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Jyeshta Month 2023: आज से शुरू हो रहा है जेठ का महीना, जानें क्या है इस माह का महत्व

Jyeshta Month 2023: अपने नाम के अनुरूप ज्येष्ठ का महीना भगवान भास्कर के ज्येष्ठ रूप को प्रदर्शित करता है. प्रकाश की दृष्टि से पूरे वर्ष का यह सर्वश्रेष्ठ महीना तो है ही, साथ में शुष्क होते मौसम में जल-संरक्षण का यह संदेश भी देता है कि जीवन में विषम परिस्थितियां सूरज की तरह तल्ख हो जायें.

Jyeshta Month 2023: हिंदू पंचांग के अनुसार, आज से ज्येष्ठ माह का शुभारंभ हो रहा है और इसका समापन रविवार, 4 जून को पूर्णिमा के दिन होगा. मान्यता है कि ज्येष्ठ का महीना हनुमान जी को अत्यंत प्रिय है, क्योंकि इसी माह में प्रभु श्रीराम से उनकी पहली मुलाकात हुई थी. अपने नाम के अनुरूप ज्येष्ठ का महीना भगवान भास्कर के ज्येष्ठ रूप को प्रदर्शित करता है. प्रकाश की दृष्टि से पूरे वर्ष का यह सर्वश्रेष्ठ महीना तो है ही, साथ में शुष्क होते मौसम में जल-संरक्षण का यह संदेश भी देता है कि जीवन में विषम परिस्थितियां सूरज की तरह तल्ख हो जायें, तो भी मन में शीतलता का आर्द्र भाव शुष्क न होने पाये.

सूर्य को पुरुष इसलिए माना गया

भारतीय संस्कृति में सूर्य को पुरुष इसलिए माना गया, क्योंकि पूरी प्रकृति को ऊर्जा प्रदान करने का स्रोत कोई है, तो सूर्य ही है. इसलिए ऋषियों ने गायत्री मंत्र को सूर्य की कृपा प्राप्त करने का मंत्र बताया है. श्रीमद्भवतगीता के 10वें अध्याय के 21वें श्लोक में उत्साह की ऊर्जा से रहित हुए अर्जुन से युद्ध की कला के ज्येष्ठ तथा सर्वश्रेष्ठ सारथी बने श्रीकृष्ण ने कहा है- ‘मैं अदिति के बारह पुत्रों में विष्णु और ज्योतिषियों में प्रकाशमान सूर्य हूं, वायु के भेदों में मरीचि नामक वायु और नक्षत्रों में चद्रमा हूं.’

सूर्य पंचभूतों से निर्मित तन को जीवंत करता है

दसवें अध्याय में ही श्रीकृष्ण को इसलिए उक्त उपदेश की जरूरत समझ में आयी, क्योंकि मनुष्य का शरीर पांच ज्ञानेंद्रियों तथा पांच कर्मेंद्रियों यानी दस इंद्रियों से संचालित होता है. इस श्लोक में श्रीकृष्ण ने पर्यावरण की महत्ता के लिए आकाशमार्ग के दोनों अधिष्ठाताओं सूर्य और चंद्रमा का उल्लेख किया है. सूर्य पंचभूतों से निर्मित तन को जीवंत करता है, तो चंद्रमा का प्रभाव मन पर पड़ता है. मन का स्वामी होने के कारण ही मनुष्य शब्द अस्तित्व में आया है. श्लोक में पालनकर्ता विष्णु का उल्लेख इसलिए कृष्ण को करना पड़ा, क्योंकि अर्जुन का मन महाभारत के युद्ध के मैदान में मृतप्राय हो चुका था.

मनुष्य का जीवन ज्ञान और सृजन के लिए है

उस मृत मन के पालन-पोषण के लिए उत्साह की जरूरत श्रीकृष्ण को अवश्य लगी. इसके अतिरिक्त मरीचि वायु के उल्लेख के भी निहितार्थ हैं, क्योंकि धर्मग्रंथों में मरीचि को सृजनकर्ता ब्रह्मा का मानस पुत्र कहा गया है. इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि मनुष्य का जीवन ज्ञान और सृजन के लिए ही है. इस श्लोक का माहात्म्य इसलिए भी है, क्योंकि जहां कहीं भगवान विष्णु रहेंगे, वहां त्रिदेवों की उपस्थिति स्वयमेव हो जायेगी. श्लोक में जब युद्व कला के विशेषज्ञ श्रीकृष्ण रणक्षेत्र में खड़े हैं तब अकेले नहीं है. ब्रह्मा के पुत्र मरीचि के साथ महेश के प्रतिनिधि चंद्रमा की भी उपस्थिति है. जीवन के संग्राम में वही विजयी हो सकता है, जो सृजन, पालन तथा विध्वंस की विधियों को भली-भांति जानता हो.

ऐसे हुई थी श्रीराम की मुलाकात सबरी से

ज्येष्ठ महीने की महत्ता के पीछे अति भौतिकतावादी, अहंकारी तथा नारी-सम्मान को खंडित करने वाले त्रेतायुग के राक्षसकुल के राजा रावण के वध की योजना की शुरुआत होती है. वनवास पर निकले मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की अर्धांगिनी का अपहरण रावण ने छल से कर लिया था. वन में भ्रमण करते जब श्रीराम की मुलाकात मतंग ऋषि के आश्रम में सबरी से हुई, तो सबरी ने सुग्रीव का पता श्रीराम को बताया और जब वे ऋष्यमूक पर्वत पर आये, तो उनकी पहली मुलाकात हनुमान जी से ज्येष्ठ के महीने में ही हुई थी.

हनुमान जी ने सूर्य को निगल लिया था

यहीं सुग्रीव से मित्रता तथा रावण वध का संकल्प लिया गया था. हनुमान जी की संवादशैली से श्रीराम इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने अनुज लक्ष्मण से कहा कि तत्काल हनुमानजी को प्रणाम करो. ये वेदों के जानकार प्रतीत होते हैं. धर्मग्रंथों में उल्लेख भी है कि हनुमान जी ने सूर्य को निगल लिया था. इसका आशय यही है कि हनुमान जी ने सूर्य की रश्मियों से निकलने वाली ऊर्जा को ग्रहण किया.

आधुनिक शोधों में सूर्य की प्रात:कालीन किरणों का सेवन कर स्वस्थ रहने की विधि बतायी गयी है. विंध्याचल पर्वत भी देवमंडल द्वारा अपनी उपेक्षा से रुष्ट होकर सूर्य के मार्ग को बाधित कर दिया था. यहां भी सूर्य की ऊष्मा से प्रदीप्त होने की क्रिया दृष्टिगोचर होती है. गुरु अगस्त्य के आने पर विंध्याचल पर्वत झुक गया. अगस्त्य का अर्थ अहंकार को पी जाने वाला कहा गया है. ज्ञानी ही समुद्रवत अहंकार को पी सकता है. ऐसी स्थिति में कठोर पहाड़ जैसा व्यक्ति उसी तरह झुक जाता है, जैसे विंध्याचल पर्वत को झुकना पड़ा था.

ज्येष्ठ महीने में जब सूर्य की तेज किरणों से धरती तप्त होती है और पानी का संकट खड़ा होता है तब पानी की उपलब्धता के लिए कुएं, तालाब तथा अन्य जल स्रोत की व्यवस्था करने का उल्लेख धर्मग्रंथों में किया गया है. जगह-जगह पौशाला भी स्थापित करना, मनुष्यों के लिए ही नहीं, जीव-जंतुओं के लिए भी पानी उपलब्ध कराना पुण्यदायी कहा गया है. निश्चित रूप से श्रीराम और हनुमान जी के मिलन के इस महीने में हनुमान जी के प्रिय दिवस मंगलवार को मंदिरों में प्रसाद तथा शर्बत पिलाने की परंपरा लागू है.

ज्येष्ठ महीने में प्रकृति संरक्षण के लिए उत्तर भारत में प्रदोष से अमावस्या के तीन दिनों तक वट-सावित्री पूजा का विधान है, जबकि दक्षिण भारत में शुक्लपक्ष की प्रदोष-तिथि से पूर्णिमा तिथि तक व्रत का विधान है. यमराज के हाथों अपने पति सत्यवान को वापस लाने वाली सावित्री की कथा से यह पर्व जुड़ा है. सूर्य का रूप मार्तंड हो जाये, तो बरगद जैसे वृक्षों का आसरा लेना ही चाहिए. सूर्य की किरणें जब अति प्रचंड हो जाती हैं तब उसका नाम मार्तंड होता है. खासकर ज्येष्ठ महीने के दिन मध्याह्न काल छाये में रहने की सलाह दी गयी है.

जल से मन-मस्तिष्क को सिंचित करना चाहिए

इसी महीने के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को अपने साठ हजार पूर्वजों को तृप्त करने के लिए कठोर तपस्या से भगवान शंकर को रिझाकर राजा भगीरथ गंगा जी को धरती पर लाये थे. इस कथा का लौकिक जीवन से अर्थ जुड़ता है कि मन शुष्क होने लगे तो संवेदना के जल से मन-मस्तिष्क को सिंचित करना चाहिए.

निर्जला एकादशी भी गर्मी के खिलाफ सत्याग्रह जैसा पर्व

शुष्क प्रवृत्ति का व्यक्ति लोकहित नहीं, बल्कि लोकघाती हो जाता है. इस दृष्टि से ज्येष्ठ महीना संवेदना की परीक्षा का महीना है. इसी के साथ भीषण गर्म मौसम में शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी भी गर्मी के खिलाफ सत्याग्रह जैसा ही पर्व है, तो पूर्णिमा तिथि संत कवि कबीर की जयंती अंध-विश्वासों के खिलाफ सजगता का संदेश देता है.

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