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WMO की चेतावनी : भारत समेत दुनिया भर में मंडरा रहा सूखा बढ़ने का खतरा, जुलाई में लौट सकता है अल नीनो

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के अनुसार, अल नीनो के अब जुलाई के अंत तक 60 फीसदी संभावना है और सितंबर के अंत तक 80 फीसदी संभावना के साथ उभरने की भविष्यवाणी की गई है. खास बात यह है कि अल नीनो के प्रभावी होने से दुनिया भर में सूखे का खतरा मंडरा रहा है.

नई दिल्ली : जलवायु परिवर्तन के बीच इस साल के मानसून में भारत समेत पूरी दुनिया में तापमान बढ़ने की संभावना अधिक है. इसका कारण यह है कि लगातार तीन बार ‘ला नीना’ की दुर्लभ घटना के बाद आगामी महीनों में भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर के गर्म होने की संभावना बढ़ रही है, जिसे ‘अल नीनो’ गतिविधि कहा जाता है. इसका संबंध उच्च वैश्विक तापमान से है. इसके कारण भारत में मानसून पर असर पड़ सकता है. खास बात यह है कि अल नीनो के प्रभावी होने से दुनिया भर में सूखे का खतरा मंडरा रहा है.

जुलाई के अंत तक उभरेगा अल नीनो

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के अनुसार, अल नीनो के अब जुलाई के अंत तक 60 फीसदी संभावना है और सितंबर के अंत तक 80 फीसदी संभावना के साथ उभरने की भविष्यवाणी की गई है. डब्ल्यूएमओ के क्षेत्रीय जलवायु पूर्वानुमान सेवा प्रभाग के प्रमुख विल्फ्रान मौफौमा ओकिया ने स्विट्जरलैंड के जिनेवा में मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि यह दुनिया भर में मौसम और जलवायु की प्रणाली को बदल देगा.

1950 के बाद तीसरी बार प्रभावी रहा ला नीना

डब्ल्यूएमओ के अनुसार अल नीनो के प्रभावी होने के साथ ही अब तक के सबसे लंबी ‘ला नीना’ गतिविधि भी समाप्त हो जाएगी. वर्ष 1950 के बाद ऐसा तीसरी बार हुआ है, जब ‘ला नीना’ गतिविधि लगातार तीसरे वर्ष देखी गई हो. ‘ला नीना’ का अर्थ समुद्र की सतह के तापमान के सामान्य से अधिक ठंडा होने का चरण है. लगातार तीन बार ‘ला नीना’ के प्रभाव के बाद इस साल अल नीनो की स्थिति बनेगी. ला नीना, अल नीनो की विपरीत स्थिति है.

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अल नीनो के प्रभाव से बढ़ता है सागर के जल का तामान

अल नीनो के कारण दक्षिण अमेरिका के पास प्रशांत महासागर की सतह के जल का ताप सामान्य से अधिक हो जाता है और इसे मानसून की हवाओं के कमजोर पड़ने तथा भारत में कम बारिश के साथ जोड़ कर देखा जाता है. भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने पिछले सप्ताह कहा था कि मॉनसून के दौरान अल नीनो की स्थिति बन सकती है और इसका प्रभाव मानसून के दूसरे भाग में महसूस किया जा सकता है.

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कभी कभी अल नीनो के चक्र में भी होती है बारिश

महापात्रा ने कहा था कि 1951-2022 के बीच जितने साल भी अल नीनो सक्रिय रहा है, वे सभी वर्ष मानसून के लिहाज से खराब नहीं थे. उन्होंने कहा कि इन वर्षों में अल नीनो के प्रभाव वाले 15 साल थे और उनमें से छह में ‘सामान्य’ से लेकर ‘सामान्य से अधिक’ बारिश हुई.

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