पिछले पांच साल के दौरान ग्रामीण विकास विभाग की मनरेगा के तहत ली गयी 9.19 लाख योजनाएं अधूरी हैं. इनमें सबसे बड़ा हिस्सा ‘प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना’ का है. अधूरी योजनाओं के मामले में ट्रेंच-बांध दूसरे और तालाब तीसरे नंबर पर है. इन अधूरी योजनाओं की लागत 5000 करोड़ रुपये तक होने का अनुमान है.
विभागीय आंकड़ों के अनुसार, राज्य में प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास की 2.28 लाख योजनाएं अधूरी हैं. वहीं, ट्रेंच-बांध की 84462, तालाब की 44174 और नाडेप की 39369 योजनाएं अब भी अधूरी हैं. नाडेप के तहत मुर्गी शेड, बकरी शेड, पशु शेड, बर्मी कंपोस्ट पिट आदि का निर्माण किया जाता है. इन योजनाओं के अलावा तालाब की 44174, सोक पिट की 25633, आंगनबाड़ी की 1950, वीर शहीद पोटो खेल विकास की 2367 योजनाओं के अलावा अन्य योजनाएं भी अधूरी हैं.
विभागीय आंकड़ों के अनुसार, सभी प्रकार की सबसे ज्यादा अधूरी योजनाओं की संख्या गिरिडीह जिले में है. यहां मनरेगा के तहत ली गयी विभिन्न प्रकार की 86662 योजनाएं अधूरी हैं. पलामू जिले में कुल अधूरी योजनाओं की संख्या 75350 और गढ़वा जिले में 62781 है. गढ़वा जिले में ट्रेंच-बांध की सबसे ज्यादा 9414 योजनाएं अधूरी हैं. ट्रेंच-बांद की अधूरी योजनाओं के मामले में सरायकेला दूसरे (8675) और लातेहार तीसरे (8464) नंबर पर है.