रांची, सुनील कुमार झा:
झारखंड में वर्ष 2011 से शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीइ) लागू है. इस अधिनियम के लागू होने के लगभग 12 वर्ष बाद भी सरकार राज्य के आधे से अधिक स्कूलों में बच्चों को शिक्षा का अधिकार देने में विफल साबित हुई है. स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार, कुल 34847 प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में से 22633 विद्यालयों में आरटीइ के मानक के अनुरूप न तो शिक्षक हैं और न ही आवश्यक संसाधन.
आलम यह है कि अब तक सभी विद्यालयों में पीने के पानी की व्यवस्था भी नहीं की जा सकी है. विभाग द्वारा तैयार रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में कुल 21183 प्राथमिक विद्यालयों में से 9928 में ही आरटीइ के अनुरूप शिक्षक हैं. वहीं, 13664 मध्य विद्यालयों में से 2286 विद्यालयों में ही आरटीइ के प्रावधान के अनुरूप शिक्षक हैं.
संसाधन के मामले में भी स्कूलों को आरटीइ के मानक अनुरूप नहीं बनाया जा सका है. राज्य के 287 विद्यालयों में बालिकाओं के लिए शौचालय नहीं है, वहीं 581 विद्यालयों में बालकों का शौचालय नहीं है. 983 विद्यालयों में बालिकाओं का शौचालय और 1398 विद्यालयों में बालकों का शौचालय उपयोग के लायक नहीं है.वहीं, राज्य के 2447 विद्यालयवें में बिजली की सुविधा नहीं है. 9109 विद्यालयों में अब तक रैंप का निर्माण नहीं हो सका है.
24842 विद्यालयों में चहारदीवारी, 16954 में खेलने की सुविधा नहीं : सुरक्षा के दृष्टिकोण से विद्यालयों में चहारदीवारी होना आवश्यक है, लेकिन राज्य में 24842 विद्यालयों में चहारदीवारी नहीं है. इनमें से कई विद्यालय सड़कों के किनारे स्थित हैं. वहीं, राज्य के 16954 विद्यालयों में खेलने की सुविधा नहीं है. जबकि, विद्यालयों में प्रतिदिन छुट्टी के बाद एक घंटा खेलकूद को अनिवार्य किया गया है. 1429 विद्यालयों में पुस्तकालय नहीं है. जबकि, 675 स्कूलों में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था नहीं है. इससे मध्याह्न भोजन बनाने में भी परेशानी होती है.
कुल प्राथमिक विद्यालय 21183
आरटीइ के अनुरूप शिक्षक वाले स्कूल 9928
कुल मध्य विद्यालय 13664
आरटीइ के अनुरूप शिक्षक वाले स्कूल 2286
एक शिक्षक वाले विद्यालय 6904
छात्र-शिक्षक अनुपात 40 से अधिक 13620
छात्र संख्या शिक्षक
60 02
61-90 03
91-120 04
121-200 05
शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अनुरूप राज्य के मान्यता प्राप्त निजी विद्यालयों में इंट्री क्लास में 25 फीसदी सीट पर बीपीएल बच्चों के नामांकन का प्रावधान है. राज्य में पिछले 12 वर्षों में मात्र 22 हजार बीपीएल बच्चों का नामांकन निजी विद्यालयों में हो सका है. इतने वर्षों में लगभग एक लाख बच्चों का नामांकन होना चाहिए.