रांची, राणा प्रताप : झारखंड हाईकोर्ट (Jharkhand High Court) को आज नयी इको फ्रेंडली बिल्डिंग की सौगात मिलेगी. इसके निर्माण का विचार भी झारखंड राज्य के निर्माण के बाद आया. इससे पहले पटना हाईकोर्ट की स्थापना वर्ष 1916 में हुई थी. फिर छोटानागपुर के रांची में छह मार्च 1972 को पटना हाईकोर्ट की पहली सर्किट बेंच की स्थापना हुई. छोटानागपुर क्षेत्र की आदिवासी आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए बेंच की स्थापना की गयी थी. आठ अप्रैल 1976 को तत्कालीन चीफ जस्टिस उज्जवल नारायण सिन्हा ने स्थायी पीठ का उदघाटन किया था.
झारखंड हाईकोर्ट के गठन के दिन 15 नवंबर 2000 को चीफ जस्टिस वीके गुप्ता सहित 12 न्यायाधीश थे. नया झारखंड राज्य बनने के बाद प्रति वर्ष मुकदमों की संख्या बढ़ती गयी. साथ ही वकील, मुंशी व मुव्वकिल भी बढ़ते गये. एक जनवरी 2007 को न्यायाधीशों की संख्या बढ़ा कर 20 कर दी गयी. उस समय डोरंडा स्थित पांच एकड़ के हाइकोर्ट परिसर में जगह की कमी थी. कोर्ट रूम कम थे. उसी परिसर में कोर्ट रूम की संख्या बढ़ायी गयी. इस क्रम में परिसर पर दबाव बढ़ने लगा. वाहनों की संख्या भी बढ़ी. पार्किंग की समस्या पैदा होने लगी. वकील-मुव्वकिल सड़कों के किनारे वाहन खड़ा करने के लिए मजबूर हो गये.
कोर्ट पर मुव्वकिल का पहला हक है, लेकिन यहां पर मुव्वकिलों, यहां तक की महिलाओं व उनके साथ आये बच्चों के बैठने तक की जगह नहीं थी. वकीलों के बैठने की जगह भी कम थी. कहावत है कि वकील अच्छी बहस करेगा, तब फैसला भी अच्छा आयेगा, लेकिन वकीलों को यहां पढ़ने के लिए पर्याप्त सुविधा नहीं थी. लाइब्रेरी के लिए जगह कम थी. यहां 2500 वकील हैं और लाइब्रेरी में दर्जन भर कुर्सी लगती हैं. वैसी स्थिति में हाइकोर्ट के लिए नया परिसर बनाने का विचार आया.
वरीय अधिवक्ता जय प्रकाश ने पीआइएल डाली
एडवोकेट एसोसिएशन के तत्कालीन अध्यक्ष व हाइकोर्ट के वरीय अधिवक्ता जय प्रकाश ने 12 मई 2010 को अपने जन्म दिन पर जनहित याचिका संख्या-2211/2010 दायर की. एचइसी ने बेल आउट पैकेज के तहत राज्य सरकार को 2000 एकड़ जमीन दी थी, उसमें से 300 एकड़ जमीन झारखंड हाइकोर्ट को हस्तांतरित करने की मांग याचिका में रखी गयी. मामले की सुनवाई चलती रही. तत्कालीन चीफ जस्टिस प्रकाश टाटिया की अध्यक्षतावाली खंडपीठ में मई 2011 में नगड़ी अंचल के धुर्वा के तिरिल मौजा में 165 एकड़ जमीन झारखंड हाइकोर्ट को हस्तांतरित करने की बात राज्य सरकार ने कही. उसके बाद राज्य सरकार ने ही हस्तांतरित भूमि की चहारदीवारी करायी. बाद में राज्य सरकार ने हस्तांतरित जमीन पर चहारदीवारी करायी.
वर्ष 2013 में हाईकोर्ट के नये इको फ्रेंडली भवन की आधारशिला रखी गयी. फिर 2015 में भवन का निर्माण कार्य शुरू हुआ. निर्माण के दौरान तत्कालीन एक्टिंग चीफ जस्टिस डीएन पटेल के नेतृत्व में परिसर में पौधरोपण का अभियान चलाया गया. वर्तमान में चीफ जस्टिस सहित न्यायाधीशों के 25 पद स्वीकृत हैं.
इको फ्रेंडली ग्रीन बिल्डिंग की कई विशेषताएं हैं. पूरी बिल्डिंग की बाहरी दीवार आग, जल, ध्वनि प्रदूषण से सुरक्षित है. इसके निर्माण में ओड़िशा में निर्मित एएसी ब्लॉक का उपयोग किया गया है. दो ब्लॉक के बीच में रॉकूल दिया गया है. इस कारण बिल्डिंग के अंदर व बाहर के तापमान में हमेशा अंतर रहेगा. यह बिल्डिंग पूरी तरह इको फ्रेंडली है. सौर ऊर्जा के लिए पैनल लगाया गया है.
25 कोर्ट रूम
इको फ्रेंडली बिल्डिंग में चीफ जस्टिस का कोर्ट रूम (कोर्ट नंबर-वन) सबसे अंतिम हिस्से में है. इसका क्षेत्रफल 80 फीट लंबा, 65 फीट चौड़ा व 40 फीट ऊंचा है. वीडियो कांफ्रेंसिंग रूम, कांफ्रेंस रूम, लाइब्रेरी और डायनिंग रूम बनाये गये हैं. वहीं अन्य 24 कोर्ट रूम भी अत्याधुनिक हैं. प्रथम तल पर दाये-बायें छह-छह कुल 12 कोर्ट रूम बनाये गये हैं. इतने ही कोर्ट रूम द्वितीय तल पर बनाये गये हैं. वहीं सीनियर एडवोकेटस के लिए 76 तथा अन्य अधिवक्ता के 576 चेंबर बनाये गये हैं.
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बिल्डिंग में 32 लिफ्ट लगाये गये हैं, जिसमें एक बार 13 व्यक्ति जा सकेंगे. कोर्ट रूम जाने के अलावा एडवोकेटस ब्लॉक, एजी ऑफिस में भी लिफ्ट का प्रावधान है. ग्राउंड फ्लोर पर और दूसरा प्रथम तल पर दो-दो स्केलेटर लगाये गये हैं.
5 लाख किताबें रहेंगी
लाइब्रेरी की व्यवस्था की गयी है. इसमें कानून से संबंधित लगभग पांच लाख किताबों को रखने की व्यवस्था है. बिल्डिंग के अंदरूनी हिस्से के तापमान को नियंत्रित करने के लिए वातानुकूलित (एसी) प्लांट बनाया गया है.
कैंपस के गेट नंबर-एक से प्रवेश करते ही 60 साल पुराना साइकस बोनसाई पौधा नजर आयेगा. यहां से आगे बढ़ने पर 50 फीट ऊंचा ध्वज स्तंभ नजर आयेगा. यहां पर राष्ट्रीय झंडा तिरंगा फहराता रहेगा. सामने सेरेमोनियल रैंप बनाया गया है. जहां से सीधे हाइकोर्ट के मुख्य भवन में प्रवेश किया जा सकता है, लेकिन यह रैंप विशेष अवसरों पर ही खुलेगा. रैंप के बगल में दोनों ओर फाउंटेन बनाये गये हैं, जो अपनी ओर आकर्षित करते हैं. इसके अलावा बोनसाई के पौधे सेरोमोनियल रैंप के अलग-बगल व सामने लगाये गये हैं. परिसर को हरा-भरा रखने के लिए तीन लाख वर्ग फीट में विभिन्न प्रजातियों के 2000 पौधे लगाये गये हैं. इनमें आम, पीपल, बरगद, नीम, पॉम ट्री के साथ 400 प्रकार के पौधे लगाये गये हैं. पटवन की स्वचालित व्यवस्था की गयी है.
के निर्माण का इतिहास
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12 मई 2010 को एडवोकेट एसोसिएशन के तत्कालीन अध्यक्ष जय प्रकाश ने पीआइएल दायर किया.
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मई 2011 में राज्य सरकार ने धुर्वा में 165 एकड़ जमीन हाइकोर्ट को स्थानांतरित की.
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नौ फरवरी 2013 को इको फ्रेंडली बिल्डिंग की आधारशिला रखी गयी.
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18 जून 2015 को हाइकोर्ट भवन का निर्माण शुरू किया गया.
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जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद व जस्टिस रत्नाकर भेंगरा की खंडपीठ द्वारा मॉनिटरिंग की गयी.
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दो साल निर्माण कार्य बाधित रहा. संशोधित डीपीआर के बाद पुन: कार्य शुरू हुआ.
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30 अप्रैल 2023 को राज्य सरकार ने हाइकोर्ट को भवन हैंडओवर किया.
बिहार राज्य पुनर्गठन के बाद 15 नवंबर 2000 को झारखंड हाइकोर्ट अस्तित्व में आया. झारखंड के 22 वर्ष के दौरान हाइकोर्ट में 14 चीफ जस्टिस हुए हैं. वर्तमान में संजय कुमार मिश्र झारखंड हाइकोर्ट के 14वें चीफ जस्टिस हैं. सबसे पहले वीके गुप्ता हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस बनाये गये थे. इसके बाद पीकेआइ बालासुब्रह्मण्यम, अल्तमस कबीर, एन दिनाकर, एम करपग विनायगम, ज्ञान सुधा मिश्र, भगवती प्रसाद, प्रकाश टाटिया, आर भानुमति, वीरेंदर सिंह, पीके मोहंती, अनिरुद्ध बोस और डॉ रवि रंजन चीफ जस्टिस रह चुके है.
झारखंड हाइकोर्ट के वर्तमान चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्र ने पदभार ग्रहण करने के बाद नये परिसर के निर्माण को पूरा करने का निर्देश दिया था. लक्ष्य निर्धारित कर उसकी लगातार मॉनिटरिंग करते रहे तथा 30 अप्रैल तक हैंडओवर करने का निर्देश दिया. उन्हीं का प्रयास रहा कि हाइकोर्ट के नये भवन का निर्माण भी पूरा हो गया तथा पुराने भवन से शिफ्टिंग भी शुरू हो गयी.