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पाकिस्तान के आर्थिक संकट के सबक

आज पाकिस्तान की विनिमय दर लगभग 280.67 पाकिस्तानी रुपये प्रति अमेरिकी डॉलर है. पाकिस्तान चीन का इतना ऋणी है कि 27 बिलियन अमेरिकी डॉलर के द्विपक्षीय ऋण में से लगभग 23 बिलियन अमेरिकी डॉलर चीन का ही ऋण है

पाकिस्तान अब तक के अपने सबसे खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. पिछले 25 वर्षों में पाकिस्तान पर कर्ज तीन लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपये से बढ़ कर 2022 तक 62.5 लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपये तक पहुंच चुका है. इस अवधि में एक तरफ सरकारी कर्ज 14 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से बढ़ा, जबकि पाकिस्तान की जीडीपी मात्र तीन प्रतिशत की दर से ही बढ़ पायी.

कर्ज पर ब्याज और वापसी की देनदारी 5.2 लाख करोड़ पाकिस्तानी रुपये तक पहुंच गयी है, जो सरकार की कुल आमदनी से भी कहीं ज्यादा है. इमरान सरकार इसी राजकोषीय कुप्रबंधन के चलते गिर गयी थी, लेकिन वर्तमान सरकार भी स्थिति को संभालने में नाकामयाब रही है.

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ ने 18 फरवरी, 2023 को बयान दिया है कि पाकिस्तान की सरकार अपनी देनदारी से पहले ही कोताही कर चुकी है. इस बारे में आर्थिक विशेषज्ञ एक मत हैं कि पाकिस्तान के आर्थिक संकट के लिए कोई और नहीं, वहां के हुक्मरान ही जिम्मेदार हैं. पाकिस्तान सुजुकी मोटर्स, मिलात ट्रैक्टर्स, इंडस मोटर कंपनी, कंधार टायर एंड रबर कंपनी, निशात चुनियान और फौजी फर्टिलाइजर बिन कासिम समेत पाकिस्तान की अधिकतर बड़ी कंपनियां बंदी की घोषणा कर चुकी हैं.

सोलह सौ कपड़ा मिलें 2022 तक बंद हो चुकी थीं, जिसके कारण 50 लाख लोग अपनी नौकरी से हाथ धो चुके हैं. बाकी बची कंपनियां भी 50 प्रतिशत क्षमता का ही उपयोग कर पा रही हैं. मजबूरी में पाकिस्तान मदद के लिए कई बार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का दरवाजा खटखटा चुका है. आइएमएफ का कहना है कि वह तभी मदद दे सकता है, जब पाकिस्तान उसकी शर्तों को माने. आइएमएफ की शर्त है कि पाकिस्तान 17 हजार करोड़ रुपये के अतिरिक्त कराधान का प्रावधान करें तथा डीजल पर अतिरिक्त लेवी लगाए.

विशेषज्ञों का मानना है कि चाहे आइएमएफ की मदद से पाकिस्तान फिलहाल कुछ समय के लिए कर्ज की अदायगी की कोताही से बच जायेगा, लेकिन उसकी समस्याओं का स्थायी समाधान इससे होने वाला नहीं है. अर्थशास्त्री पाकिस्तान की दीर्घकालिक और अल्पकालिक, दोनों तरह की कई नीतियों के आलोचक रहे हैं और उन्हें वर्तमान दुर्दशा के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं. सेना में आवश्यकता से अधिक निवेश करने से लेकर ‘मुफ्त उपहार’ देने और अस्थिर राजनीतिक वातावरण होने तक कई मुद्दों का जिक्र आता है.

पाकिस्तानी हुक्मरानों द्वारा कई नीतिगत फैसले लिये गये, जो न तो देश के राजनीतिक हित में थे और न ही आर्थिक हित में. कीमत कम रखने के लिए लोकलुभावन उपायों का उपयोग किया, जिससे खजाने पर बोझ बढ़ा. सरकारी सब्सिडी का अंधाधुंध इस्तेमाल हुआ. देखा गया कि जहां तेल की कीमतों में गिरावट के बावजूद भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतों को कम घटाया गया, पर पाकिस्तान सरकार ने इनकी कीमत कम रखने का प्रयास किया.

हालांकि इस बात के लिए भारत सरकार की आलोचना भी हुई, लेकिन भारत सरकार और राज्य सरकारों ने राजस्व में इसका फायदा उठाया. अंतत: हम देखते हैं कि भारत दुनिया की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया और पाकिस्तान कंगाल हो गया. भारत सरकार ने पेट्रोलियम उत्पादों से जुटाये राजस्व का उपयोग अधिक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए किया.

दूसरी तरफ पाकिस्तान ने विदेशी ऋणों पर सवार बुनियादी ढांचे का निर्माण किया. पाकिस्तान धनाभाव के चलते अपनी जरूरतों के अनुसार नहीं, बल्कि किसी विदेशी शक्ति (चीन) के इशारे पर बुनियादी ढांचे का निर्माण कर रहा है, जिससे उसको फायदा तो कम हो रहा है, लेकिन कर्ज का बोझ इतना बढ़ गया है कि उसको चुकाना पाकिस्तान के बूते से बाहर हो गया. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा इसका जीता-जागता उदाहरण है.

वास्तविकता यह है कि पाकिस्तान के पास पर्याप्त ग्रिड कनेक्टिविटी ही नहीं है. इसलिए आर्थिक गलियारे की बिजली परियोजना पाकिस्तान के किसी काम की नहीं. उसी तरह से अन्य प्रकार का इंफ्रास्ट्रक्चर भी पाकिस्तान के लिए पर्याप्त धन जुटाने में अपर्याप्त हैं. इस ऋण ने केवल भुगतान संतुलन की समस्याएं पैदा कीं और पाकिस्तानी मुद्रा का अभूतपूर्व मूल्यह्रास हुआ. आज पाकिस्तान की विनिमय दर लगभग 280.67 पाकिस्तानी रुपये प्रति अमेरिकी डॉलर है. पाकिस्तान चीन का इतना ऋणी है कि 27 बिलियन अमेरिकी डॉलर के द्विपक्षीय ऋण में से लगभग 23 बिलियन अमेरिकी डॉलर चीन का ही ऋण है.

पाकिस्तान का कुल विदेशी कर्ज 126.3 अरब डॉलर है. पाकिस्तान का कुल सार्वजनिक ऋण और देनदारियां लगभग 222 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है, जो पाकिस्तान की जीडीपी का 393.7 प्रतिशत है. भारत के साथ प्रतिस्पर्धा में पाकिस्तानी सरकार रक्षा क्षेत्र पर जरूरत से ज्यादा खर्च कर रही है. उस धन का उपयोग बेहतर उद्देश्यों के लिए किया जा सकता था.

सरकार पर सेना का दबाव शायद उसे प्रतिरक्षा पर खर्च कम करने में रोकता है, लेकिन यह सत्य है कि आज यही फिजूलखर्ची पाकिस्तान के संकटों का कारण बन रही है. चीन समेत िवभिन्न मित्र देश भी पाकिस्तान को संकट से उबारने के लिए कोई उत्साह नहीं दिखा रहे. पाकिस्तान को अपने संकट से खुद ही उबरना होगा. उसके लिए जरूरी है कि पाकिस्तान आतंकवादियों की मदद करने वाली अपनी रणनीति से बाहर आए.

पाकिस्तान की इस प्रवृति के चलते फाइनांस ऐक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने लंबे समय तक पाकिस्तान को ग्रे सूची में रखा था और उसकी इन हरकतों के चलते विभिन्न प्रकार के निवेशक भी पाकिस्तान से कन्नी काटने लगे हैं. एक तरफ पाकिस्तान को कोई नया निवेश प्राप्त नहीं हो रहा, कई विदेशी कंपनियां भी पाकिस्तान को छोड़ने का मन बना रही हैं. पाकिस्तान को अनिवासी पाकिस्तानियों से भी भारी मात्रा में प्राप्तियां होती रही हैं, लेकिन अब वे लोग अपने धन की सुरक्षा के प्रति चिंतित हो रहे हैं.

ऐसे में पाकिस्तान को नयी प्राप्तियों में और अधिक कठिनायां आ सकती हैं. पाकिस्तान के लोगों को समझना होगा कि सरकारों के बदलने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है. पाकिस्तान को बचाने का एक ही रास्ता है कि वह अपनी नीतियों को ठीक करे, अपने वित्तीय अनुशासन को संभाले, प्रतिरक्षा पर फिजूलखर्ची से बचे, अपने उद्योगों को बचाने की तरफ ध्यान दे और चीन के चंगुल से जल्द-से-जल्द बाहर आए और भविष्य की चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर की बाकी बची परियोजनाओं को सिरे से खारिज कर दे.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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