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Exclusive: प्रोसेनजीत चटर्जी का खुलासा- इस वजह से ठुकराया था साजन और मैंने प्यार किया फिल्मों का ऑफर

प्रोसेनजीत चटर्जी ने कहा, हां मुझे साजन और मैंने प्यार किया ऑफर हुईं थी, लेकिन मैं उस वक़्त हिंदी इंडस्ट्री में इसलिए आने को तैयार नहीं था, क्योंकि मुझे पता नहीं था कि मैं यहां नंबर वन अभिनेता बन पाऊंगा या नहीं, जबकि बंगाल का मैं नंबर वन एक्टर था.

बांग्ला फिल्मों के सुपरस्टार प्रोसेनजीत चटर्जी जल्द ही अमेज़न प्राइम वीडियो की वेब सीरीज जुबली में नजर आने वाले हैं. 40 और 50 के दशक के हिंदी सिनेमा की कहानी कहती इस वेब सीरीज के बारे में प्रोसेनजीत कहते हैं कि यह शो कमाल का है. अब तक लोगों ने ऐसा कुछ नहीं देखा है. यह बात मैं दावे के साथ कह सकता हूं. उर्मिला कोरी से हुईं बातचीत के प्रमुख अंश…

आप संघई फिल्म के एक अरसे बाद किसी हिंदी प्रोजेक्ट का हिस्सा बने हैं, जुबली में आपके लिए सबसे अपीलिग क्या था?

जुबली वेब सीरीज मेरी 350 वाँ प्रोजेक्ट्स है. यह सही मायनों में मेरे लिए जुबली ही है. मैं हमेशा से न्यू एज डायरेक्टर्स के साथ काम करना चाहता हूं. विक्रमादित्य मोटवाने उन्ही में से एक हैं. मैं उन्हें बहुत पसंद करता हूं. उनकी सिनेमाई भाषा बिल्कुल अलग होती है. विक्रमादित्य ने मुझे सामने से कॉल किया और कहा कि दादा जुबली की कहानी मैं सात से आठ सालों से लिख रहा हूं, लेकिन रॉय के किरदार के लिए पहले दिन से आप ही मेरी पसंद थे. इस सीरीज का एकमात्र एक्टर मैं हूं, जिसे कास्टिंग एजेंसी ने नहींन, बल्कि निर्देशक ने चुना है. किरदार भी बहुत स्ट्रांग था, इसलिए मैंने जुबली कर ली.

जुबली में आपका किरदार हिमांशु राय से प्रेरित नजऱ आ रहा है?

प्रभाव है,लेकिन यह किसी की बायोपिक नहीं है. मेरा किरदार हिमांशु रॉय के साथ -साथ विनोद दा का भी मेल है. सीरीज देखकर आपको यह बात समझ ज्यादा आएगी.

आपको साजन और मैंने प्यार किया जैसी हिंदी फ़िल्में ऑफर हुईं थी, लेकिन आपने उन फिल्मों को मना कर दिया था?

हां मुझे साजन और मैंने प्यार किया ऑफर हुईं थी, लेकिन मैं उस वक़्त हिंदी इंडस्ट्री में इसलिए आने को तैयार नहीं था, क्योंकि मुझे पता नहीं था कि मैं यहां नंबर वन अभिनेता बन पाऊंगा या नहीं, जबकि बंगाल का मैं नंबर वन एक्टर था. उस वक़्त हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में बहुत प्रतिस्पर्धा थी. जैसा काम मैं करना चाहता था, वैसा मिलेगा या नहीं, जबकि बांग्ला फिल्मों में मैं अपने शर्तों पर काम कर रहा था. अभी भी मैं कोई रेस में शामिल नहीं होना चाहता हूं. मैं अच्छा काम करना चाहता हूं. मैं अभी भी खुद को स्टूडेंट ही मानता हूं. मौजूदा दौर में कई एक्टर्स हैं, जो बहुत उम्दा काम कर रहे हैं. जो मुझे भी और अच्छा करने के लिए प्रेरित करते हैं.

किसी खास एक्टर का नाम आप लेना चाहेंगे?

नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, 25 साल पहले कोई सोच भी नहीं सकता था कि वो फिल्मों के एक्टर बना सकते हैं, लेकिन आज दर्शक बदल गया है. उसे प्योर टैलेंट चाहिए.

आपने बाल कलाकार के तौर पर अपनी शुरुआत की थी किस तरह से आप अपनी जर्नी को देखते हैं?

साढ़े पांच साल की उम्र में मैंने छोटो जिज्ञासा फिल्म की थी. मेरे डैड के प्रोडक्शन की फिल्म थी, जिसे ह्रषिकेश दा ने निर्देशित किया था.मैं उस फिल्म को गिनता नहीं हूं, क्योंकि वो होम प्रोडक्शन की फिल्म थी. इस फिल्म के बाद मुझे बहुत सारे ऑफर्स आए. राज कपूर उस फिल्म का हिंदी रिमेक बनाना चाहते थे, लेकिन मेरी मां ने मना कर दिया. शक्ति सामंत भी मुझे लेकर एक फिल्म बनाना चाहते थे, लेकिन मेरी मां ने उनको भी इंकार कर दिया. दुति पाता से मैंने फिर से शुरुआत की, अमर संगी के बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. वो फिल्म 75 हफ्तों तक सिनेमाघरों में चली थी. वो फिल्म प्लैटिनम जुबली थी. मेरी 60 से 70 फ़िल्में सिल्वर जुबली हुईं हैं.30 से 35 गोल्डन जुबली हुईं हैं. मौजूदा दौर में मैं जुबली शब्द को नहीं सुन पाता हूं.

आपने कमर्शियल सिनेमा से अपनी पहचान बनायीं थी लेकिन फिर आप लीग से हटकर फिल्मों को प्रमुखता देने लगे, इसके पीछे की सोच क्या थी?

मैं बीस से बाईस फ़िल्में साल में करता था. कम से कम दस से 12 तो एक साल में होती ही थी,लेकिन एक वक़्त के बाद मैंने तय कर लिया कि जो मैं मेनस्ट्रीम सिनेमा करता हूं, वो अब मैं नहीं करूंगा बल्कि जो युवा अभिनेता आए हैं. उनको करने दूंगा.

मैं अलग तरह का सिनेमा करूंगा.अच्छी बात थी कि वो बदलाव का दौर था. रितु दा और गौतम दा की फिल्मों से मेरा यह फैसला और आसान हो गया.हर एक दशक के बाद सिनेमा में बदलाव आता है और उस बदलाव को समझते हुए मैं अच्छा काम करना चाहता हूं. हर दिन कोई मेरे काम से मेरा फैन हो. यही मेरी कोशिश रहती है. मैं शायद उन चुनिंदा एक्टर्स में से हूं, जिसकी फिल्म मां, बेटी और नातिन एक साथ देखती है, क्योंकि हर उम्र के दर्शकों को मैं खुद से जोड़ना चाहता हूं.

एक वक़्त था जब बांग्ला सिनेमा हिंदी सिनेमा पर हावी रहता था कई बांग्ला फिल्मों के हिंदी रीमेक बनते थे, लेकिन अब साउथ ने वो जगह ले ली है?

साउथ के मेकर्स मेरे पिता विश्वजीत के समय से एक्टिव हैं.इविएम, जेमिनी ये अपनी सुपरहिट रिजनल फिल्मों का हिंदी रिमेक मेरे पिता, जीतू जी, दिलीप कुमार साहब को लेकर साउथ में ही बनाते थे. ये लोग शुरुआत से ऐसा करते आए हैं. मुझे नहीं पता कि उत्तम कुमार और सुचित्रा सेन ने ज्यादा से ज्यादा हिंदी फ़िल्में क्यों नहीं की, कोलकाता में रहते हुए. उनकी जोड़ी कमाल की थी. शायद ये बात रही होगी कि वो जिस तरह का सिनेमा चाहते थे, वो बांग्ला में बन रहा था. साहित्य की ओर हमारा हमेशा से रुझान रहता है. हम अलग तरह का सिनेमा बनाते आए हैं. जो सभी भारतीय दर्शकों को अपील नहीं करेगा.हम बहुत ही जमीन से जुड़ी कहानियां बनाते आएं हैं. हम बाहुबली नहीं बना सकते हम देवी चौधरानी बना सकते हैं. यह हमारी सेंसिबिलिटी है.

क्या कभी लगा नहीं कि अपनी फिल्मों को पैन इंडिया रिलीज करें?

हां मुझे लगता है कि हम वहां गलत हो गए थे. चोखेर बाली के बाद हमें उस तरह की फ़िल्में और करनी चाहिए थी. चोखेर बाली और रोजा ये ऐसी फ़िल्में थी जो हिंदी, साउथ और बांग्ला तीनों भाषाओं में सराही गयी थी.

आप 60 साल के हो चुके, लेकिन आप अभी भी किसी युवा की तरह लगते हैं, इस फिटनेस का राज़ क्या है?

राज कुछ नहीं हैं.हाल ही एक पार्टी में अनिल कपूर से मिला था. काफी समय बाद मैं उनसे मिला था. हमने एक रंग का शूट भी पहना हुआ था.उस दौरान भी सभी ने हमारे फिटनेस पर ही बात की थी. यह हमारे जेनेटिक में है. इसके अलावा यह हम बहुत अनुसाशित भी हैं. वैसे पूरे देश में जितने भी 55 साल की उम्र वाले एक्टर हैं. वह 50 के बाद और ज्यादा फिट हुए हैं. देखा जाए तो 50 प्लस एक्टर्स ने ही बीते दस सालों से स्टारडम को संभाल रखा है. शाहरुख़,सलमान, अजय के अलावा बांग्ला और साउथ फिल्मों में भी. यह प्रोफेशनल कमिटमेंट भी है,क्योंकि हमें एक्टिंग के लिए पैसे मिलते हैं. ऐसे में हमें मेरे निर्माताओं की फिल्मों के साथ न्याय करना ही पड़ता है, जिसके लिए फिट रहने की जरूरत है. आपको कुछ चीज़ें मेन्टेन करनी पड़ती है. हां पिछले कुछ समय से अपने किरदारों की वजह से मुझे अपना लुक भी बदलना पड़ता है. कभी मैं सुभाष चंद्र बोस बनता हूं, कभी काका बाबू, एक बांग्ला फिल्म शेष कोथा आगामी 14 अप्रैल को रिलीज हो रही है.उसमें मेरा किरदारों बिल्कुल ही अलग तरह का है, जिस वजह से मुझे एकदम ही दुबला होना पड़ा था.

क्या अब आप ज्यादा से ज्यादा हिंदी प्रोजेक्टस से जुड़ना चाहेंगे?

अच्छा रोल हुआ, तो ज़रूर वैसे मैं अपने प्रोडक्शन हाउस में भी कुछ हिंदी प्रोजेक्ट्स बनाने की तैयारी में हूं.

अपने पिता को लेकर भी कुछ प्रोजेक्ट करने की सोच रहे हैं?

मुझे बस उनका आशीर्वाद चाहिए और कुछ नहीं.

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