13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Chaitra Navratri: रोचक है मां चतुर्भुजी मंदिर का इतिहास, नवरात्र पर लगता है एकमासी मेला, इस साल का आयोजन भव्य

चैत्र नवरात्रि के साथ-साथ लोगों को गढ़वा के मां चतुर्भुजी मंदिर में लगने वाले मेले का भी बेसब्री से इंतजार रहता है. इस एकमासी मेले को भव्य बनाने के लिए तैयारियां जोरों से चल रही हैं. सुप्रसिद्ध मां चतुर्भुजी मंदिर के प्रति लोगों में गहरी आस्था है. इसका इतिहास 300 साल पुराना और मान्यता काफी रोचक है.

Chaitra Navratri Special: गढ़वा जिले के केतार प्रखंड का मां चतुर्भुजी मंदिर काफी प्रसिद्ध है. चैत्र नवरात्रि के अवसर पर हर साल यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जो पूरे एक महीने तक चलता है. हर साल की तरह इस साल भी मेले का आयोजन हो रहा है. इस एकमासी मेले को लेकर तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं.

21 एकड़ में मेले का फैलाव

चैत्र नवरात्रि पर लगने वाले मेले को लेकर मां चतुर्भुजी मंदिर परिसर में झारखंड सहित पड़ोसी राज्यों से दुकानदारों का आना शुरू हो गया है. मेले में मंदिर परिसर के बाहर लगभग 400 से 500 छोटी-छोटी दुकानें लगाई जा रही हैं. मेले में पूजा सामग्री, खिलौने, चूड़ी, श्रृंगार आदि के दुकानों के लिए झोपड़ियां बनाने के साथ-साथ झूले भी लगाये जा रहे हैं. चैत्र नवरात्रि के अवसर पर यहां लगभग 21 एकड़ में मेले का फैलाव रहता है.

300 साल पुराना इतिहास, ये है मान्यता

मां चतुर्भुजी मंदिर का इतिहास लगभग 300 साल पुराना है. बताया जाता है कि करीब 300 साल पहले सोनपुरवा स्टेट के राजा एवं केतार निवासी जगजीवन बैगा को रात में सपना आया था कि केतार के भैंसहट घाटी में मां चतुर्भुजी की मूर्ति जमीन के नीचे दबी हुई है. जिसके बाद भैंसहट घाट पहुंचकर पहाड़ी से पत्थरों और मिट्टी को हटाकर देखा गया तो वहां पर सच में मां चतुर्भुजी की काली रंग की अद्भुत चतुर्भुज मूर्ति मिली. जिसके बाद बाजे-गाजे के साथ उस मूर्ति को हाथी पर बिठाकर राजा के घर ले जाया जाने लगा. इस दौरान भैंसहट घाटी से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर हाथी रास्ते में एक केंदू वृक्ष के नीचे बैठ गया, जहां से बहुत कोशिश करने के बाद भी हाथी आगे नहीं बढ़ा. जिसके बाद मूर्ति को वहीं पर स्थापित कर दिया गया और पूजा अर्चना शुरू कर दी गई.

Also Read: Chaitra Navratri 2023 Day 4, Maa Kushmanda Puja: आज हो रही है मां कूष्मांडा की पूजा, जानें विधि, मंत्र, आरती
मंदिर निर्माण और वास्तुकला

मां चतुर्भुजी की ख्याति आसपास के क्षेत्रों में बढ़ने के साथ ही सन 1987 में एक कमेटी बनाकर मंदिर निर्माण का कार्य प्रारंभ किया गया. 21 फरवरी 1988 को मंदिर के साथ सांकेतिक गुंबद की ढलाई पूरी की गई, जिसके बाद मां चतुर्भुजी मंदिर के ठीक सामने शिवलिंग की स्थापना की गयी. वर्तमान में मंदिर परिसर की 1.21 एकड़ भूमि है, जिसमें मां चतुर्भुजी के मंदिर का मुख्य गुंबद 151 फीट शंकूनुमा ऊंचा है, जबकि इसके चारों कोनों पर 51 फीट ऊंचा गुंबद बना हुआ है. इन चारों गुंबदों के नीचे मां लक्ष्मी, मां सरस्वती, मां दुर्गा और भगवान गणेश की कृत्रिम मूर्ति स्थापित की गई है.

60 किलोग्राम चांदी से जड़ा है मां का आसन

वहीं मां (चतुर्भुजी) काली के आसन को 2019 में 60 किलोग्राम चांदी से जड़ा श्रीयंत्र बनाया गया है. चतुर्भुजी मंदिर के सामने ही भगवान भोलेनाथ का भव्य मंदिर, उत्तर में हवन कुंड, सतबहिनी मूर्ति, हनुमान मंदिर, सीता राम जानकी मंदिर, दुर्गा माता के मंदिर के साथ-साथ मंदिर परिसर में वीआईपी गेस्ट हाउस, विवाह मंडप, झरना, सरयू दास, बकरा बलि स्थल, रामलीला मैदान, आदि को बहुत ही सुंदर ढंग से सजाया गया है.

मुख्य प्रसाद सिंदूर

यहां का मुख्य प्रसाद सिंदूर है. यहां सिंदूर के साथ मिट्टी के घोड़े, इलायची दाना, चुंदरी और नारियल चढ़ाते हैं. श्रद्धालु यहां मन्नत पूरी होने के बाद बकरे की बलि भी देते हैं (हालांकि प्रभात खबर किसी तरह की जीव हत्या को कोई बढ़ावा नहीं दोता है). मंदिर में सुरक्षा की दृष्टिकोण से चारों ओर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. यहां मंदिर की भूमि के अलावा निजी भूमि पर प्रत्येक वर्ष लोगों के सहयोग से मेले का प्रसार रहता है. ग्रामीण मंदिर परिसर के बाहर की फसलें काटकर रामनवमी के पहले ही मेले के लिए जमीन को स्वेच्छा से खाली कर देते हैं.

Also Read: Chaitra Navratri 2023: नवरात्रि में फलाहारी करने के हैं कई फायदे, इन बीमारियों से मिलती है मुक्ति
इस बार नहीं कर सकते पंडा नदी में स्नान

मंदिर में झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों से श्रद्धालु आते हैं और मां चतुर्भुजी के दर्शन के बाद पंडा नदी में स्नान करते हैं, लेकिन इस बार पंडा नदी के सूख जाने के कारण श्रद्धालुओं को यह अवसर नहीं मिल पाएगा. इसे देखते हुए श्रद्धालु के लिए मंदिर परिसर में ही अतिथि शाला के साथ-साथ पेयजल एवं स्नानागार की व्यवस्था की गई है.

आगजनी है मेले की प्रमुख समस्या

मंदिर कमेटी की विशेष चिंता आगजनी को लेकर लगी रहती है. यहां प्रतिवर्ष लगभग 500 फूंस की दुकानें महीने भर के लिए लगती है. जहां गलती से भी एक चिंगारी पड़ने पर देखते ही देखते पूरी दुकान जल जाती है. हाल में दो बार छोटी मोटी घटनाएं हुई हैं, जबकि 10 साल पहले एक भीषण आगजनी की घटना में लगभग 300 दुकानें जलकर राख हो गई थीं. तबसे मंदिर कमेटी एवं प्रशासन उस घटना की पुनरावृति न हो सके, इसे लेकर चुस्त-दुरुस्त रहते हैं.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें