रोक के बावजूद शहर में पॉलीथिन का इस्तेमाल रुक नहीं रहा है. बीते वर्ष एक जुलाई से राज्य सरकार ने प्रदेश में सभी तरह के सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक लगाने की घोषणा की थी. उसके बाद कुछ दिन तक इसको लेकर सख्ती दिखी भी और सिंगल यूज प्लास्टिक को बेचने वाले दुकानदारों पर जुर्माना लगाया गया. इसके परिणामस्वरूप प्रतिबंध लगने के शुरुआती तीन-चार महीने में इसका असर भी दिखा और दुकानदार इसका इस्तेमाल कम करने लगे. ग्राहकों को पाॅलीथिन देने वाले दुकानदार भी इसे छिपा कर रखते और देते थे. लेकिन ऐसे दुकानदारों को लेकर नगर निगम की कार्रवाई बंद हाेने के कारण अब फिर से वे पहले की तरह बेफ्रिक होकर फल और सब्जी वाले पॉलीथिन देने लगे हैं.
नगर निगम द्वारा जुर्माना के बजाय अब जागरूकता पर बल दिया जा रहा है. इसके अंतर्गत नगर निगम की आइइसी (इन्फाॅर्मेशन, एजुकेशन और कम्युनिकेशन) टीम द्वारा दुकानदारों को स्वास्थ्य और पर्यावरण पर पाॅलीथिन के इस्तेमाल के दुष्प्रभावों को बताते हुए उसका इस्तेमाल बंद करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. हालांकि, इसका असर वैसा नहीं दिखा पा रहा है, जैसा जुर्माने का दिखता था. मालूम हो कि पहले नगर निगम के राजस्वकर्मियों की टीम हर दिन अपने क्षेत्र में घूम-घूम कर पाॅलीथिन का इस्तेमाल करने वाले दुकानदारों पर जुर्माना करती थी, जिससे इसका इस्तेमाल बंद करने या कम करने के लिए उन्हें बाध्य होना पड़ रहा था, पर अब वैसा असर नहीं दिख रहा है.
पॉलीथिन के फिर से धड़ल्ले से इस्तेमाल होने का एक बड़ा प्रमाण नालियों की उड़ाही के दौरान भी दिखा हे. बीते एक-डेढ़ महीने के दौरान शहर के नौ बड़े नालों और दो दर्जन से अधिक छोटे नालों की उड़ाही के दौरान उसी तरह भारी मात्रा में पाॅलीथिन निकला है, जैसा प्रतिबंधित करने से पहले निकलता था.
थर्मोकोल की थालियां और प्लास्टिक के गिलास फिर से बिकने लगे हैं . सिंगल यूज प्लास्टिक के अन्य वस्तुओं का इस्तेमाल भी फिर से शुरू हो गया है, जो बीते वर्ष प्रतिबंध लगने के बाद लगभग बंद हो गया था. दरियापुर गोला, मीठापुर, राजाबाजार आदि में इन्हें दुकानों में रखा स्पष्ट देखा जा सकता है.
शुरुआती दिशा-निर्देशों के बाद बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद भी मामले में सख्ती दिखाने के बजाय खामोश है. उसके द्वारा इस संदर्भ में शुरू में एक कंट्रोल रूम भी बनाया गया था, जहां लोग सिंगल यूज प्लास्टिक बेचने वाले दुकानदारों की शिकायत कर सकते थे. लेकिन लोगों के कम भागीदारी की वजह से उसका सकारात्मक परिणाम भी सामने नहीं आया.
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लोगों के व्यवहार में अब तक बदलाव नहीं आया है. फल-सब्जी जैसी वस्तुएं या छोटे मोटे किराना का सामान खरीदने के बाद आज भी अधिकतर ग्राहक दुकानदार से पॉलीथिन मांगते हैं, जिन्हें देखते हुए इसे रखना दुकानदारों की भी मजबूरी बनी हुई है. कपड़े का बना झोला लेकर बाजार जाने का चलन भी जागरूकता के तमाम प्रयासों के बावजूद लोगों में अब तक नहीं आ पाया है.