विश्व पुस्तक मेले के दूसरे दिन रविवार को राजकमल प्रकाशन के ‘जलसाघर’ में भारी संख्या में पुस्तकप्रेमियों ने शिरकत की. वहीं, पाठकों ने राजकमल प्रकाशन द्वारा चलाई जा रही क्विज प्रतियोगिता ‘आएं खेलें पाएं ईनाम’ में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. इस प्रतियोगिता में हिंदी साहित्य से जुड़े सवालों के सही जवाब देने पर पाठकों को पुस्तकों की खरीद पर अतिरिक्त छूट दी जा रही है.
रविवार को ‘जलसाघर’ में आयोजित कार्यक्रम में कई पुस्तकों पर परिचर्चा की गई. वहीं, तीन नई पुस्तकों, ज्योतिषजोशी की ‘आधुनिक कला आंदोलन’, ज्योतिचावला की ‘यह उनींदी रातों का समय है’ और डॉ. रमेश अग्रवाल की ‘जीने की जिद’ कालोकार्पण हुआ. रविवार के दिन कार्यक्रम की शुरुआत में हिंदी कवि दिनेश कुशवाह और अष्टभुजा शुक्ल ने अपनी कविताओं का पाठ किया. इस दौरान दिनेश कुशवाह ने हमारा खूनलाल क्यों है, इसी काया में मोक्ष, रेखा, दांपत्य के लिए प्रार्थना आदि कविताएं पढ़ीं. वहीं, अष्टभुजा शुक्ल ने जवान होते बेटों, चारसाल का नाती, चोर चोर चोर, अभी कहां मानुष बन पाया आदि कविताएं पढ़ीं. इस अवसर पर वरिष्ठ उपन्यासकार अलका सरावगी, रोहिणी अग्रवाल, कबीर संजय, इरशादखान सिकंदर, सविता पाठक सहित और भी अनेक कविता प्रेमी श्रोता मौजूद रहे.
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में जयशंकर प्रसाद के जीवन और युग पर ‘कंथा’ नामका चर्चित उपन्यास लिखने वाले श्याम बिहारी श्यामल से मनोज पांडेय ने बात की. उपन्यास के बारे में बात करते हुए श्याम बिहारी श्यामल ने कहा कि इस उपन्यास को लिखने में उन्हें बीस साल से अधिक समय लगा. प्रसाद जी के जीवन के बारे में, उनके समकालीनों के बारे में जानने में और उन सबके रचनात्मक व्यक्तित्व की पुनर्रचना में समय लगा. उपन्यास में कल्पना का कितना सहारा लिया गया है इस सवाल के जवाब में श्याम बिहारी श्यामल ने कहा कि कदम कदम पर कल्पना का सहारा लिया गया है, लेकिन तथ्यों के साथ कहीं भी छेड़ छाड़ नहीं की गई है और कल्पना करते हुए तथ्यों की डोरी का सतत खयाल रखा गया है.
तीसरे सत्र में ‘हिस्टीरिया’कहानी संग्रह की युवा लेखिका सविता पाठक से प्रतिभा भगत ने बातचीत की. किताब का नाम हिस्टीरिया रखने के सवाल पर सविता पाठक ने कहा कि मैं जिस समाज से आती हूं उसमें स्त्रियों के बहुत सारे सवालों को इस एक शब्द के सहारे दबा दिया जाता है. एक स्त्री जब इस तरह के किसी उन्माद में जाती है तो उसके पीछे बराबरी की आकांक्षा, पढ़ने की आकांक्षा, अपने पैरों पर खड़े होने या की मनपसंद रोजगार पाने की आकांक्षा हो सकती है. तरह तरह की गैरबराबरी का विरोध हो सकता है पर ऐसे को एक हल्के और गैर जिम्मेदार वाक्य के नीचे दबा दिया जाता है कि इसकी शादी कर दो तो ये ठीक हो जायेगी. मेरी कहानियों की स्त्रियां शादी करके ठीक हो जाने की बजाय अपनी इयत्ता और आजादी की तलाश में हैं.
अगले सत्र में राज्यसभा सांसद डा. महुआ माजी ने वीरेंद्र यादव के साथ बातचीत में कहा कि मैं राज्यसभा में हूं और मुख्यधारा की लेखक भी हूं मेरा दायित्व बनता है कि मैं स्थानीय साहित्य को दिल्ली तक लाने में मदद करूं. मैं राजभाषा विभाग से स्थानीय और दूर दराज के साहित्य परध्यान केंद्रित करने एवं बढ़ाव देने के गुजारिश करूंगी जिससे उन भूले बिसरे लेखकों को भी तवज्जो मिले. डॉ. महुआ माजी की राजकमल प्रकाशन से ‘मैं बोरिशाइल्ला’ एवं ‘मरंगगोड़ा नीलकंठ हुआ’ प्रकाशित हुई हैं. इसके बाद उपन्यास दातापीर के बारे में अमित गुप्ता से बात करते हुए वरिष्ठ उपन्यासकार ऋषिकेश सुलभ ने कहा कि अब इस बात से फर्क नही पड़ता कि मैं इस उपन्यास के यथार्थ से कितना परिचित रहा हूं. असली बात यह है कि वे उपन्यास में किस तरह से रची गई हैं या दाखिल हुई हैं. यह उपन्यास लगातार मानवीय संबंधों में आते हुए बदलाव के बीच कुछ जेनुइन चरित्रों के अथक संघर्ष, उनकी जिजीविषा और उनकी त्रासदी की भी कहानी कहता है.
कार्यक्रम के आखिरी सत्र में युवा संपादक आलोचक पल्लव से बात करते हुए वरिष्ठ कवि, कथाकार, व्यंग्यकार विष्णु नागर ने अपने संस्मरणों की नई किताब डालडा की औलाद के बारे में बात करते हुए कहा कि ये संस्मरण पाठकों को उस दुनिया में ले जाते हैं जब सोशल मीडिया नहीं थी. पाठकों के बारे में बात करते हुए विष्णु नागर ने कहा कि किताबों की तरफ लौटना लोगों के ही हित में है. सोशल मीडिया की दुनिया उन्हें वह सब कभी नहीं दे सकती जो कि कोई बेहतरीन किताब दे सकती है.
पुस्तक मेले में दूसरे दिन राजकमल प्रकाशन के स्टॉल पर रेत समाधि, तुम्हारी औकात क्या है पीयूष मिश्रा, सोफीका संसार, साये में धूप, काशीका अस्सी, मेरे बाद, तमस, संस्कृति के चार अध्याय, शिवानी की सम्पूर्ण कहानियां, चित्रलेखा आदि पुस्तकों की सर्वाधिक बिक्री हुई. राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने बताया कि दो साल बाद हो रहे विश्व पुस्तक मेले में पुस्तक प्रेमी बहुत उत्साह के साथ हिस्सा ले रहे हैं. इससे हम प्रकाशकों का मनोबल बढ़ा है. पुस्तक मेला प्रकाशकों के लिए एक सिंह द्वार की तरह है जो हमें एक नई दृष्टि देता है और इससे काफी कुछ देखने और समझने में मदद मिलती है.