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झारखंड के इन 9 किसानों ने बंजर भूमि में लगाये आम के पौधे, आज हो रही है अच्छी आमदनी

इस विषय पर जब हमने उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि जांहो गांव मुख्यतः पठारी इलाके में हैं. ज्यादातर जमीन ऊपरी टांड पर होने के कारण बंजर ही रहता था. खेती जहां होती थी वहां भी सिंचाई की उतनी सुविधा नहीं होती थी.

पलामू, सैकत चटर्जी:

इंसान अपनी चाहत, लगन और मेहनत से अपनी किस्मत बदल सकता है, इसका जीता जागता उदाहरण है लातेहार के मनिका प्रखंड के जाँहो गांव के नौ किसान. इन किसानों ने अपनी मेहनत और लगन के बलबूते अपने सात एकड़ बंजर जमीन को उपजाऊ बना दिया है. इसमें उन्होंने आम की खेती की. कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य बनाये रखा. आज वे दूसरों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गये हैं. इनके प्रयास के चर्चे दूर-दूर तक हो रही है. प्रभात खबर ने भी उनकी सफलता की राज को जानने के लिए खुद उन किसानों से बात कर रिपोर्ट तैयार की.

कैसे बनाया बंजर जमीन को उपजाऊ

इस विषय पर जब हमने उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि जाँहो गांव मुख्यतः पठारी इलाके में हैं. ज्यादातर जमीन ऊपरी टांड पर होने के कारण बंजर ही रहता था. खेती जहां होती थी वहां भी सिंचाई की उतनी सुविधा नहीं होती थी. ऐसे में लोगों का ध्यान खेती के प्रति कम और मजदूरी के प्रति अधिक रहता था. ऐसी स्थिति में 2016 के आसपास गांव में ग्राम स्वराज अभियान के तहत कुछ काम होने लगे. गांव की समस्याएं सामने आने लगी.

बैठक हुई तो इस बात पर चर्चा की गयी कि कम पानी में कैसे खेती की जाए. ऊपरी तथा बंजर जमीन को कैसे उपजाऊ बनाया जाए. इसकी जानकारी दी गयी. लोग धीरे धीरे इसके लिए तैयार हुए और खेती करने को लेकर उत्सुकता दिखाने लगे

लोगों ने समझा सामूहिक खेती का महत्व

बैठकों के माध्यम से लोगों को सामूहिक खेती का महत्व बताया गया. एक जगह अगर कई लोगों की जमीन हो तो उसे कैसे एक साथ मिलाकर बड़े पैमाने पर खेती किया जा सकता है. धीरे धीरे लोगों को इससे होने वाले फायदे समझ में आने लगा. हालांकि कई लोगों को इस बात का भी डर था कि कोई दबंग जमीन को हड़प न लें. ऐसे में उन्हें बताया गया कि यह पूरी तरह से कागजी कार्रवाई, और सभी के सहमति और हस्ताक्षर के साथ होगा. ये सुनकर लोगों के मन में फिर से विश्वास जाग गया.

इसके बाद नौ किसान साथ आये और अपनी सात एकड़ जमीन मिलाकर एक विशाल खेत का रूप दिया गया. फिर उसमें आम की खेती शुरू की गयी. इन किसानों को एकजुट करने में कमलेश उरांव का बड़ा योगदान रहा. फिर नरेगा के तहत 2017 में बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने का काम शुरू किया गया.

कौन हैं कमलेश उरांव

कमलेश उरांव के बारे पूछे जाने पर किसानों ने बताया कि वह जांहो गांव का एक मजदूर था. उनका उद्देश्य उन्नत खेती की दिशा में आगे बढ़ना था. लेकिन सुविधा व जानकारी के अभाव में वो मजदूरी कर अपने परिवार को चलाता था. जब गांव में 2016 के आस पास ग्राम स्वराज अभियान की बैठक होने लगी और बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने की विधि बताये जाने लगी तो कमलेश को उम्मीद जगी. उसने न सिर्फ खुद को आगे किया बल्कि उनके प्रयास से ही गांव के अन्य किसान भी इसमें रुचि लेने लगे. धीरे-धीरे कमलेश अपने साथ अन्य आठ किसानो को जोड़ा और पहली सामूहिक खेती का मुख्य सूत्रधार बना.

सात एकड़ में होती है आम की खेती

अब कमेलश और उनके साथी सात एकड़ बंजर भूमि पर आम की खेती करते हैं. जिस जमीन पर कभी घास तक नहीं उगता था उस जमीन पर अभी आम के पौधे लहलहा रहे हैं. इसमें अभी 900 आम के पौधे हैं. इनमे मुख्य रूप से मालदह आम लगे हैं. किसान अनूप उरांव ने बताया कि मालदह की खेती में अधिक लाभ है. इसकी सबसे बड़ी वजह इस प्रजाति के आम के अनुरूप यहां कि मिट्टी और वातावरण का होना है. मालदह आम के अलावा यहां अन्य कई प्रजाति के भी आम हैं. जिन नौ किसानों ने यहां साझा खेती शुरू की उनको 60 से 70 हजार रुपये की आमदनी होती है.

इस वर्ष इसके बढ़ने के आसार हैं क्योंकि आम की बंपर पैदावार हुई है. बारिश की वजह से कई जगहों पर आम की खेती कर रहे लोगों को नुकसान हुआ. लेकिन, कमलेश के नेतृत्व में यहां के किसानों ने इस आशंका को पहले ही भांप लिया था. इसके लिए सभी ने पहले से ही तैयारी कर ली थी. इस कारण बे-मौसम बारिश और आंधी से उन्हें खास नुकसान नहीं हुआ.

आम के अलावा भी अन्य कई फसलों की कर रहे हैं खेती

खेती के प्रति जुनून ने कमलेश उरांव को कुछ अलग करने को प्रेरित किया. उसने बिरसा कृषि केंद्र व अन्य कृषि विशेषज्ञ से जानकारी लेकर अपने साझा खेत में आम के साथ साथ अन्य फसल भी लगाना शुरू कर दिया. अभी सभी किसान आम के अलावा अमरूद, पपीता. मिर्च, बैंगन, बादाम, केला, गोभी, भतुआ आदि की भी खेती करते हैं. बता दें कि पहले कमलेश और उनके साथियों को अपनी पैदावार को बेचने के लिए बाजार जाना पड़ता था. अब लोग खुद ही इनके खेत तक पहुंच रहे हैं और अच्छी कीमत देकर आम सहित अन्य फसल की खरीदारी कर रहे हैं. आलम ये है कि अब धीरे धीरे इनके फसल लातेहार तथा मेदिनीनगर में भी चढ़ने लगा है.

कमलेश उरांव ने खुद बनायी नर्सरी

कमलेश उरांव की यात्रा यहीं नहीं थमी. जब साझा खेती जोर पकड़ा और उनके साथी इसमें पारंगत हो गए, तो उसने खुद की नर्सरी डेवलप करना शुरू किया. आज कमलेश का खुद का नर्सरी है जिसमें उसने आम, अमरुद, पपीता, केला सहित कई फल हैं. सिंचाई के लिए भी ये किसी पर निर्भर नहीं है. इसके लिए उसने पहाड़ी नाला को बांध कर जल संचयन कर सिंचाई करता है. पौधों के बीमारी का इलाज भी ये वैज्ञानिक विधि से करते हैं.

महिलाएं भी करती है खेती का काम

इस साझा खेती में सिर्फ पुरुष ही नहीं घर की महिलाएं भी समान रूप से हाथ बंटाती है. समय समय पर घर के बच्चे भी इसमें अपनी भागीदारी निभाते हैं. कभी कभी जरूरत होने पर मजदुर भी लगाना पड़ता है. इधर, इन किसानों की सफलता से आस-पास के कई लोग उन्नत खेती की दिशा में आगे बढ़ने लगे हैं.

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