता था. एक था टाइगर दूसरा डैनी का बेटा रेंजी और रंजीत का बेटा जीवा. टाइगर को वैसे कहीं भी बुलाओ. वो आ जाता था. उसको लोखंड वाला गार्डेन में भी करवाया है.हीरोपंती के पहले तक मैंने उसकी ट्रेनिंग की है.वो लड़का बहुत मेहनती था. उसने अपने को पूरी तरह से इसी में झोंक दिया. मार्शल आर्ट, जिमिंग, अक्रॉबाटिक्स ये सब भी वो करता था. टाइगर को सबसे पहले ट्रेनिंग मैंने ही देनी शुरू की थी. मेरे बाद ज़िल्ले आया था. अभी उसके साथ नदीम रहता है.मुझे भी यह ऑफर आया था, लेकिन मैं एक के साथ बंध के नहीं रहना चाहता था. मैं और दस टाइगर श्रॉफ बनाना चाहता हूं. टाइगर जो अभी आप देख रहे हो बहुत फ्लेक्सिबल है. पैर कहीं भी उठ सकता है. वह पहले ऐसा नहीं था. जब मैं शुरुआत में उसको स्ट्रेचिंग करवाता था, तो वह दर्द से चिल्लाता था क्यूंकि उससे हो ही नहीं पाता था. थाई स्प्लिट उससे आधा ही हो पाता था तो एक दिन मैंने केला मंगवाया. केला खाया और उसके छिलके पर उसको फिसलते हुए प्रैक्टिस करवाया था और उसने कर लिया.

टीवी और फिल्म एक्टर्स हैं मेरे स्टूडेंट्स

टीवी सीरियल में राखी सांवत, संभावना सेठ, पायल रोहतगी, संग्राम सिंह, दीपिका कक्कड़, शोएब इब्राहिम, पहले जो शोएब था वो थोड़ा हैवी बॉडी था.उसकी जो लीन बॉडी बनायीं. वो मैंने ही बनायी. आशी, केली दोर्जी, ताहा शाह मेरे से ट्रेनिंग लेते हैं. ताहा बहुत ही अच्छा स्टूडेंट्स है बस उसे एक मौका मिलने की देर है. भोजपुरी इंडस्ट्री में रवि किशन, संभावना सेठ, शुभी शर्मा, प्रवेश लाल यादव, पूनम दुबे, अनारा गुप्ता मेरे स्टूडेंट्स हैं. कई एक्टर्स के बेटों की लॉन्चिंग के लिए मुझे उनको तैयार करना पड़ रहा है. क्यूंकि सास भी बहु थी फेम केतकी दवे का बेटा लॉन्च होने वाला है, तो उसकी ट्रेनिंग अभी शुरू है. भोजपुरी एक्टर विराज भट्ट के बेटे, मनोज कुमार के पोते वंश गोस्वामी भी लॉन्चिंग होने वाले हैं. किरण कुमार के बेटे की भी ट्रेनिंग करवा रहा हूं.

देर से ही सही मुंबई ने अपना लिया

13 साल की उम्र में मुंबई आया था आज 40 साल का हो गया हूं. देर से सही मुंबई ने अपना लिया. कई दिन भूखे गुज़ारे हैं. सड़कों के किनारे सोया हूं.आज मीरा रोड में मेरा खुद का घर है, लेकिन मैं भाड़े पर लोखंडवाला में रहता हूं क्यूंकि मेरा काम का सर्कल यही है. 500 रुपये लेकर मैं इस शहर में आया था और आज मैं 50 हज़ार महीने का अपने कमरे का सिर्फ भाड़ा देता हूं.वैसे मेरा प्लान यहां पर भी जल्द ही अपना घर लेने की है. मैं मार्शल आर्ट्स के अलग -अलग फॉर्म की ट्रेनिंग देता हूं. मैंने खुद पहले कराटे सीखा, फिर कुंग फूँ किया फिर ओशू किया. कुंग फू, उशू का नया वर्जन है.अभी भी मैं सीखता रहता हूं. वर्कशॉप करता रहता हूं. मेरी ट्रेनिंग मैंने कभी बंद ही नहीं की, अगर मैं खुद नहीं सीखूंगा तो दूसरों को क्या सीखाऊंगा.ब्राज़ील का आर्ट फॉर्म है काकोएअरा. वो डांस फॉर्म में मार्शल आर्ट होता है.जिसको जैसी ट्रेनिंग चाहिए मैं उसको वो ट्रेनिंग देता था. नार्मल ट्रेनिंग के लिए 25 हज़ार लेकिन जिनको हीरो बनना है. उनको विशेष ट्रेनिंग देनी पड़ती है.उसके लिए महीने का 60 से 75 हज़ार लेता हूं. फिल्मों और वेब सीरीज में एक्शन डायरेक्शन के लिए छह से सात लाख फीस.

झारखंड में अब मेरी टूटी झोपड़ी नहीं बंगला है

9 साल पहले मेरे पापा की मौत हो गयी. मेरी मम्मी झारखंड में ही रहती हैं. पहले हमारा वहां पर घर नहीं था, जमीन थी लेकिन घर नहीं था. जो था वो मिट्टी की झोपड़ी थी. वो भी टूटी- फूटी सी. आज मैंने वहां बंगला बना दिया है. मैं अपनी मां और परिवार से मिलने वहां आता -जाता रहता हूं. मेरा छोटा भाई भी मां के साथ वही रहता है. त्यौहार में वहां जाने की मेरी कोशिश रहती है.

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