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पंजाब से निकलते चिंताजनक संकेत

यह जगजाहिर तथ्य है कि अस्सी-नब्बे के दशक में पंजाब में जो हिंसा और आतंक का दौर चला, उसमें पाकिस्तान की बड़ी भूमिका थी. अनेक आतंकियों को पाकिस्तान ने अपने यहां पनाह भी दी है.

पिछले कुछ महीनों से पंजाब में अलगाववाद और अस्थिरता को लेकर जो चिंताएं पैदा हुई हैं, उनका समाधान बहुत गंभीरता से करना होगा. यह महज संयोग नहीं है कि एक ओर पंजाब में अमृतपाल सिंह की सक्रियता बढ़ती है, तो दूसरी ओर दुनिया के अनेक देशों में खालिस्तान समर्थक उग्र प्रदर्शन होने लगते हैं. हालिया घटनाक्रम इंगित करते हैं कि यह सब कुछ सुनियोजित ढंग से हो रहा है तथा इसे हवा देने में विदेशी शक्तियां भी शामिल हैं.

यह जगजाहिर तथ्य है कि अस्सी-नब्बे के दशक में पंजाब में जो हिंसा और आतंक का दौर चला, उसमें पाकिस्तान की बड़ी भूमिका थी. अनेक आतंकियों को पाकिस्तान ने अपने यहां पनाह भी दी है. लंदन में भारतीय उच्चायोग से खालिस्तान समर्थकों द्वारा राष्ट्रीय झंडे को हटाने के कृत्य की जितनी भर्त्सना की जाए, कम है. भारत ने इस घटना पर अपना ठोस प्रतिवाद दर्ज कराया है और ब्रिटिश उच्चायोग की ओर से इसके लिए खेद भी व्यक्त किया गया है. ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, इटली आदि देशों में कई महीनों से आक्रामक प्रदर्शनों की खबरें आ रही हैं.

ऐसे में लंदन की घटना को एक आम घटना समझना हमारी भूल होगी. किसी देश का उच्चायोग या दूतावास एक संप्रभु स्थान होता है तथा स्थानीय पुलिस को भी उसके भीतर जाने की अनुमति नहीं होती है. उग्र प्रदर्शनकारियों को भवन से पहले रोका जाना चाहिए था. यह प्रश्न भी है कि आखिर ब्रिटिश सुरक्षा और खुफिया एजेंसियों को इसकी भनक क्यों नहीं लगी. जो जानकारियां सामने आ रही हैं, उनसे संकेत मिलता है कि अमृतपाल सिंह के तार पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजेंसी आइएसआइ से जुड़े हुए हैं.

निश्चित रूप से पंजाब में जो कार्रवाई चल रही है और धर-पकड़ हो रही है, वह सराहनीय है. पर यह सवाल भी अहम है कि आखिर इतने समय से पुलिस और अन्य एजेंसियां हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठी रहीं. जैसे ही पंजाब में अमृतपाल सिंह की सक्रियता बढ़ी और विदेशों में खालिस्तान समर्थक गुटों ने शोर करना शुरू किया, वैसे ही एजेंसियों को जांच-पड़ताल शुरू कर देनी चाहिए थी.

बहरहाल, कुछ देर से ही सही, कार्रवाई हो रही है. हमें उम्मीद है कि जांच से पूरी तस्वीर साफ होगी. अपने देश में भी और दुनिया में अन्यत्र भी, आतंकवादी और अलगाववादी गुटों का करीबी रिश्ता नशीले पदार्थों और हथियारों की तस्करी करने वाले गिरोहों तथा हवाला कारोबारियों से होता है. पंजाब में नशीले पदार्थों का मसला तो गंभीर है ही, पाकिस्तान से हथियारों की तस्करी के भी मामले सामने आ चुके हैं.

पंजाब में हिंसा और अस्थिरता को रोकना पुलिस और अन्य एजेंसियों का काम है. इसके साथ विदेशों में हो रही गतिविधियों को भी गंभीरता से लेना होगा. भारत ने लंदन की वारदात में शामिल लोगों पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है. यदि ब्रिटिश शासन ऐसा करने में विफल रहता है, तो भारत को फिर से विरोध जताना चाहिए. यह घटना ऐसे समय में हुई है, जब दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत निर्णायक दौर में है.

वहां भारतीय मूल के प्रधानमंत्री भी हैं. हमारी खुफिया एजेंसियों को ब्रिटिश एजेंसियों के साथ मिलकर यह पता लगाने की कोशिश भी करनी चाहिए कि कहीं ऐसे प्रदर्शनों के पीछे पाकिस्तान का हाथ तो नहीं है. अतीत में हम देख चुके हैं कि आइएसआइ द्वारा अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन में सक्रिय भारत विरोधी तत्वों सहायता दी जाती रही है. आज पाकिस्तान भारी आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. वह पूरी तरह से अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं पर निर्भर है.

ऐसी स्थिति में वह अगर भारत विरोधी भावनाओं को भड़काने की अपरिपक्व नीति अपनाता है, तो उसकी स्थिति और खराब होगी. हाल के दिनों में हमने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर देखा है कि किस प्रकार पाकिस्तानी मंत्रियों ने भारत पर बेबुनियाद आरोप लगाये हैं तथा आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का प्रयास किया है.

विभिन्न देशों में बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी और भारतीय मूल के लोग हैं. उन देशों में उनके परिश्रम, कौशल और मेधा की बड़ी प्रतिष्ठा है. उनमें से गिने-चुने लोग ही भारत विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं. यदि वे भारतीयों पर या भारत से संबंधित प्रतिष्ठानों पर हमला करते हैं, घृणा का वातावरण पैदा करते हैं तथा भारत में सक्रिय आतंकी व अलगाववादी गुटों को संसाधन मुहैया कराते हैं, तो यह उन देशों की सरकारों और सुरक्षा एजेंसियों का काम है कि उन पर कार्रवाई करें.

जिन देशों में खालिस्तान समर्थक समूह सक्रिय हैं, उनसे भारत के अच्छे संबंध हैं. वे देश भी आतंकी घटनाओं से पीड़ित हो चुके हैं. हमें उन देशों से भारत विरोधी गुटों से जुड़ी सूचनाओं की मांग करनी चाहिए. यदि इन प्रवृत्तियों को समय रहते नहीं रोका गया, तो प्रवासी भारतीयों के विशाल समुदाय के लिए अनेक समस्याएं पैदा हो सकती हैं. खालिस्तान समर्थक गुट विदेशों में बसे भारतीयों में आपसी फूट पैदा करने का पूरा प्रयास कर रहे हैं. यह भारत के लिए एकता, अखंडता एवं सुरक्षा से संबंधित मसला है. हमें कूटनीतिक उपायों से विभिन्न देशों को भरोसे में लेना होगा तथा भारतीय प्रवासी समुदाय की एकजुटता को सुनिश्चित करना होगा.

पंजाब लंबे समय तक अलगाववाद की आग में झुलसता रहा था और बड़ी संख्या में लोगों की जानें गयीं. वह स्थिति अब दुबारा पैदा नहीं होनी चाहिए. इस संबंध में राज्य और देश के स्तर पर हमें अलगाववादी प्रवृत्तियों को रोकने के लिए ठोस कार्रवाई करनी चाहिए. ऐसी प्रवृत्तियों को जो विदेशों से मदद मिल रही है, उसे बंद करने के लिए हमें विभिन्न सरकारों पर दबाव बढ़ाना होगा तथा अंतरराष्ट्रीय समुदाय को साथ जोड़ना होगा.

जब पंजाब में हिंसा और आतंक का दौर था, तब राज्य और देश में सांप्रदायिक माहौल भी बना था. उस माहौल ने बड़ी संख्या में लोगों की जानें लीं. हत्याओं का सिलसिला देश की सीमा से बाहर निकलकर यूरोप और अमेरिका तक पहुंचा था. देश और प्रवासी भारतीय समुदाय को सचेत रहना होगा कि उनके बीच संप्रदाय के आधार पर कोई फूट नहीं हो.

जो भी ताकतें अमृतपाल और उसके अलगाववादी एजेंडे के पीछे हैं, वे यही चाहती हैं कि भारत समुदायों की आपसी रंजिश और लड़ाई में फंस कर रह जाए. पंजाब और कश्मीर में पाकिस्तान की यही मंशा रही है. तो, हमें अलगाववाद को परास्त करने के लिए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों मोर्चों पर काम करना होगा. किसी भी तरह लापरवाही बहुत नुकसानदेह साबित हो सकती है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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