23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

झारखंड : पहनने के लिए चप्पल भी नहीं, घर वालों के ताने सुन गये स्कूल, फिर ऐसे भोला साह बने आदर्श शिक्षक

भाेला साह कहते हैं : गांव में संयुक्त परिवार में रहते थे. वहां दूसरी कक्षा तक पढ़ाई बहुत होती थी. रामायण पढ़ना और चिट्टी लिखना आ गया, मतलब बहुत पढ़ लिये. इसके बाद सभी खेती-बाड़ी पर ध्यान देते.

रांची, पूजा सिंह :

शिक्षा ऐसी ताकत है, जो इंसान को विपरीत परिस्थितियों से लड़ने का हौसला देती है. बोकारा चास के रहनेवाले भोला साह इसकी मिसाल हैं. उन्होंने जिस दौर में वह पढ़ाई कर रहे थे, उनके पास कायदे की एक जोड़ी चप्पल भी नहीं थी. नंगे पाव स्कूल गये, घरवालों के ताने सुने और कष्ट में दूसरे के घर रहकर पढ़ाई पूरी की.

उन्हें पता था कि शिक्षा ही इंसान के जीवन को सही दिशा दे सकता है, इसलिए शिक्षक बनने के बाद से ही यह कोशिश करते रहे कि कोई भी बच्चा संसाधन के अभाव में पढ़ाई न छोड़े. रिटायर होने के बाद भी शिक्षा से भोला साह का नाता नहीं टूटा. प्रभात खबर की शृंखला ‘शिक्षक, जो हैं मिसाल’ की इस कड़ी में प्रस्तुत है भोला साह के संघर्ष और सफर की कहानी…

पढ़ाई मतलब रामायण पढ़ना और चिट्ठी लिखना आ जाये :

भाेला साह कहते हैं : गांव में संयुक्त परिवार में रहते थे. वहां दूसरी कक्षा तक पढ़ाई बहुत होती थी. रामायण पढ़ना और चिट्टी लिखना आ गया, मतलब बहुत पढ़ लिये. इसके बाद सभी खेती-बाड़ी पर ध्यान देते. बाकी भाइयों ने दूसरी कक्षा के बाद पढ़ाई नहीं की, लेकिन मैंने एक-एक कक्षा डांट सुनते हुए पूरी की. हर कक्षा के बाद अगली कक्षा में पढ़ने की इच्छा के कारण 1968 में मैट्रिक तक की पढ़ाई पूरी कर ली. इस दौरान कभी स्कूल फीस न दे पाया.

स्कूल से अक्सर कहा जाता :

नाम काट दिया जायेगा, लेकिन सवा रुपये तक नहीं दे पाता था. किसी तरह मैट्रिक पूरी की, लेकिन रिजल्ट लेने के लिए 10 रुपये स्कूल में जमा करने को नहीं थे. शिक्षकों की मदद से रिजल्ट निकलने के तीन दिन बाद स्कूल जाकर 10 रुपये देकर रिजल्ट लाया था.

एक वक्त खाना खाकर पूरा दिन गुजार देता था :

भोला साह ने बताया कि मैट्रिक करने के बाद गांव के ही एक व्यक्ति जो टाटा में रहते थे, उनके घर रिजल्ट लेकर नंगे पांव पहुंच गया. हालांकि, उनके घर जाने की इच्छा नहीं थी. लेकिन घरवालों के कहने पर जाना पड़ा. उनके घर में रहने के बदले उनके बच्चों को पढ़ाता और छोटे-बड़े काम करता था.

रात को सबके खाना खाने के बाद मुझे खाना मिलता था. सुबह जो मिल जाये, वही खाकर निकल जाता. आज भी याद है टाटा पहुंचने के तीसरे दिन हवाई चप्पल खरीदकर कॉलेज गया था. दिन भर कॉलेज की पढ़ाई के बाद शाम को दो जगह जाकर ट्यूशन पढ़ाता, उसके बाद घर पर बच्चों को पढ़ाता था. उस समय दो जगह ट्यूशन के 15-20 रुपये मिलते थे. ट्यूशन का पैसा भी उन्हीं को दे देते थे. इसी के साथ बीएससी, एमसएसी और बीएड किया.

1978 में बोकारो आये, बीएसएल में पढ़ाना शुरू किया :

भोला साह वर्ष 1974 में शिक्षण के क्षेत्र में आ गये. 1978 में बोकारो आकर बीएसएल स्कूल में पढ़ाना शुरू किया. यहां पहले मीडिल, फिर हाइस्कूल और उसके बाद प्लस टू स्कूल में पढ़ाते हुए रिटायर हुआ. वर्ष 1995 में इन्हें आदर्श शिक्षक का खिताब भी मिल चुका है. वर्तमान में आसपास बच्चों को पढ़ाने के साथ शिक्षा के प्रति लोगों को जागरूक कर रहे हैं. कहते हैं : मेरे परिवार वाले शिक्षा को लेकर जागरूक नहीं थे. हर क्लास में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने के बाद भी सबको लगता था कि बस स्कूल जाता है. पढ़-लिख कर क्लेक्टर बन जायेगा क्या? लेकिन मैंने पढ़ने की इच्छा को जगाये रखा.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें