शैलेंद्र महतो, पूर्व सांसद
4 अप्रैल, 1982 को भूतपूर्व सैनिक और राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त गंगाराम कालुंडिया की निर्मम हत्या कर दी गयी थी. झारखंड मुक्ति मोर्चा के तत्वावधान में खरकई बांध संघर्ष समिति का गठन किया गया था. गंगाराम कालुंडिया को इस संगठन का महासचिव बनाया गया था और सिद्धू तियू अध्यक्ष थे. कालुंडिया की हत्या के कुछ दिन पूर्व 16 मार्च, 1982 को मेरे नेतृत्व में सिंहभूम जिला कमेटी की ओर से झारखंड मुक्ति मोर्चा की चाईबासा में विशाल जनसभा आयोजित की गयी थी. सभा में करीब 30 हजार लोग आये थे, जिसमे केंद्रीय नेतृत्व ( बिनोद बिहारी महतो, शिबू सोरेन, एके राय) भी शामिल हुआ था. सभा में प्रस्ताव लाया गया कि खरकई डैम को किसी भी कीमत पर बनने नहीं दिया जायेगा और न ही किसी का विस्थापन होगा. सभा में लिये गये इस फैसले के खिलाफ बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री डाॅ जगन्नाथ मिश्र की सरकार ने तत्काल कार्रवाई करने के लिए जिला प्रशासन को सख्ती बरतने का आदेश दिया था.
चाईबासा के इलीगाड़ा गांव के रहने वाले थे
गंगाराम कालुंडिया अवकाश प्राप्त सैनिक और राष्ट्रपति पुरस्कार विजेता थे. उन्होंने बिहार रेजीमेंट में रहते हुए 1962, 1965 और 1971 के युद्ध में हिस्सा लिया था. उनकी सेवा भावना से खुश होकर उन्हें नायब सूबेदार बना दिया गया था. सेना से अवकाश प्राप्त करने के बाद कालुंडिया अपने गांव आ गये और अपनी जमीन पर खेतीबाड़ी करने लगे. चाईबासा से लगभग 10-15 किलोमीटर की दूरी पर बसे इलीगाड़ा गांव निवासी गंगाराम सेना से अवकाश प्राप्ति के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा से जुड़ गये.
शरीर पर थे दर्जनों जख्म, पहचानना मुश्किल था
4 अप्रैल, 1982 को तड़के चार बजे चाईबासा के डीएसपी, थाना के सर्किल इंस्पेक्टर और मजिस्ट्रेट दलबल के साथ कालुंडिया के घर उलीगाड़ा पहुंचे और उनकी पत्नी को जबरन अपने साथ चाईबासा ले गये. तत्कालीन पुलिस अधीक्षक रणधीर प्रसाद वर्मा और सबडिवीजनल अफसर मंडल ने उनकी पत्नी से कहा कि सदर अस्पताल से अपने पति का शव ले जायें. कालुंडिया के शव को पहचाना नहीं जा सकता था. शरीर पर दर्जन भर से ज्यादा निशान थे.
सरकार से जमीन का मांगा था मुआवजा
कालुंडिया का कसूर यह था कि उन्होंने विश्व बैंक द्वारा संचालित स्वर्णरेखा परियोजना अंतर्गत खरकई परियोजना का विरोध किया था. जमीन का मुआवजा देने की सरकार से मांग की थी. इस परियोजना में जिन-जिन गांवों का नामोनिशान मिट जाने वाला था, उन्हीं में कालुंडिया का गांव भी था. गंगाराम कालुंडिया की मौत से पर्दा हटने के बाद इलीबाड़ा गांव में प्रशासनिक अधिकारियों का तांता लग गया. जिला प्रशासनिक अधिकारियों ने शहीद कालुंडिया की एक मात्र संतान श्रीमती जानकी को आर्थिक सहायता एवं नौकरी का प्रलोभन दिया, ताकि मामले को शांत किया जा सके. परंतु वीर बाप की बहादुर पुत्री ने किसी भी प्रकार की आर्थिक सहायता लेने से इनकार करते हुए कहा कि वह अपने पिता के हत्यारों से किसी भी प्रकार की आर्थिक सहायता लेना पसंद नहीं करेंगी.