प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगी. आपको बता दें कि, पिछले साल 9 सितंबर को इससे जुड़ी याचिकाओं को तीन जजों की पीठ के पास भेजा गया था. याचिका में कहा गया था कि यह एक्ट लोगों की समानता, जीने के अधिकार और व्यक्ति की निजी आजादी के आधार पर पूजा के अधिकार का हनन करता है.
सुप्रीम कोर्ट में होने वाली इस सुनवाई पर पूरे देश की निगाहें टिकी हैं. इस केस के फैसले से इस देश में आगे की राजनीतिक और धार्मिक विवादों की दिशा तय हो सकती है. सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की पीठ – CJI डीवाई चंद्रचूड़ सिंह, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेपी पादरीवाला इन सभी याचिकाओं पर सुनवाई करेगी . पीठ इस एक्ट की संवैधानिकता और वर्तमान संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता पर भी सुनवाई करेगी.
सुप्राीम कोर्ट ने जैसे ही वर्शिप एक्ट के खिलाफ वाली याचिकाओं पर सुनवाई की स्वीकृति दी देश में विवादित धार्मिक स्थलों को लेकर नये सिरे बहस प्रारंभ हो गई. कोर्ट के फैसले से वाराणसी स्थित ज्ञानवापी और मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्म भूमि विवाद पर भी बड़ा असर पड़ सकता है. इन दोनों धार्मिक स्थलों के अलावा कई ऐसे ऐतिहासिक स्थल और इमारतें हैं जिनको लेकर भी आये दिन विवाद होते रहे हैं. जैसे कि, दिल्ली का कुतुब मीनार, आगरा का ताजमहल – इनकी बुनियाद हिंदू धार्मिक स्थलों की थी. कहा जाता है जिनका अस्तित्व मुगलकाल में ध्वस्त कर दिया गया.
प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट 1991 के कुछ प्रावधानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कुल छह याचिकाएं लगाई गई हैं . इनमें पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय के अलावा विश्व भद्र पुजारी पुरोहित महासंघ की याचिकाएं भी शामिल हैं. पूरे मामले पर सुन्नी मुस्लिम उलेमाओं का संगठन भी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है. संगठन ने कहा है अयोध्या के फैसले के दौरान कोर्ट बाकी धार्मिक स्थलों के बारे में जो वर्जन दे चुका है, उसमें बदलाव नहीं किया जाना चाहिए. इसमें बदलाव से अल्पसंख्यकों में असुरक्षा पनपेगी.
1991 का पूजा अधिनियम 15 अगस्त 1947 से पहले सभी धार्मिक स्थलों की यथास्थिति बनाए रखने की बात कहता है. वह चाहे मस्जिद हो, मंदिर, चर्च या अन्य सार्वजनिक पूजा स्थल. वे सभी उपासना स्थल इतिहास की परंपरा के मुताबिक ज्यों का त्यों बने रहेंगे. उसे किसी भी अदालत या सरकार की तरफ से बदला नहीं जा सकता.सार्वजनिक पूजा स्थलों के चरित्र को संरक्षित करने को लेकर संसद ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि इतिहास और उसकी गलतियों को वर्तमान और भविष्य के परिप्रेक्ष्य में बदलाव नहीं किये जा सकते. सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के अयोध्या फैसले के दौरान भी पांच न्यायाधीशों ने एक स्वर में यही कहा था.