बिहार में नई शिक्षक नियुक्ति नियमावली (Bihar Teacher Recruitment 2023) का इंतजार बड़ी संख्या में शिक्षक अभ्यर्थी कर रहे थे. मगर, इसके कैबिनेट से पास होने के तुरंत बाद से ही विरोध शुरू हो गया है. इसी आक्रोश में नियोजित शिक्षकों ने जाति गणना का भी बहिष्कार शुरू कर दिया है. मुद्दे पर, राज्य में राजनीति भी गर्म हो गयी है. एक तरफ जहां विरोध कर रहे नियोजित शिक्षकों और शिक्षक अभ्यर्थियों को भाजपा का साथ मिल गया है. वहीं, अब महागठबंधन की गटक दल CPIML के विधायक संदीप सौरभ ने भी मोर्चा खोल दिया है. उन्होंने कहा कि नई शिक्षक नियुक्ति नियमावली को लेकर सरकार ने अन्य पार्टी राय नहीं ली है. बता दें कि भाकपा माले बिहार सरकार में मुख्य दलों में शामिल है. इसके 12 विधायक विधानसभा में हैं.
भाकपा माले विधायक संदीप सौरभ के घर शनिवार को करीब दर्जन भर शिक्षक संघ के नेता इक्ठा हुए. बैठक में उन्होंने कहा कि राज्य सरकार के द्वारा तैयार मसौदा आया था. इसमें हमारी मांग थी कि बिहार में नियोजित शिक्षकों को भी राज्यकर्मी का दर्जा दिया जाए. बड़ी आपत्ति इसी बात की है कि नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा प्राप्त करने के लिए परीक्षा का प्रावधान किया गया है. सभी शिक्षक दस से बारह वर्षों से राज्य में अपनी सेवा दे रहे हैं. सरकार के द्वारा नये नियम ने उनके ऊपर सवालिया निशान लगा दिया है. सरकार को इसपर फिर से सोचना चाहिए.
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शिक्षक संघों के साथ आयोजित बैठक में भाकपा माले के विधायक संदीप सौरभ ने कहा कि सरकार के इस निर्णय से नियोजित शिक्षकों को लोग संदेह की दृष्टि से देखेंगे. उनपर सवाल उठाया जाएगा. सरकार को इस बात का जवाब देना होगा कि सरकार की नियोजन इकाई पहले क्या कर रही थी जब बिहार में इतने बड़े स्तर पर नियोजन हुआ. सरकार के द्वारा आयोजित बीटेट और सीटेट परीक्षा को पास करने वाले अभ्यर्थी ही शिक्षक बने हैं. फिर इन्हें राज्यकर्मी का दर्जा देने में क्या परेशानी है.