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महिलाओं का डर भगाने के लिए साइकिल से देश भ्रमण पर निकली आशा पहुंची रांची

अपनी साधारण साईकिल से एक नवंबर से 12 राज्यों का सफर पूरा कर यहां पहुंची हैं. देश भ्रमण का उद्देश्य महिला सशक्तिकरण एवं सुरक्षा को लेकर महिलाओं का डर भगाना है. आशा का मानना है अपने ही देश में डर कैसा क्योंकि ये देश हमारा है. आशा उड़ीसा से जमशेदपुर होते हुए रांची पहुंची है.

लता रानी, रांची. मध्य प्रदेश के छोटे से गांव नाटाराम, रायगढ़ की रहने वाली 24 वर्षीय आशा मालवीय अपने साईकिल से देश भ्रमण का लक्ष्य लिए रांची पहुंची है. अपनी साधारण साईकिल से एक नवंबर से 12 राज्यों का सफर पूरा कर यहां पहुंची हैं. देश भ्रमण का उद्देश्य महिला सशक्तिकरण एवं सुरक्षा को लेकर महिलाओं का डर भगाना है. आशा का मानना है अपने ही देश में डर कैसा क्योंकि ये देश हमारा है. आशा उड़ीसा से जमशेदपुर होते हुए रांची पहुंची है. अब वह 23 मार्च को बंगाल के लिए रवाना होंगी. यहां सर्किट हाउस में रुकी हैं.

25, 000 किमी का सफर पूरा करने का लक्ष्य

उन्होंने अपना सफर अपने राज्य मध्य प्रदेश से शुरु कर गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, उड़ीसा होते हुए झारखंड तक उन्होंने अब तक 10, 650 किमी का सफर पूरा कर लिया है. पूरे देश में 28 राज्यों का भारत यात्रा कर अपने साइकिल से 25, 000 किमी का सफर पूरा करने का लक्ष्य रखा है. अपने साइकिल में ही दो बैग में अपने सफर में दैनिक जीवन से जुड़ी तमाम चीजों को रखा है. जिसमें अपनी बेडिंग तक समा लिया है.

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से की मुलाकात

अब तक के 12 राज्यों के सफर में उन्होंने उक्त राज्यों के राज्यपाल, सीएम, डीजीपी, आईएएस एवं आईपीएस अफसरों से मुलाकात कर महिला सशक्तिकरण एवं महिला सुरक्षा की बात है. सभी ने आशा की इस हौंसले की सराहना की है. आशा अब यहां पहुंच कर झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन से भी मुलाकात की है.

नेशनल खिलाड़ी और पर्वतारोही हैं, 20, 500 फीट पर लहराया तिरंगा

आशा एक एथलिट हैं. नेशनल गेम में 100 एवं 200 मीटर की एथलीट रहीं हैं. इन दिनों एमपी से हॉकी खेल रही हैं. उन्होंने 2019 में तेंजिंगखन सिक्किम की चोटी की 19545 फीट की फतह किया है. वहीं 2021 में बीसी राई, नेपाल भुटान बंग्लादेश की चोटी 20, 500 फीट को फतह किया और देश का तिरंगा लहराया.

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तीन साल की उम्र में ही पिता का हुआ निधन, मां ने खेतों में मजदूरी कर यहां तक पहुंचाया

आशा कहती हैं कि बचपन से ही पिता का प्यार नहीं मिल पाया. जब मैं तीन साल की थी, पिता का निधन हो गया. मां ने दूसरों के खेतों में काम करके हम दो बहनों की परवरिश की. बहन की शादी कर के उसका घर बसाया. मैं जो करना चाहती थी करने दिया. कभी भी महिला होने का डर नहीं लगा. देश की बेटियों के मन से सुरक्षा को लेकर डर भगाने के लिए ही मैं अपने साइकिल से भारत यात्रा पर निकली हूं. बिल्कुल सुरक्षित हूं. ये देश हमारा है फिर कैसा डर.

आपकी सुरक्षा सबसे पहले आपके हाथों में

देर रात साइकिल से अंधेरी जंगलों से गुजर रहीं हूं, किसी तरह की कोई परेशानी नहीं हुई बल्कि सबने साथ दिया. जहां जाती हूं प्रशासन को पहले ही सुचित कर देती हूं. देश की बेटियों से कहना चाहती हूं आपकी सुरक्षा सबसे पहले आपके हाथों में हैं. हमें खुद की सुरक्षा करना स्वयं आना चाहिए. हमारा सशक्तिकरण हम स्वयं कर सकते हैं.

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