मुंबई : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर एम राजेश्वर राव ने गुरुवार को कहा कि भारत को विनिमय दर में उतार-चढ़ाव का प्रबंधन करने की जरूरत है, क्योंकि देश रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण और मुक्त पूंजी खाता परिवर्तनीयता के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि रुपये के अपने अंतरराष्ट्रीय लाभ के साथ ही चुनौतियां और जोखिम भी हैं, जिनसे देश और आरबीआई को निपटना होगा.
आरबीआई के डिप्टी एम राजेश्वर राव ने रविवार को काहिरा में 17वें एफईडीएआई सम्मेलन में मुख्य भाषण देते हुए कहा कि जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था बढ़ेगी और अधिक विकसित होगी, विदेशी मुद्रा बाजारों में भागीदारी का दायरा बदल जाएगा. उन्होंने कहा कि बाकी दुनिया के साथ अर्थव्यवस्था के बढ़ते एकीकरण के चलते प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अधिक से अधिक संस्थाओं के विदेशी मुद्रा जोखिमों के प्रभाव में आने की आशंका है. ऐसे में आर्थिक जोखिमों की हेजिंग की अनुमति देने की मांग की जा सकती है.
राजेश्वर राव ने कहा कि बाजार सहभागियों के एक नए ग्रुप के साथ एक नया बाजार खुल गया है. उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे देश रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की राह पर आगे बढ़ेगा, और गतिशीलता आने की संभावना है और हमें इसे प्रबंधित करने के लिए कमर कसने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि आगे बढ़ने पर बड़ी चुनौतियां सामने आएंगी, क्योंकि बाजार अधिक विकसित और परस्पर जुड़े हुए हैं. उन्होंने कहा कि नई सीमाएं भी उभरेंगी, क्योंकि भारतीय बैंक अपतटीय बाजारों में अपनी उपस्थिति का विस्तार करेंगे. घरेलू बाजारों में अनिवासी भागीदारी बढ़ेगी और तकनीकी परिवर्तन बाजार के काम करने के तरीके को बदलना जारी रहेगा.
भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, विदेशी मुद्रा बाजार सहभागियों को परिवर्तनों और संबंधित जोखिमों का प्रबंधन करने के लिए खुद को तैयार करना होगा और फॉरेन एक्सचेंज डीलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एफईडीएआई) को इन प्रयासों में अग्रणी और रचनात्मक भूमिका निभानी होगी. डिप्टी गवर्नर राजेश्वर राव ने कहा कि निरंतर विकसित हो रही दुनिया में जहां परिवर्तन ही एकमात्र स्थिर है, पिछले कुछ दशकों में भारतीय विदेशी मुद्रा बाजार की यात्रा निरंतर विकास और नवाचार की रही है.
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उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक वैश्विक और घरेलू स्तर पर बदलते माइक्रो फाइनेंशियल माहौल के अनुरूप स्थिर गति से लगातार आगे बढ़ने के लिए प्रतिबद्ध है. डिप्टी गवर्नर ने कहा कि जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था बढ़ेगी और विकसित होगी, विदेशी मुद्रा बाजारों में भागीदारों का दायरा बदल जाएगा. उन्होंने कहा कि दुनिया के बाकी हिस्सों के साथ अर्थव्यवस्था के बढ़ते एकीकरण के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अधिक से अधिक संस्थाओं के विदेशी मुद्रा जोखिमों के संपर्क में आने की संभावना है. आर्थिक जोखिमों की हेजिंग की अनुमति देने की मांग होने की संभावना है. उन्होंने कहा कि हालांकि, यह पूंजी खाता परिवर्तनीयता की वर्तमान सीमा को देखते हुए मुश्किल हो सकता है.
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