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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, लोग अनुशासित रहें तो भारत बन सकता है महान राष्ट्र

भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को कहा कि सदन का गलियारा उन्होंने सबसे पहले 1989 में देखा, जब वह लोकसभा के लिए निर्वाचित किए गए. इसके बाद वे संसदीय कार्य मंत्री बने. संसद के कर्मचारी बेमिसाल हैं. समय के साथ-साथ काम और बेहतर हुआ है.

ब्यूरो, नई दिल्ली : भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को कहा कि नई तकनीक को स्वीकार करें और समय के साथ चलना सीखें. उन्होंने कहा कि कर्मचारियों को अपने काम के दौरान तकनीक का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए, ताकि कार्यक्षमता और उत्पादकता बढ़ सके. उन्होंने नए संसद भवन में जाने से पहले राज्यसभा सचिवालय के कर्मचारियों के लिए आयोजित उन्मुक्त विचार संगोष्ठी को संबोधित किया. यह संगोष्ठी राज्यसभा में विचारों के उन्मुक्त आदान-प्रदान, क्षमता विकास को लेकर विचार-विमर्श और सुधार के भावी प्रयासों को लेकर होती है.

सचिवालय कर्मियों की भाषा पर पकड़ अच्छी

उन्होंने कहा कि सचिवालय के कर्मचारियों का भाषा पर काफी अच्छी पकड़ है. सदन का गलियारा उन्होंने सबसे पहले 1989 में देखा, जब वह लोकसभा के लिए निर्वाचित किए गए. इसके बाद वे संसदीय कार्य मंत्री बने. संसद के कर्मचारी बेमिसाल हैं. समय के साथ-साथ काम और बेहतर हुआ है. कर्मचारियों का पाला उन लोगों से पड़ता है, जिनके सामने आप जुबान नहीं खोल सकते.

कर्मचारियों को जाता है राज्यसभा की क्षमता में सुधार का श्रेय

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि राज्यसभा की क्षमता में सुधार का श्रेय कर्मचारियों को जाता है. ऐसे में कर्मचारियों को परिवार को पहली प्राथमिकता देनी चाहिए. हमेशा परिवार में भरोसा रखें और उन्हें आगे बढ़ने में मदद करें. यह सुनिश्चित करें कि परिवार में कोई तनाव नहीं हो. कई कारणों से जीवन में तनाव आते रहते हैं. उनका समाधान मन में रखने से नहीं होगा. इस तनाव को दूर करने के लिए एक संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी की तैनाती होगी, ताकि कर्मचारी परिवार का ख्याल रख सकें. हमारे बच्चों को काउंसलिंग की आवश्यकता है और सचिवालय इसमें मदद करेगा. इसकी शुरुआत दिल्ली से हो रही है.

उपराष्ट्रपति ने मदद का दिया भरोसा

उपराष्ट्रपति ने कहा कि मुझसे व्यक्तिगत स्तर पर जो मदद होगी वह पूरी की जाएगी. देश ने काफी तरक्की की है, जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी और उसका क्रेडिट जाता है आम आदमी को, सरकारी तंत्र को, और उन लोगों को जिनकी सोच बड़ी है. प्रधान मंत्री की की सोच बहुत बड़ी है. सबका साथ सबका विकास यह नारा नहीं है, यह जमीनी हकीकत है. देश को आगे रखने के लिए सबसे पहले काम के प्रति निष्ठा होनी चाहिए, जिसका मतलब है कि हमारे एनवायरमेंट साफ हो. घर का आलीशान होना, ग्रेनाइट मार्बल का फ्लोर होना कोई मायने नहीं रखता है, अगर सफाई है तो, सीमेंट का साधारण घर भी लोगों को बहुत आकर्षित कर देता है. आज के दिन दुनिया के किसी भी कोने में चले जाइये, वहां भारतीय हर क्षेत्र में दिखेगा.

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हम अनुशासित रहेंगे तो भारत बनेगा महान राष्ट्र

उन्होंने कहा कि अगर हम अनुशासित रहें तो भारत को एक महान राष्ट्र बना सकते हैं. उन्होंने यहां आकर कुछ बदलाव किए लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि पहले जो लोग यहां थे, उन्होंने कुछ नहीं किया. 90 के दशक में मोबाइल नहीं था, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस नहीं था. ऐसे में कुछ काम पहले नहीं हो सकते थे. हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि कोई नया आदमी आया तो कोई नया करिश्मा करेगा ही. बदलाव लाने के लिए योग्यता और क्षमता भी होनी चाहिए.

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