Eid 2023: देश भर में आज, शनिवार, 22 अप्रैल को ईद का उल्लास है. ईद का चांद शुक्रवार को नजर आया. ईद के दौरान जकात अल-फितर का विशेष महत्व है. यह मुसलमानों के बीच संबंधों को मजबूत करने, गरीबों के दर्द को कम करने, मुसलमानों के दिलों में भाईचारे और एकजुटता की भावना पैदा करने आदि के लिए है. जकात अल-फितर रमजान के महीने का एक विशेष दान है. यह दान रमजान के महीने में `ईद अल-फितर की नमाज़ से पहले कभी भी दिया जाना चाहिए. क्योंकि यह `ईद अल-फितर के समय तक दिया जा सकता है, इसे ज़कात अल-फितर कहा जाता है. पैगंबर ने मुसलमानों से रमजान के महीने में इस दान का भुगतान करने का आग्रह किया.
विद्वानों ने इस अनिवार्य दान के विभिन्न कारण बताए हैं. कुछ का कहना है कि यह दान गरीबों और ज़रूरतमंदों की मदद करता है और रमज़ान के महीने में उनकी ज़रूरतों का ख्याल रखता है और उनके लिए अन्य मुसलमानों के साथ ‘ईद का त्योहार’ मनाना भी संभव बनाता है. अन्य विद्वानों का कहना है कि यह दान इस मुबारक महीने के दौरान किसी व्यक्ति द्वारा की गई किसी भी गलती या गलत कामों के प्रायश्चित (कफ्फारा) के लिए है.
परिवार के मुखिया को यह राशि स्वयं अपनी ओर से और अपने जीवनसाथी, बच्चों और यहां तक कि अपने नौकरों की ओर से चुकानी होती है. जकात अल-फितर की राशि पैगंबर द्वारा तय की गई थी. यह लगभग 5 पाउंड गेहूं, आटा, जौ, खजूर या किशमिश है. कुछ न्यायविद गरीबों और जरूरतमंदों को नकद भुगतान करने की भी अनुमति देते हैं.
ज़कात अल-फ़ित्र सख्ती से अनिवार्य है, और विद्वानों की सहमति (इजमा) के कारण यह फ़र्ज़ है.
रमजान के आखिरी दिन सूरज ढलने पर जकात अल-फितर अनिवार्य हो जाता है. जिस किसी की भी शादी हो जाती है, उस दिन सूर्य के अस्त होने से पहले उसके लिए एक बच्चा पैदा होता है, उसे अपनी और/या अपनी नई पत्नी या नए बच्चे की ओर से ज़कात अल-फ़ित्र देना पड़ता है, लेकिन अगर यह सूर्यास्त के बाद होता है, उसे देना नहीं है. जो कोई फितर की रात को सूर्यास्त के बाद मरता है, उसकी ओर से सदाकत अल-फितर दिया जाना चाहिए.