आदिवासी पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था के प्रमुखों का सात सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल देश परगना बैजू मुर्मू के नेतृत्व में राजभवन रांची में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिला. सर्वप्रथम आदिवासी समुदाय की ओर से उन्हें झारखंड आगमन पर हार्दिक अभिनंदन किया. इस दौरान स्वशासन व्यवस्था के प्रमुखों ने राष्ट्रपति से भारतीय मुद्राओं में ओलचिकि लिपि से लिखे जाने की मांग की. उनका कहना था कि भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में संताली भाषा को शामिल किया गया है, इसलिए उनकी लिपि को भारतीय मुद्रा में जगह मिलनी चाहिए. साथ ही उन्होंने बहुसंख्यक प्रकृति पूजक आदिवासियों की सरना धर्म कोड को मान्यता देने व अगली जनगणना के प्रपत्र पर कॉलम कोड के साथ स्थान देने की मांग की.
संताली भाषा शिक्षकों की बहाली हो
स्वशासन व्यवस्था के प्रमुखों का कहना है कि नयी शिक्षा नीति के तहत मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने के लिए झारखंड राज्य में आदिवासी संताली भाषा किताब को ओलचिकि लिपि से मुद्रित किया जाये. साथ पद को सृजित करते हुए अविलंब संताली शिक्षकों की भी बहाली की जाये, ताकि संताल बहुल क्षेत्र के लोग अपनी मातृभाषा में पठन-पाठन कर सकें. संताली भाषा के उत्थान के लिए संताली साहित्य अकादमी का भी अविलंब गठन होना चाहिए. वहीं पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों में संविधान के तहत आदिवासियों को कई अधिकार दिये गये हैं. उन अधिकारों को यहां सख्ती से लागू किये जाने की जरूरत है.
राष्ट्रपति ने माना कि स्वशासन व्यवस्था कभी खत्म नहीं होगी
स्वशासन व्यवस्था के प्रमुख ने बताया कि कुछ असामाजिक तत्व संताल आदिवासियों की परंपरा व संस्कृति को समाप्त करने के लिए बाहरी शक्ति के साथ मिलकर आदिवासी रुढ़ीवादी प्रथा को समाप्त करने की साजिश कर रहे हैं. ऐसे असामाजिक व्यक्तियों के नापाक इरादों को विफल करने के लिए आदिवासी समाज एकजुट हैं. इस पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी आश्वासन दिया आदिवासी समाज की व्यवस्था आज की नहीं है, यह हजारों वर्ष पुरानी है. यह रुढ़ी प्रथा के तहत स्वशासन व्यवस्था आज भी शांतिपूर्ण तरीका से चला आ रहा है, यह कभी नहीं मिटेगा.