प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘मन की बात’ ने वैश्विक कीर्तिमान स्थापित किया है. विविध विषयों पर प्रतिमाह राष्ट्र के प्रमुख कार्यकारी ‘सेवक’ सवा अरब जनता से साक्षात्कार करते हैं. संपूर्ण विश्व में ऐसा एक भी कार्यक्रम नहीं है, जिसके द्वारा किसी देश का प्रमुख नेता अपने नागरिकों के सुख-दुख, विजय व वेदना, उपलब्धियों और नवीन योजनाओं के बारे में विचार साझा करता हो.
इस कार्यक्रम में उत्तर पूर्वांचल के सुदूर गांवों के जनजातीय युवाओं के खेल में योगदान और मातृभूमि की रक्षा हेतु उत्सर्ग के उदाहरण, कर्नाटक के अनजान क्षेत्रों में सामाजिक परिवर्तन लाने वाली महिलाओं की अद्भुत कथाएं, उत्तराखंड में श्रीअन्न (मोटे अनाज) को लोकप्रिय बनाने वाले महिला स्वयं सहायता समूहों की प्रेरक कथा, महान भारतीय समाज के विविध रंगों का परिचय स्वयं प्रधानमंत्री के स्वर में मिलता है. यह संवाद अभूतपूर्व और असाधारण ही नहीं, देश के प्रधानमंत्री के साथ सामान्य जन का आत्मीय संबंध जोड़ने वाला ऐसा अनुष्ठान बन गया है, जो राष्ट्रीय एकता और अपनेपन का प्रतीक है.
कोई तो है, जो हमें सुनता है, हमारी उपलब्धियों को राष्ट्रीय स्वर और अंतरराष्ट्रीय मंच देता है, कोई तो है, जो हमें पहचानता है- ये बातें सामान्य नहीं हैं. तेईस भाषाओं, उन्तीस बोलियों, ग्यारह विदेशी भाषाओं में 501 आकाशवाणी केंद्रों एवं दूरदर्शन से प्रसारित ‘मन की बात’ का व्याप और प्रभाव हिमालयी ऊंचाइयों और महासागरीय गहराइयों को छूता है. जो भी एक बार इसके किसी संस्करण में प्रधानमंत्री के साथ बात कर गया या प्रधानमंत्री ने उसका उल्लेख कर दिया, वह स्वयं को अमर हो गया मानता है.
देशभर में उसकी चर्चा होती है, अपने क्षेत्र में उसका दबदबा बढ़ जाता है. जिस कार्य विशेष में लगे होने के कारण उसे ‘मन की बात’ में प्रतिष्ठित स्थान मिला, उस कार्य की सफलता असंदिग्ध हो जाती है, राष्ट्रीय संपदा, मेधा और निर्माण में उसके योगदान का महत्व बढ़ जाता है. दिल्ली के लैब टेकनीशियन प्रकाश कांडपाल, रायपुर की बहन भावना, विजयवाड़ा के प्रोफेसर प्रकाश पदकांडला में एक सामान्य धागा क्या है? यही कि वे अपनी सामान्य उपलब्धियों के कारण ‘मन की बात’ में शामिल किये गये. उनके कार्यों को बल मिला, उनका मनोबल बढ़ा तथा देश में अच्छे कार्यों के महत्व की प्रतिष्ठा हुई.
कोरोना काल में असंख्य लोगों ने प्राण हथेली पर रख कर कार्य किया. उनको किसने शाबाशी दी? प्रधानमंत्री मोदी ने जब एक सामान्य लैब सहायक प्रकाश कांडपाल से पूछा- आप कब से यह कार्य कर रहे हैं और आपका क्या अनुभव रहा? कांडपाल का जो उत्तर था, वह बड़े बड़े प्रवचनकारियों, मौलानाओं, पादरियों और ग्रंथियों को भी पीछे छोड़ता है- मैं लैब सहायक का काम 22 वर्षों से कर रहा हूं. कोरोना के समय मैंने इसी अनुभव का लाभ जनता तक पहुंचाया, मेरा जीवन धन्य हो गया.
चंडीगढ़ के संजीव राणा की बेटी रिद्धिमा और भतीजी रिया ने उन्हें सुझाव दिया कि क्यों न साइकिल पर छोले-भटूरे बेचते हुए उन लोगों को मुफ्त खिलाएं, जिन्होंने वैक्सीन ले ली है? आइडिया कामयाब हुआ और प्रधानमंत्री ने इसे ‘मन की बात’ में प्रसारित किया. हम शनैः शनैः अपनी सभ्यता और संतों के प्रति तिरस्कार का भाव रखते दिखते हैं.
अंग्रेजी शिक्षा और स्कूलों से देश की सांस्कृतिक धरोहर के पाठ्यक्रमों के गायब होने का यह दुखद परिणाम है. ‘मन की बात’ के माध्यम से प्रधानमंत्री विश्वकर्मा दिवस, स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामानंदाचार्य, थिरूवल्लुवर आदि के बारे में ही नहीं बताते, बल्कि समाज निर्माण में महिलाओं के अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान को भी रेखांकित करते हैं.
केरल में कोच्ची स्थित संत टेरेसा विद्यालय के छात्रों ने पुनः इस्तेमाल किये जा सकने वाले खिलौने बनाये, तो उसको राष्ट्रव्यापी प्रसिद्धि ‘मन की बात’ के माध्यम से मिली. आयुष्मान भारत योजना के लाभों को लेकर प्रधानमंत्री ने जन-जन के पास उपयोगी जानकारी पहुंचायी. त्रिपुरा के विक्रमजीत चकमा तथा उत्तर प्रदेश में लखीमपुर खीरी के महिला उद्यमी समूह ने व्यर्थ फेंके जाने वाले केले के तने से फाइबर के उत्पाद बनाये, तो उनके बारे में प्रधानमंत्री मोदी ने भावपूर्ण उल्लेख किया.
बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि श्रीकृष्ण ने अरुणाचल प्रदेश के भीष्मक नगर की रुक्मिणी से विवाह किया था. अरुणाचल के इदु मिश्मी जनजाति के लोग आज भी स्वयं को श्रीकृष्ण और रुक्मिणी से जोड़ते हैं. यह कथा राष्ट्रीय एकता और अखंडता हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण है. इस प्रसंग को प्रधानमंत्री मोदी ने न केवल ‘मन की बात’ के माध्यम से पुनः जीवित किया, बल्कि अरुणाचल के युवाओं का दल गुजरात भेजकर एक नवीन एकता पर्व भी प्रारंभ किया.
‘मन की बात’ का सौवां पर्व वास्तव में भारत माता की अभ्यर्थना में गगन में जगे सौ इंद्रधनुषों के समान हैं. प्रधानमंत्री मोदी कुछ समय देशवासियों से बातचीत का निकालते हैं, उससे लोगों को नवीन दिशा और आत्मविश्वास मिलता है, नवीन क्षेत्रों में अपने दम पर कुछ कर दिखाने का सपना जगता है. नवीन भारत की परिवर्तनकारी अमृतवेला को प्रणाम करता स्वर तीर्थ बन गया है ‘मन की बात’ कार्यक्रम.