इस सप्ताह संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में आयोजित हो रहे जल सम्मेलन को सभी के लिए जल और स्वच्छता उपलब्ध कराने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल माना जा रहा है. पानी धरती पर जीवन के अस्तित्व के लिए आधारभूत आवश्यकता है. आबादी में वृद्धि के साथ पानी की खपत बेतहाशा बढ़ी है, लेकिन पृथ्वी पर साफ पानी की मात्रा कम हो रही है. जलवायु परिवर्तन और धरती के बढ़ते तापमान ने इस समस्या को गंभीर संकट बना दिया है.
दुनिया की आबादी आठ अरब से अधिक हो चुकी है. इसमें से लगभग आधे लोगों को साल में कम-से-कम एक महीने पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ता है. जलवायु परिवर्तन के कारण 2000 से बाढ़ की घटनाओं में 134 प्रतिशत वृद्धि हुई है और सूखे की अवधि में 29 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. पानी के संरक्षण और समुचित उपलब्धता को सुनिश्चित कर हम पर्यावरण को भी बेहतर कर सकते हैं तथा जलवायु परिवर्तन की समस्या का भी समाधान निकाल सकते हैं.
इस सम्मेलन में सरकार, उद्योग जगत और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के लिए लक्ष्य तो निर्धारित किये ही जायेंगे, साथ ही आम लोगों को पानी बचाने के मुहिम से जोड़ने के लिए भी कारगर कार्ययोजना बनाने पर विचार होगा. दुनिया के कई हिस्सों की तरह भारत भी जल संकट का सामना कर रहा है. वैश्विक जनसंख्या का 18 प्रतिशत हिस्सा भारत में निवास करता है, लेकिन चार प्रतिशत जल संसाधन ही हमें उपलब्ध है.
बारिश के पानी को नहीं बचाने, भूजल के अंधाधुंध दोहन, पानी को साफ कर फिर से काम में लाने में कोताही आदि कारकों ने भविष्य के लिए बड़ी चिंता पैदा कर दी है. जलाशयों पर अनधिकृत कब्जा और नदियों में खनन एवं प्रदूषण की समस्या भी गंभीर है. यह संतोषजनक है कि जल बचाने का अभियान कई स्तरों पर चल रहा है, लेकिन उसकी गति को बढ़ाने की आवश्यकता है.
देश के सात राज्यों के 8,220 ग्राम पंचायतों में भूजल प्रबंधन के लिए अटल भूजल योजना चल रही है. स्थानीय समुदायों के नेतृत्व में चलने वाला यह दुनिया का सबसे बड़ा ऐसा कार्यक्रम है. साथ ही, नल से जल, नदियों की सफाई, अतिक्रमण हटाने जैसे प्रयास भी हो रहे हैं.
जल संरक्षण की दिशा में बड़ी पहल करते हुए केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय ने इस वर्ष जनवरी में राज्यों के जल मंत्रियों का सम्मेलन आयोजित किया था. अब यह सम्मेलन हर साल आयोजित किया जायेगा. इसके उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उचित ही रेखांकित किया कि सभी राज्यों को मिलकर काम करना होगा तथा जल संरक्षण एवं उपयोग किये गये पानी को फिर से इस्तेमाल में लाने के उपाय करने होंगे.