संताली साहित्यकार और ओलचिकी लिपि के आविष्कारक गुरु गोमके पंडित रघुनाथ मुर्मू को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने श्रद्धांजलि दी. शुक्रवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दांडबोस, रायरंगपुर, मयूरभंज, ओडिशा पहुंचे और यहां 119वीं जयंती पर गुरु गोमके पंडित रघुनाथ मुर्मू की समाधि पीठ (स्मारक) और प्रतिमा पर माल्यार्पण किया. इस दौरान मुख्यमंत्री ने समाधि पीठ परिसर का भ्रमण करने के साथ स्थानीय लोगों से संवाद भी किया.
जयंती के मौके पर आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि संताली भाषा और साहित्य के विकास में उनके अविस्मरणीय योगदान को हम कभी भुला नहीं सकते हैं. उन्होंने ओलचिकी के रूप में संताली को एक नयी लिपि दी. आदिवासी समाज की परंपरा, कला संस्कृति और भाषा- साहित्य के संरक्षण और उसे समृद्ध करने में उनकी भूमिका इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है.
विशेषकर आदिवासियों के बीच शिक्षा का अलख जगाने में उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी समर्पित कर दी. पंडित रघुनाथ की रचनाएं और कृतियां अमर हैं. आज संताली भाषा और साहित्य कि अपनी समृद्ध परंपरा कायम है, तो इसमें सबसे बड़ा योगदान पंडित रघुनाथ मुर्मू जी का ही है.
मुख्यमंत्री श्री सोरेन ने कहा कि धरती आबा बिरसा मुंडा, तिलका मांझी, अमर शहीद सिदो-कान्हू, वीर बुधु भगत और तेलंगा खड़िया जैसे अनेकों वीर हुए हैं, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत और जमींदारों के शोषण- अन्याय के विरुद्ध हुए आंदोलनों का नेतृत्व किया. अन्याय के खिलाफ आदिवासी वीर ना कभी झुके और ना ही कभी डरे हैं. इन्होंने अपनी वीरता, संघर्ष और नेतृत्व क्षमता से ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिला दी थी. हमें ऐसे वीर शहीदों पर गर्व है. मौके पर मंत्री चंपई सोरेन समेत अन्य मौजूद रहे.
रांची. दिशोम जाहेर गाढ़ विकास समिति द्वारा संताली भाषा की लिपि, ओल चिकी के जनक गुरु गोमके पंडित रघुनाथ मुर्मू की 119वीं जयंती पर जाहेरगाढ़ परिसर, धुर्वा में उनके चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित किया गया. इस अवसर पर अध्यक्ष खेत्रो मोहन टुडू ने कहा कि हमें पंडित रघुनाथ मुर्मू के बताये रास्ते पर चलना होगा. उन्होंने कहा था कि जब तक आपका धर्म और आपकी भाषा जीवित रहेंगे, आप भी जीवित रहेंगे. जिस दिन इन्हें भुला दीजिएगा, आपका अस्तित्व भी समाप्त हो जायेगा. कार्यक्रम में विनोद मुर्मू, सकला हेम्ब्रम, मुनिराम हांसदा, भागवत मुर्मू व अन्य मौजूद थे.