मशहूर अभिनेता संजय मिश्रा अपनी दमदार एक्टिंग और परफेक्ट कॉमिक टाइमिंग के लिए जाने जाते हैं. उनकी एक्टिंग का हर कोई दीवाना है. फैंस उनकी एक झलक पाने के लिए बेताब रहते हैं. ऐसे में ‘बॉलीवुड’ शब्द को थोपा हुआ बताते हुए संजय मिश्रा ने जोर देकर कहा कि इसके स्थान पर ‘भारतीय सिनेमा’ या ‘हिन्दी सिनेमा’ सरीखे संबोधनों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
संजय मिश्रा ने इंदौर में पीटीआई-भाषा से बात करते हुए कहा, ”बॉलीवुड नाम थोपा हुआ लग रहा है. यह बॉलीवुड कौन-सा शहर है भाई? यह नाम एक तरह की नकल है.” उन्होंने कहा कि ‘बॉलीवुड’ के स्थान पर ठीक उसी तरह भारतीय सिनेमा या हिन्दी सिनेमा शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, जिस तरह भारत की टीम को भारतीय टीम कहा जाता है.
59 वर्षीय अभिनेता ने एक सवाल पर इस बात से इनकार किया कि बॉलीवुड को भारतीय सिनेमा या हिन्दी सिनेमा कहे जाने की वकालत करना उनका दक्षिणपंथी रुझान प्रदर्शित करता है. यह पूछे जाने पर कि ओटीटी मंच पर प्रसारित कई फिल्मों और कार्यक्रमों में गाली-गलौज और हिंसा के दृश्यों की भरमार के चलते क्या इस माध्यम को लेकर सख्त सेंसरशिप की जरूरत है. मिश्रा ने फौरन जवाब दिया, ”मैं शुरू से मानता रहा हूं कि यह आपको (दर्शक को) खुद तय करना होगा कि आपको ओटीटी मंच का कोई कार्यक्रम देखना है या नहीं? अगर मुझे कोई कार्यक्रम गड़बड़ लग रहा है, तो मैं इसे क्यों देखूं और मेरा गड़बड़ कार्यक्रम देखने का मन है, तो मैं देखूंगा.”
उन्होंने कहा कि ओटीटी मंच के कारण नयी विषयवस्तु के साथ ही नये अभिनेता, निर्देशक और कैमरामैन सामने आ रहे हैं और इन लोगों को काम का पूरा मौका मिल रहा है, जो गुजरे दौर में बहुत मुश्किल था. क्या “आरआरआर” फिल्म के नाटू-नाटू गीत और वृत्तचित्र ‘‘द एलिफेंट व्हिसपरर्स’’ को ऑस्कर पुरस्कार मिलना दिखाता है कि भारतीय फिल्मों के प्रति पश्चिमी जगत का रवैया बदल रहा है? इस सवाल पर मिश्रा ने कहा, किसी का रवैया बदलवाने के लिए अच्छा काम करने की जरूरत होती है. अगर आपका काम अच्छा होगा, तो लोगों का रवैया बदल जाएगा.
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उन्होंने भारतीय सिनेमा को भाषाई खांचों में बांटे जाने पर आपत्ति जताई और कहा कि दोनों ऑस्कर पुरस्कार भारतीय सिनेमा को मिले हैं. मिश्रा ने कहा, ”सत्यजीत रे को भी जब ऑस्कर मिला था, तो यह बंगाली सिनेमा के लिए नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा के लिए मिला था.” दक्षिण भारतीय भाषाओं की फिल्मों की नकल के आरोपों से उन्होंने हिन्दी सिनेमा का बचाव किया. मिश्रा ने कहा, यह नकल करना क्या होता है? शेक्सपियर और कालिदास की (क्रमश: अंग्रेजी और संस्कृत में लिखी गईं) रचनाओं का भी अन्य भाषाओं में अनुवाद किया गया था. इसके पीछे यही सोच थी कि उनकी रचनाओं को हर जगह पहुंचाया जाए. कला जगत में इस अनुवाद को नकल या चोरी नहीं कहते.” मिश्रा आगामी फिल्म चल जिंदगी फिल्म के प्रचार के लिए इंदौर आए थे. जल्द ही रिलीज होने जा रही इस फिल्म को विवेक शर्मा ने निर्देशित किया है.