17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Sarhul Festival: ‘हमरे कर लुगा हमरे कर चिन्हा’ के थीम पर सजा रांची बाजार, इन डिजाइन के कपड़ों की बढ़ी डिमांड

24 मार्च को कार्निवल की तर्ज पर सरहुल की शोभायात्रा निकलेगी. पारंपरिक वेश-भूषा और पारंपरिक अंदाज में लोग इसमें शामिल लेंगे. इस वर्ष सरहुल पर्व युवाओं के बीच 'हमरे कर लुगा हमरे कर चिन्हा' यानी हमारा वस्त्र ही हमारी पहचान के थीम पर रमता नजर आ रहा है.

Sarhul Festival: प्रकृति पर्व सरहुल को लेकर राजधानी रांची में तैयारी जोरों पर है. 24 मार्च को कार्निवल की तर्ज पर सरहुल की शोभायात्रा निकलेगी. पारंपरिक वेश-भूषा और पारंपरिक अंदाज में लोग इसमें शामिल लेंगे. इस वर्ष सरहुल पर्व युवाओं के बीच ‘हमरे कर लुगा हमरे कर चिन्हा’ यानी हमारा वस्त्र ही हमारी पहचान के थीम पर रमता नजर आ रहा है. पर्व में अपने पहनावा-ओढ़ावा को खास दिखाने की तैयारी चल रही है. इसके लिए महीनों पहले से शहर के ट्राइबल युवा डिजाइनरों के पास स्टॉक तैयार करने की मांग पहुंच चुकी थी. ऐसे में पारंपरिक लाल पाड़ साड़ी, धोती, लुंगी, चादर, गमछा और पगड़ी तैयार किये जा रहे हैं. डिजाइनरों ने हैंडलूम कपड़े काे सरहुल का आइकॉन बनाया है. इसके लिए आदिवासी बुनकरों के हाथों बने हैंडलूम कपड़े शहर में मंगवाये गये हैं. कुखेना और पड़िया डिजाइन के कपड़ों की मांग सबसे ज्यादा है.

इस वर्ष सभी अखड़ा ने पारंपरिक वेशभूषा को अनिवार्य किया है, ताकि पारंपरिक झारखंडी परिधान लोगों के बीच व्यावहारिक बन सके. शहर के युवा फैशन डिजाइनर पारंपरिक कुखेना, पड़िया, बिरु और छेछाड़ी को नये कलेवर में ढाल चुके हैं. शहर के उरांव, मुंडा, हो और संताली जनजाति के लोग इन फैशन ट्रेंड को अपना भी रहे हैं. इससे इस वर्ष ट्राइबल फैशन का कारोबार वर्षों बाद करोड़ों का व्यापार करने में सफल होगा.

अखड़ा का हो रहा रंग-रोगन

इधर, शहर के विभिन्न अखड़ा में रंग-रोगन का काम जारी है. सरहुल पर्व के लिए विभिन्न अखड़ा को स्थानीय संस्कृति में ढाला जायेगा. सिरमटोली सरना स्थल की चहारदीवारी पर इस वर्ष सोहराई पेंटिंग नजर आयेगी. इसके अलावा अखड़ा प्राकृतिक हरे रंग से जगमगायेगा. वहीं, रांची यूनिवर्सिटी के टीआरएल विभाग का अखड़ा पारंपरिक तरीके से सजाया जा रहा है. यहां करम वृक्ष के चारों ओर लगे सखुआ के वृक्षों को सरई व अन्य फूलों से सजाया जायेगा. साथ ही अखड़ा में लोगों का स्वागत प्रकृति पर्व सरहुल के उल्लास का संदेश देती हुई रंगोली से होगा.

सिमडेगा और महुआटांड़ से पहुंचे कपड़े

पारंपरिक वस्त्र तैयार करने के लिए डिजाइनरों ने सिमडेगा से बिरू कपड़े और महुआटांड़ से छेछाड़ी कपड़े मंगवाये हैं. लाल सादा पाड़ के साथ कई तरह के मिक्स मैच इम्ब्रॉयडरी वर्क किये जा रहे हैं. कई परिधान में आदिवासी जनजाति की पहचान मिलती है. दिखने में एक समान कपड़ों के पैटर्न, रंग और इंब्रॉयडरी से किये गये प्राकृतिक थीम के हस्तशिल्प इन्हें खास बनाते हैं.

Also Read: Sarhul Festival: सरहुलमय हुई राजधानी रांची, 300 से अधिक अखड़ा से निकलेगी शोभायात्रा

  • उरांव जनजाति के कुखेना में नौ पट्टी का समावेश होता है. इसमें बुनकर सीधी लकीर या विभिन्न रंगों से हस्तशिल्प तैयार करते हैं.

  • संताली जनजाति के ओढ़ावा में ब्राइट कलर के पैटर्न मिलते हैं. इसमें लाल, सफेद, हरा, पीला, बैंगनी रंग के चेक मिलते हैं.

  • हो व मुंडारी जनजाति की पारंपरिक पोशाक में हैंडलूम वर्क देखने को मिलते हैं. खास कर फूल-पत्ति के डिजाइन के अलावा वर्ली आर्ट भी दिखेगा.

धोती-कुर्ता और लाल पाड़ साड़ी के अलावा बंडी व लहंगा भी

पहले जहां सिर्फ धोती-कुर्ता और लाल पाड़ साड़ी का चलन था. अब डिजाइनर बिरू कपड़े की हाफ शर्ट, फूल शर्ट, बंडी, कोटी, जैकेट, टी-शर्ट, कुर्ता-पजाम, रेडीमेड धोती पुरुषों के लिए तैयार कर रहे हैं. वहीं, महिलाओं और युवतियों के लिए पारंपरिक पड़िया के अलावा वन पीस, फ्रॉक, कुर्ती, सूट, स्ट्रॉल, लहंगा, ट्यूलिप, स्कर्ट तैयार कर रहे हैं. इसके अलावा डेनिम पैटर्न के जैकेट और ब्लेजर भी बाजार में उतार चुके हैं.

डिजाइनरों ने कहा

सरहुल में युवा अब पारंपरिक लुक से हटकर ट्रेंडी डिजाइन को अपना रहे हैं. इससे आदिवासी संस्कृति को नये सिरे से पेश किया जा रहा है. डिजाइनिंग खास बुनकरों से करायी गयी है. पैटर्न और ड्रेस कोड को भी थीम में बदलने की कोशिश की जा रही है. 

– स्नेहा खलखो, ट्राइबल डिजाइनर

पारंपरिक परिधान में मॉडर्न टच देने से बाजार बढ़ा है. कलेक्शन तैयार करने के लिए लाखों के स्टॉक तैयार किये गये. सरहुल के अवसर पर युवा वर्ग से लेकर बुजुर्गों के लिए डिजाइनर कपड़े हैं. लोग बंडी, गमछा के अलावा, शॉर्ट कुर्ता व कुर्ती की मांग कर रहे हैं. 

– एलिशा सौम्या, ट्राइबल डिजाइनर

लोगों ने कहा

मैंने सरहुल को खास बनाने के लिए स्पेशल बंडी खरीदी है. इसमें जय सरना लोगो लग है, जो एकजुटता का संदेश देता है. ड्रेस में लाल सादा के अलावा हो जनजाति का मिक्स पैटर्न है. 

– सुचित्रा टोप्पो, मोरहाबादी

पारंपरिक वेशभूषा को व्यवहार में लाने का खास अवसर है. ऐसे में पर्व नये लुक में ढलने का अवसर देते हैं. बिरू कपड़े के लाल सादा कंबीनेशन का कुर्ता और बंडी के साथ जैकेट व कोटी की खरीदारी की है. 

– अन्ना तिर्की, करमटोली

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें