आगरा. विश्व अस्थमा दिवस पर आगरा के एसएन मेडिकल कॉलेज में 2 मई को निशुल्क स्पाइरो कैंप का आयोजन किया गया. इस कैंप में अस्थमा के रोगियों को मुफ्त स्पिरोमेट्री परीक्षण प्रदान किया गया और अस्थमा जैसी बीमारी के प्रति जागरूक किया गया. साथ ही उन्हें बताया गया कि किस तरह से इस बीमारी से निजात पाई जा सकती है और किन लक्षणों को देखकर इस बीमारी के बारे में पता कर सकते है. इस कैंप में क्षय रोग विभाग अध्यक्ष डॉक्टर गजेंद्र विक्रम सिंह, आचार्य डॉक्टर संतोष, सह आचार्य डॉ सचिन गुप्ता और तमाम अटेंडेंट मौजूद रहे. कैंप में कई मरीजों ने अस्थमा के बारे में विस्तृत जानकारी ली. जानकारी के अनुसार मई महीने के प्रथम मंगलवार को हर वर्ष विश्व अस्थमा दिवस मनाया जाता है. इस दिवस के मनाने का उद्देश्य लोगों को अस्थमा के प्रति जागरूक करना और इस बीमारी के लक्षण व इनके बचाव के बारे में बताना है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व में अस्थमा के लगभग 26.2 करोड मरीज हैं. भारत में लगभग लगभग 2 फीसदी और आगरा में लगभग 7 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जो अस्थमा से पीड़ित हैं. हर साल करीब ढाई लाख लोगों की मौत इस बीमारी के कारण हो जाती है. एसएन मेडिकल कॉलेज के क्षय रोग विभागाध्यक्ष डॉ गजेंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि लोगों को अस्थमा जैसी बीमारी के बारे में जानकारी नहीं है. जिसकी वजह से वह लोग सही तरीके से अपनी बीमारी का इलाज नहीं करवाते और अगर इलाज शुरू भी करवाते हैं तो अधूरी जानकारी की वजह से या लापरवाही बरतने की वजह से इलाज को बीच में ही छोड़ देते हैं. जिससे यह बीमारी मरीज का पीछा नहीं छोड़ती. उन्होंने बताया कि अस्थमा एक ऐसी बीमारी है. जिसके लक्षण कभी आते हैं तो कभी नहीं आते. ऐसे में मरीज को लगता है कि उसकी बीमारी दूर हो गई. लेकिन जैसे ही फिर से बीमारी का अटैक मरीज के ऊपर होता है. वह और ज्यादा इस बीमारी से ग्रसित हो जाता है.
डॉक्टर गजेंद्र विक्रम सिंह ने कहा कि अस्थमा के किसी भी मरीज को अपनी दवा बीच में नहीं छोड़नी चाहिए. जब तक उसकी बीमारी पूर्ण रूप से समाप्त ना हो जाए या जब तक मरीज को चिकित्सक ने दवा चलाने का समय दिया हो तब तक उसे इलाज जारी रखना चाहिए. वहीं उन्होंने बताया कि अस्थमा कोई लाइलाज बीमारी नहीं है. लेकिन लोगों में इस बीमारी की जानकारी कम होने के चलते देश में हर साल ढाई लाख मरीज अस्थमा से मरते हैं. घरघराहट होना अस्थमा का प्रमुख लक्षण माना जाता है. जिसमें मरीज जब सांस लेता है तो सीटी जैसी आवाज आने लगती है. इसके अलावा सांस फूलना, हंसने या व्यायाम करने के दौरान खांसी आना, सीने में जकड़न व दर्द, बार-बार गला साफ करने का मन करना, अत्यधिक थकान महसूस करना यह सब अस्थमा के लक्षण हैं.
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डॉक्टर गजेंद्र विक्रम सिंह ने बताया कि एलर्जी होने से अस्थमा का खतरा बढ़ जाता है. करीब 80 फीसद मामलों में अस्थमा एलर्जिक होता है लोगों की कुछ चीजों से एलर्जी अस्थमा का कारण बन जाती है. एलर्जी में धूल, परागकण, फफूंदी और पालतू जानवरों की रूसी जैसी चीजें शामिल है. डॉक्टर ने बताया कि अस्थमा को कभी भी ठीक नहीं किया जा सकता. हां लेकिन कुछ उपाय जरूर है. जिनसे इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है. आमतौर पर इन्हेल्ड स्ट्रॉयड और अन्य एंटी इम्फ्लमेंटरी दवाएं अस्थमा के लिए अत्यंत प्रभावी दवाएं हैं. इनहेलर्स से दवा सीधे फेफड़ों में पहुंचती है और अत्यंत कम दवा की मात्रा की जरूरत पड़ती है. इसीलिए अस्थमा के उपचार के लिए इनहेलेशन थेरेपी को सबसे सुरक्षित असरदार और बेहतरीन माना गया है.
अस्थमा से बचाव के लिए मरीज को बारिश, सर्दी, धूल भरी आंधी, ज्यादा गर्म और नम वातावरण से बचना चाहिए. इस तरह के वातावरण में फफूंदी के फैलने की संभावना बढ़ जाती है. धूल मिट्टी और प्रदूषण से बचें घर से बाहर निकलने पर मास्क को साथ रखें और धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों से दूर रहें. वहीं इस कार्यक्रम में अस्थमा के मरीजों को इन्हेल का सही से प्रयोग करना भी सिखाया गया. उन्हें बताया गया कि किस तरह से नेबुलाइजर और इनहेलर का प्रयोग किया जाए. जिससे कि अस्थमा की दवाई की पूरी मात्रा आपकी श्वसन नली में पहुंच सके.