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जानिए विपक्ष का कटाक्ष झेल पूर्व कानून मंत्री किरेन रीजीजू का कैसा रहा कार्यकाल?

कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने रीजीजू को ‘नाकाम मंत्री’ कहा, वहीं वरिष्ठ वकील एवं राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने चुटकी लेते हुए कहा कि कानूनों के पीछे के विज्ञान को समझना आसान नहीं है.

केंद्रीय कानून मंत्री के पद हटा कर किरेन रीजीजू को अब पृथ्वी विज्ञान मंत्री बनाया गया है. वहीं अर्जुन राम मेघवाल को नया कानून मंत्री बनाया गया है, मगर इन सब के बीच आज दिन भर रीजीजू विपक्ष का कटाक्ष झेलते रहे. कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने रीजीजू को ‘नाकाम मंत्री’ कहा, वहीं वरिष्ठ वकील एवं राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने चुटकी लेते हुए कहा कि कानूनों के पीछे के विज्ञान को समझना आसान नहीं है.

कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने रीजीजू को ‘नाकाम मंत्री’ कहा

न्यायिक नियुक्तियों की कॉलेजियम प्रणाली के मुखर आलोचक रहे रीजीजू को आड़े हाथ लेते हुए टैगोर ने ट्वीट किया, ‘‘नाकाम कानून मंत्री चले गये. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में वह क्या कर सकते हैं? उम्मीद है कि अर्जुन राम मेघवाल कानून मंत्री के रूप में गरिमापूर्ण तरीके से काम करेंगे.’

कपिल सिब्बल ने ली चुटकी

कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने रीजीजू को ‘नाकाम मंत्री’ कहा, वहीं वरिष्ठ वकील एवं राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने चुटकी लेते हुए कहा कि कानूनों के पीछे के विज्ञान को समझना आसान नहीं है. पूर्व कानून मंत्री सिब्बल ने कहा, ‘‘अब कानून नहीं, पृथ्वी विज्ञान मंत्री. कानूनों के पीछे का विज्ञान समझना सरल नहीं है. अब वह विज्ञान के कानूनों का सामना करेंगे. शुभकामना मेरे दोस्त.’’ वहीं उद्धव ठाकरे नीत शिवसेना की नेता और राज्यसभा सदस्य प्रियंका चतुर्वेदी ने रीजीजू को कानून मंत्री पद से हटाकर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में भेजे जाने के संभावित कारणों का जिक्र करते हुए कहा कि क्या महाराष्ट्र के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय का हालिया फैसला तो वजह नहीं था?

प्रियंका चतुर्वेदी ने भी साधा निशाना 

उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘क्या महाराष्ट्र पर आये फैसले से असहज स्थिति बनी ?’’ बहुजन समाज पार्टी के लोकसभा सदस्य दानिश अली ने ट्वीट कर कहा, ‘‘सात फरवरी, 2023 को मैंने किरेन रीजीजू द्वारा न्यायपालिका की अतार्किक और खतरनाक आलोचना किए जाने का लोकसभा में पुरजोर विरोध किया था. उन्हें आज हटा दिया गया. यह काफी देर से हुआ और वह संस्था को बहुत नुकसान पहुंचा चुके हैं.

रीजीजू का न्यायिक नियुक्तियों को लेकर उच्चतम न्यायालय के साथ लगातार टकराव रहा 

न्यायिक नियुक्तियों को लेकर उच्चतम न्यायालय के साथ लगातार टकराव का सामना करने वाले रीजीजू सात जुलाई, 2021 को देश के कानून मंत्री बने थे. उन्होंने भारतीय जनता पाटी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद का स्थान लिया था. उस समय खेल मंत्री और अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री रीजीजू को पदोन्नत कर केंद्रीय मत्रिमंडल में शामिल किया गया था. कानून मंत्री के तौर पर रीजीजू उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना करने में सरकार में सबसे मुखर रहे थे. उन्होंने इस प्रणाली को भारत के संविधान से ‘अलग’ बताया था और कहा था कि यह देश के लोगों द्वारा समर्थित नहीं है.

रीजीजू के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के ‘भारत विरोधी गिरोह’ वाले बयान की खूब चर्चा हुई. 

कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के ‘भारत विरोधी गिरोह’ का हिस्सा होने संबंधी उनकी हालिया टिप्पणी पर भी कड़ी प्रतिक्रिया हुई थी. उन्होंने दावा किया था कि कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीश और कुछ कार्यकर्ता जो ‘भारत विरोधी गिरोह’ का हिस्सा हैं, वे कोशिश कर रहे हैं कि भारतीय न्यायपालिका विपक्षी दल की भूमिका निभाए. 51 साल के रीजीजू भाजपा सरकार में कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं जिनमें केंद्रीय गृह राज्य मंत्री, केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री और केंद्रीय युवा और खेल राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) का पद शामिल है. इसके बाद उन्हें वर्ष 2021 में केंद्रीय कानून मंत्री के रूप में कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्रदान किया गया.

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने पर रीजीजू की टिप्पणी 

उच्चतम न्यायालय जब समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिए जाने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था तब उन्होंने कई मौकों पर कहा कि विवाह संस्था से जुड़े मुद्दे पर संसद द्वारा फैसला लिया जाना चाहिए क्योंकि जनमानस का प्रतिनिधित्व संसद करती है, ना की अदालत.

न्यायपालिका में नियुक्तियों में ‘देरी’ को लेकर बिफरने पर रीजीजू को शीर्ष अदालत की नाराजगी का सामना करना पड़ा

रीजीजू ने यह भी कहा था कि राजनेताओं की तरह न्यायाधीशों को दोबारा चुनाव का सामना नहीं करना पड़ता है. पिछले साल नंवबर में न्यायपालिका में नियुक्तियों में ‘देरी’ को लेकर बिफरने पर रीजीजू को शीर्ष अदालत की नाराजगी का सामना करना पड़ा. उन्होंने कहा था ‘‘ऐसा कभी नहीं कहा कि सरकार ने फाइलें रोकीं. आप सरकार के पास फाइलें न भेजें, खुद नियुक्ति करें और फिर खुद ही शो चलाएं.’’ उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर हैरत जताई थी कि क्या उच्चतर न्यायपालिका के लिए नियुक्तियों को मंजूरी देने में विलंब इस वजह से हुआ कि उसने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को निरस्त कर दिया था.

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