गोरखपुर. यूपी के गोरखपुर में मेयर पद के अनारक्षित होने से शहर के उन नेताओं में महत्वकांक्षी उभर आई है, जिन्होंने लंबे समय तक मेयर सीट पर आरक्षण होने से अपनी इच्छा को दबाकर रखा था. लेकिन, इस बार मेयर सीट अनारक्षित होने से सामान्य वर्ग में आने वाले नेताओं ने अपनी दावेदारी पार्टी में करनी शुरू कर दी है. सभी पार्टियों के नेताओं में इस समय अपने दावेदारी को लेकर कशमकश तेज हो गई है. नेताओं ने बड़े पदाधिकारियों के घरों से लेकर पार्टी कार्यालय तक के चक्कर लगाते हुए नजर आ रहे हैं. वहीं संख्या को आधार बनाकर अनारक्षित वर्ग के दावेदार भी पूरी मजबूती से खुद को मजबूत प्रत्याशी बता रहे हैं.
निकाय चुनाव में मेयर पद को लेकर आरक्षण आने के बाद सभी पार्टियों में सरगर्मी तेज हो गई है. पहली बार गोरखपुर नगर निगम के महापौर का पद अनारक्षित हुआ है. आरक्षण की सूची आने के बाद आरक्षण को लेकर लगाई जा रही तमाम अटकलों पर विराम लग गया. इससे पहले दिसंबर महीने की 5 तारीख को नगर निगम के महापौर पद का आरक्षण सामने आया तो लोगों की वर्षों पुरानी मनोकामना पूरी हो गई थी. लेकिन चुनाव स्थगित हो जाने और नए सिरे से आरक्षण जारी किए जाने की सूचना के बाद बदलाव की अटकलें लगाई जा रही थी.
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1995 – राजेंद्र शर्मा – अन्य पिछड़ा वर्ग
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2000 – अमरनाथ यादव उर्फ आशा देवी –अन्य पिछड़ा वर्ग
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2006 – अंजू चौधरी –अन्य पिछड़ा वर्ग
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2012 – डॉक्टर सत्य पांडे – महिला
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2017 – सीताराम जयसवाल – अन्य पिछड़ा वर्ग
आरक्षण की सूची जारी होने के बाद भाजपा कार्यालय की भी सरगर्मी बढ़ गई है. मेयर की सीट अनारक्षित होने से पार्षद प्रत्याशियों से ज्यादा मेयर पद के प्रत्याशी मेयर के टिकट की दावेदारी के लिए हाजिरी लगा रहें हैं. वहीं पार्षद पद के लिए भी हर वार्ड से कई प्रत्याशी दावेदारी कर रहे हैं. ऐसे में पार्षद पद से ज्यादा मेयर पद के लिए हर पार्टियों में प्रत्याशी चुनना पदाधिकारियों के लिए चुनौती बन गई है.
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भाजपा पार्टी में मेयर पद को लेकर खास तौर से घमासान देखने को मिल रहा है. बीजेपी के क्षेत्र और जिला स्तर के वरिष्ठ पदाधिकारी मेयर बनने का सपना देखने लगे हैं. पार्टी के प्रति निष्ठा और समर्पण की दलील देकर यह पदाधिकारी अपनी नेतृत्व क्षमता के संस्मरण भी उन्हें सुना रहे हैं. जिससे उन्हें टिकट दिलाने में सहयोग की उम्मीद है. पार्टी सूत्रों की मानें तो अब तक 100 के करीब कार्यकर्ता मेयर के टिकट को लेकर अपनी दावेदारी का दावा ठोंक चुके हैं. इसमें बड़ी संख्या कायस्थ समाज के लोगों की है.
कायस्थ समाज के लोगों की माने तो गोरखपुर महानगर में कायस्थ समाज की संख्या पर्याप्त है. लेकिन इसके बावजूद भी इस समाज के लोगों को तवज्जो नहीं दी गई. वहीं ब्राम्हण और राजपूत बिरादरी के नेता भी सामने आ रहें है. उन लोगों की माने तो पहली बार सामान्य सीट होने से उन लोगों को पहली बार मौका मिला है. अब देखने की बात है कि इस कशमकश के बीच पार्टी किसको मैदान में उतारती है.
रिपोर्ट – कुमार प्रदीप,गोरखपुर