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2023-24 में भारत से ज्यादा रहेगी झारखंड में विकास की रफ्तार, पढ़ें अर्थशास्त्री हरिश्वर दयाल का विश्लेषण

वर्ष 2019-20 की आर्थिक मंदी, वर्ष 2020-21 की महामारी ने देश की अर्थव्यस्था को बेपटरी कर दिया था. झारखंड की अर्थव्यस्था इनके प्रभावों से अछूता नहीं रहा. वर्ष 2019-20 की आर्थिक मंदी के कारण जहां राज्य का विकास दर धीमा हो गया था, वहीं वर्ष 2020-21 के कोविड-19 महामारी के कारण इसकी आय में गिरावट आयी थी.

वर्ष 2022-23 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार झारखंड की अर्थव्यवस्था वर्ष 2019-20 की आर्थिक मंदी और वर्ष 2020-21 के कोविद-19 एवं उसके कारण हुए लॉकडाउन के कुप्रभाव से न केवल पूरी तरह से उबर गयी है, बल्कि विकास ने भी रफ्तार पकड़ ली है. वर्ष 2022-23 एवम् 2023-24 में इसका विकास दर देश के विकास दर से अधिक रहने का अनुमान है.

कोरोना ने अर्थव्यवस्था को कर दिया था बेपटरी

वर्ष 2019-20 की आर्थिक मंदी और वर्ष 2020-21 की महामारी ने पूरे देश की अर्थव्यस्था को बेपटरी कर दिया था. झारखंड की अर्थव्यस्था इनके प्रभावों से अछूता नहीं रहा. वर्ष 2019-20 की आर्थिक मंदी के कारण जहां राज्य का विकास दर धीमा हो गया था, वहीं वर्ष 2020-21 के कोविड-19 महामारी के कारण इसकी आय में गिरावट आयी थी.

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लेकिन, इस महामारी से उत्पन्न परिस्थितियों के कुशल प्रबंधन के कारण राज्य के आय मे उतनी गिरावट नहीं आयी, जितनी की देश की आय में आयी थी. वर्ष 2020-21 में देश की आय में जहां 6.6 प्रतिशत की गिरावट आयी, वहीं झारखंड की आय में 5.5 प्रतिशत की ही गिरावट आयी थी.

अर्थव्यवस्था में हुआ सुधार

कोविड-19 महामारी की दूसरी और तीसरी लहर के बावजूद वर्ष 2021-22 में राज्य की अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ. वित्तीय वर्ष 2021-22 में राज्य की विकास दर 8.2 प्रतिशत रही. चालू वित्त वर्ष (2022-23) में इसके 7.8 प्रतिशत और वर्ष 2023-24 में 7.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है. वर्ष 2022-23 में देश के विकास दर के 7 प्रतिशत और वर्ष 2023-24 में 6 से 6.8 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान है. पिछले कुछ वर्षों मे औसतन झारखंड की विकास दर देश की विकास दर से अधिक रही है.

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झारखंड में महंगाई

देश एवं देश के अन्य राज्यों की तरह झारखंड में भी वर्ष 2022 में मुद्रास्फीति दर (मूल्य वृद्धि दर) अधिक रही. जुलाई एवं नवंबर 2022 को छोड़कर जनवरी 2022 से दिसंबर 2022 तक की अवधि के अन्य महीनों में राज्य की मुद्रास्फीति दर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की ‘नयी मौद्रिक नीति रूपरेखा’ द्वारा निर्धारित 6 प्रतिशत की दर से अधिक रही.

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इस वर्ष सिर्फ जनवरी 2022 से मई 2022 की अवधि में राज्य की मुद्रास्फीति दर देश के मुद्रास्फीति दर से मामूली रूप से अधिक रही. अन्य सभी महीनों में झारखंड की मुद्रास्फीति दर देश के मुद्रास्फीति दर से कम रही. झारखंड में अगस्त 2021 से दिसंबर 2022 के दौरान अन्य कमोडिटी समूहों की तुलना में ईंधन और प्रकाश और कपड़े एवं जूते/चप्पल की कीमतों में बहुत तेजी से वृद्धि हुई. इन वस्तुओं की कीमत में वृद्धि की दर में कमी के कारण नवंबर और दिसंबर 2022 में राज्य की मुद्रास्फीति दर में कमी आयी.

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झारखंड में गरीबी

गरीबी की गणना अब के वर्षों में बहुआयामी गरीबी के संदर्भ में की जाती है. हमारे देश में NFHS के डेटा के आधार पर गरीबी को आंका जाता है जाता है. 2014-15 में इसकी गणना NFHS-IV के आधार पर और 2019-2021 में यह NFHS-V के आधार की गयी.

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वर्ष 2015-16 और 2019-21 के बीच झारखंड में गरीबी (हेड काउंट अनुपात) में लगभग 13 प्रतिशत की कमी आयी. राज्य में वर्ष 2015-16 में 42.16 प्रतिशत लोग बहुआयामी गरीब थे. ग्रामीण क्षेत्रों में 50.93 प्रतिशत लोग तथा शहरी क्षेत्रों में 15.26 प्रतिशत लोग बहुआयामी गरीब पाये गये थे.

स्वास्थ्य और शिक्षा एवं लोगों के जीवन स्तर के संकेतकों में सुधार के कारण झारखंड में गरीबी में गिरावट आयी है. वर्ष 2019-21 में बहुआयामी गरीबों का प्रतिशत घटकर 36.6 प्रतिशत हो गया, ग्रामीण क्षेत्रों में यह घटकर 42.2 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 11.1 प्रतिशत हो गया.

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झारखंड में श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) और श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR) अखिल भारतीय औसत से अधिक है. देश की तरह ही राज्य में अधिकांश श्रमिक स्व-नियोजित है और बहुत कम नियमित वेतन पर कार्यरत है. राज्य के लगभग 55 प्रतिशत श्रमिक कृषि क्षेत्र में लगे हुए हैं.

बेरोजगारी दर में आयी है गिरावट

झारखंड में सामान्य स्थिति (Usual Status PS+SS) बेरोजगारी दर न केवल देश के औसत से कम है बल्कि पिछले कुछ वर्षों में इसमें गिरावट भी आयी है. वर्ष 2017-18 में झारखंड में सभी (0+) आयु वर्ग में बेरोजगारी सामान्य स्थिति (PS+SS) में 7.7 प्रतिशत थी, जो वर्ष 2020-21 में घटकर 3.1 प्रतिशत रह गयी. इस प्रकार, सभी आयु समूहों में बेरोजगारी दर वर्ष 2017-18 और 2020-21 के बीच 26.2 प्रतिशत की औसत वार्षिक दर से कम हुई है.

कोरोना की दूसरी लहर में भी बढ़ी बेरोजगारी

कारोना की पहली लहर आयी तो वर्तमान साप्ताहिक बेरोजगारी दर (करेंट वीकली स्टेटस) में काफी वृद्धि हुई थी. लेकिन, कोरोना के प्रभाव के कम होते ही इसमे तेजी से गिरावट आयी. जुलाई 2020 से यह सामान्य स्तर पर आ गया. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान भी अप्रैल से जून 2021 के बीच बेरोजगारी में वृद्धि हुई थी, लेकिन कोरोना के प्रभाव के कम होने के साथ इसमें फिर गिरावट आयी.

झारखंड में भी शिक्षितों में बेरोजगारी अधिक

देश के बाकी हिस्सों की तरह, झारखंड में भी शिक्षितों में बेरोजगारी अधिक है और निरक्षरों तथा कम शैक्षिक योग्यता वालों में कम. उच्च शिक्षित बेरोजगारी का कारण, एक ओर शिक्षितों के लिए नौकरियों की कमी तो दूसरी तरफ वर्तमान शिक्षा पैटर्न की सीमाएं हैं, जो अर्थव्यवस्था में कुशल और शिक्षित व्यक्तियों की उपलब्धता और कौशल की आवश्यकता के बीच की खाई को पाटने में विफल रही हैं.

राज्य की वित्तीय स्थिति

पिछले दो वर्षों से (कोरोना के बाद से) राज्य की वित्तीय स्थिति लगातार मजबूत हो रही है. पिछले वर्ष की तुलना में वर्ष 2021-22 में राज्य की राजस्व प्राप्तियों में लगभग 24 प्रतिशत की वृद्धि हुई है तथा चालू वित्त वर्ष (2022-23) में लगभग 19 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है. वर्ष 2021-22 में राज्य के कुल व्यय में लगभग 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी और चालू वित्त वर्ष (2022-23 BE) में इसमें लगभग 30 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है.

राज्य की घाटे की स्थिति

झारखंड ज्यादातर राजस्व-अधिशेष वाला राज्य रहा है. राजस्व-अधिशेष का उपयोग राज्य में पूंजीगत संपत्तियों के निर्माण के लिए किया गया है. राज्य का राजकोषीय घाटा ज्यादातर FRBM सीमा के भीतर रहा है. वर्ष 2021-22 में यह जीएसडीपी का 0.76 प्रतिशत था. चालू वित्त वर्ष (2022-23 BE) में यह जीएसडीपी का 2.81 प्रतिशत रहने का अनुमान है.

ऋण और देनदारियां

पिछले दो वर्षों से राज्य का ऋण-जीएसडीपी-अनुपात 35 प्रतिशत से कम और ब्याज-राजस्व-प्राप्ति अनुपात 10 प्रतिशत से कम रहा है. राज्य की शुद्ध उधारी भी राज्य के लिए निर्धारित उधार सीमा के भीतर रही है. इस प्रकार राज्य लोक ऋण भी संपोषणीय है.

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