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Sheetala Ashtami 2023: इस दिन  रखा जाएगा शीतला अष्टमी व्रत, जानें बसौड़ा पूजन का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

Sheetala Ashtami 2023: शीतला सप्तमी पर्व की प्रासंगिकता स्कंद पुराण में स्पष्ट रूप से वर्णित है. शास्त्रों और हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी शीतला देवी दुर्गा और मां पार्वती का अवतार हैं. इस साल 14 मार्च को शीतला सप्तमी का व्रत रखा जाएगा. जानिए शीतला अष्टमी की शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

Sheetala Ashtami 2023:  शीतला सप्तमी सबसे लोकप्रिय हिंदू त्योहारों में से एक है जिसे शीतला माता या देवी शीतला के सम्मान में मनाया जाता है. लोग अपने बच्चों और परिवार के सदस्यों को छोटी माता और चेचक जैसी बीमारियों से पीड़ित होने से बचाने के लिए शीतला माता की पूजा करते हैं.   इस साल 14 मार्च को शीतला सप्तमी का व्रत रखा जाएगा. जानिए शीतला अष्टमी की शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

मां शीतला का स्वरूप

शास्त्रों के अनुसार, मां शीतला के स्वरुप को कल्याणकारी माना जाता है. माता गर्दभ में विराजमान होती है. जिसके हाथों में झाड़ू, कलश, सूप और नीम की पत्तियां होती है.

कब है बासोड़ा पर्व और शीतला माता की पूजा का मुहूर्त (Sheetala Ashtami Puja Muhurat)

हिंदू पंचांग के अनुसार शीतला सप्तमी तिथि 13 मार्च 2023 की रात्रि 9.27 बजे आरंभ होगी. इसका अंत 14 मार्च 2023 को रात्रि 8.22 बजे होगा. इसके बाद शीतला अष्टमी आरभ होगी जो अगले दिन यानि 15 मार्च 2023 को सायं 6.45 बजे समाप्त होगी. पूजा का मुहूर्त इस प्रकार रहेगा.

शीतला सप्तमी – 14 मार्च, 2023 को सुबह 6.31 बजे से सायं 6.29 बजे तक
शीतला अष्टमी – 15 मार्च, 2023 को सुबह 6.30 बजे से सायं 6.29 बजे तक

शीतला सप्तमी का क्या महत्व है?

शीतला सप्तमी पर्व की प्रासंगिकता स्कंद पुराण में स्पष्ट रूप से वर्णित है. शास्त्रों और हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी शीतला देवी दुर्गा और मां पार्वती का अवतार हैं. देवी शीतला प्रकृति की उपचार शक्ति का प्रतीक है. इस शुभ दिन पर, भक्त और उनके बच्चे एक साथ पूजा करते हैं और देवता से छोटी माता और चेचक जैसी बीमारियों से सुरक्षित और संरक्षित रहने के लिए प्रार्थना करते हैं. ‘शीतला’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘शीतलता’ या ‘शांत’.

मां शीतला को लगाएं बासी भोजन का भोग (Sheetala Ashtami 2023 Bhog)

शास्त्रों के अनुसार, शीतला अष्टमी के साथ मां शीतला को बासी भोजन का भोग लगाने का विधान है. यह भोजन सप्तमी तिथि की शाम को बनाया जाता है. यह भोग चावल-गड़ या फिर चावल और गन्ने के रस से मिलकर बनता है. इसके साथ ही मीठी रोटी का भोग बनता है.

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