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SC से RSS को तमिलनाडु में मार्च निकालने की क्यों मिली अनुमति? DMK सरकार को लगा झटका

RSS march in Tamil Nadu: सुप्रीम कोर्ट ने डीएमके सरकार के अनुरोध को खारिज करते हुए आरएसएस को तमिलनाडु में रैलियां करने की अनुमति दे दी. जिसे राज्य सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है.

RSS march in Tamil Nadu: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एमके स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके सरकार के अनुरोध को खारिज करते हुए आरएसएस (RSS) को तमिलनाडु में रैलियां करने की अनुमति दे दी. डीएमके सरकार ने आरएसएस को तमिलनाडु में मार्च निकालने की अनुमति देने वाले मद्रास हाईकोर्ट के फरवरी के आदेश को चुनौती देते हुए अदालत में कानून और व्यवस्था की चिंताओं का हवाला दिया था.

जानिए कोर्ट ने क्या कुछ कहा…

कोर्ट ने यह कहते हुए अनुमति दी कि किसी भी संगठन को मार्च निकालने से सिर्फ इसलिए नहीं रोका जा सकता है, क्योंकि उसकी विचारधारा अलग है. कोर्ट ने कहा कि राज्य में प्रत्येक संगठन या विचारधारा एक-दूसरे के लिए स्वीकार्य होनी चाहिए. हाईकोर्ट के आदेश को कायम रखते हुए शीर्ष अदालत में न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यन और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय के समक्ष राज्य सरकार द्वारा खारिज की गई मुख्य आपत्ति यह थी कि किसी अन्य संगठन पर प्रतिबंध लगाने के आदेश के बाद कानून और व्यवस्था की समस्याएं कुछ क्षेत्रों में सामने आईं. जिसमें कहा गया था कि इसके चलते कई मामले दर्ज किए गए. शीर्ष अदालत ने कहा कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) पर प्रतिबंध के बाद कानून और व्यवस्था की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए राज्य में पंजीकृत कई मामलों में आरएसएस के सदस्य पीड़ित थे और अपराधी नहीं थे. बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट ने न केवल कानून के प्रासंगिक प्रावधानों की सही व्याख्या की, बल्कि संवेदनशील क्षेत्रों में मार्च की अनुमति देते हुए आवश्यक शर्तें भी लगाईं.

RSS ने किया था ये आग्रह

बताते चलें कि 27 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य की एक याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसमें RSS ने आग्रह किया था कि उसके मौलिक अधिकारों पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है और राज्य कह रहा है कि अधिकार निरपेक्ष नहीं थे. आरएसएस ने 2 अक्टूबर 2022 को स्वतंत्रता के 75वें वर्ष, भारत रत्न डॉ. बीआर अम्बेडकर की जन्म शताब्दी और विजयादशमी को लेकर तमिलनाडु पुलिस से इजाजत मांगी थी.

मद्रास हाईकोर्ट ने दिया था यह आदेश

पिछले साल 22 सितंबर को हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश ने राज्य के अधिकारियों को 12 शर्तों के साथ मार्च की अनुमति देने का निर्देश दिया था. आदेश में शामिल था कि कार्यक्रम के दौरान, कोई भी व्यक्ति, किसी भी जाति, धर्म आदि के बारे में न तो गीत गाएगा और न ही कुछ बुरा बोलेगा और यह कि जुलूस करने वाले किसी भी तरह से किसी भी धार्मिक, भाषाई, सांस्कृतिक और अन्य प्रकार की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाएंगे.

DMK सरकार ने आदेश को दी थी चुनौती

इस आदेश को चुनौती देते हुए डीएमके सरकार ने हाईकोर्ट में एक समीक्षा आवेदन दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि आरएसएस 2 अक्टूबर को यानि रविवार के दिन मार्च निकालना चाहता है. कहा गया था कि रविवार को ईसाई बड़ी संख्या में गिरजाघरों में प्रार्थना करने जाएंगे. साथ ही तर्क दिया गया था कि आरएसएस द्वारा चुने गए अधिकांश मार्ग मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में थे, जहां मस्जिदें स्थित हैं और इसलिए धर्म और जाति के आधार पर सांप्रदायिक टकराव की संभावना हो सकती है. हालांकि, हाई कोर्ट ने पिछले साल 2 नवंबर को राज्य की समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया था. इसके बाद, आरएसएस के पदाधिकारियों ने 22 सितंबर के आदेश का पालन न करने की शिकायत करते हुए अवमानना याचिका के साथ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उन्होंने कहा कि आदेश के बावजूद अधिकारियों ने उनके आवेदन को खारिज कर दिया.

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