लखनऊ. मिशन मिलियन सेक्सड आर्टिफिशियल इंसिमिनेशन (एआई) की बुनियाद पर यूपी श्वेत क्रांति का अगुआ बनने की दिशा में काम कर रहाहै. सेक्सड सॉर्टेड सीमेन एक ऐसी तकनीक है जिसके जरिये जिस गोवंश का कृत्रिम गर्भाधान किया जायेगा उनमें 90 फीसदी गोवंश बछिया ही जनेगी. इस तकनीक का सफल बनाने के लिए जिस सांड के शुक्राणु से एआई की जाएगी उसकी पूरी वंशावली तैयार की जाएगी. ऐसे में पैदा होने वाली बछिया अपने माता-पिता से प्राप्त गुणों के कारण अच्छी नस्ल की होगी. इससे दो से तीन साल में दूध उत्पादन में अच्छी-खासी वृद्धि हो जाएगी. बछड़े पैदा भी होंगे तो उनकी भी प्रजाति बेहतर होगी. वह भविष्य में प्रजनन संबंधी जरूरतों को पूरा करेंगे. यह निराश्रित गोवंश की समस्या के स्थाई हल की ओर बड़ा कदम होगा.
उप्र वेटरनरी सर्विस एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष डॉ.राकेश कुमार शुक्ला के अनुसार स्थानीय स्तर पर रोजगार एवं देश के विकास के लिहाज से डेरी सेक्टर बेहद संभावनाओं का क्षेत्र है. भारत में करीब 8 करोड़ परिवार इस सेक्टर से जुड़े हुए हैं. यह सेक्टर सालाना करीब 8.9 फीसद की दर से बढ़ रहा है. इस सेक्टर की मौजूदा वैल्यू करीब 124.93 बिलियन डॉलर की है. अनुमान है कि 2030 तक यह बढ़कर 227.53 बिलियन डॉलर की हो जाएगी. इस तरह डेरी सेक्टर रोजगार एवं अर्थव्यवस्था के लिहाज से व्यापक संभावनाओं का क्षेत्र है. उत्तर प्रदेश पशुधन विकास परिषद गोरखपुर के जोनल अध्यक्ष रहे पशु चिकित्सक डॉ. बीके सिंह के मुताबिक उत्तर प्रदेश देश का सर्वाधिक दुग्ध उत्पादक एवं सर्वाधिक आबादी वाला राज्य है. एआई से रोजगार और अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी.
सेंट्रल एनीमल ब्रीडिंग इंस्टीट्यूट के पशु चिकित्सक डा.संजीव श्रीवास्तव ने बताया कि नर पशु के शुक्राणुओं का वजन उनकी सक्रियता के आधार पर अलग-अलग होता है.सक्रिय शुक्राणु कुछ भारी होते हैं. स्पर्मेटोजोआ तकनीक से वजन के अनुसार सक्रिय शुक्राणुओं को अलग-अगल कर लिया जाता है.इसके बाद जब इनको खास मशीन पर रखा जाता है तो सक्रिय एक्स और वाई क्रोमोजोम के शुक्राणु अलग-अलग हो जाते हैं. इनको हिमीकृत वीर्य तकनीक से अलग-अलग संरक्षित कर लेते हैं. इनके जरिए कृत्रिम गर्भाधान कराया जाता है. परंपरागत एआई या प्राकृतिक प्रजनन से पैदा होने वाले नर और मादा संतति का अनुपात 50-50 फीसद का होता है. नयी तकनीक से बछिया ही पैदा होगी, इसकी संभावना 90 फीसद से अधिक होती है. इसके प्रयोग से कुछ वर्षो में ही मादाओं की संख्या बढ़ाकर दूध का उत्पादन दोगुना करना संभव है.