23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

ओडिशा रेल हादसे के सबक

विशेषज्ञ इस ओर इशारा करते आये हैं कि हमारे ट्रैक पर भारी ट्रैफिक है और आधारभूत ढांचा उसके अनुरूप नहीं है. अधिकांश दुर्घटनाओं में प्रमुख कारण यही होता है.

ओडिशा रेल हादसे ने पूरी रेल व्यवस्था को हिला कर रख दिया है. हाल के वर्षों में इतनी बड़ी रेल दुर्घटना नहीं हुई है. दुर्घटना ने रेलवे की कार्यप्रणाली को सवालों के घेरे में ला खड़ा किया है. रेलवे हम आप, सबसे जुड़ा मामला है इसलिए चिंता और बढ़ जाती है. बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए रेल एक तरह से जीवन रेखा है. इस दुर्घटना ने आम यात्री के मन में डर भर दिया है. दुर्घटनाग्रस्त हुई कोरोमंडल एक्सप्रेस पश्चिम बंगाल को तमिलनाडु से जोड़ती है.

इसमें ज्यादातर ऐसे लोग यात्रा करते हैं, जो काम के सिलसिले में अथवा बेहतर चिकित्सा के लिए तमिलनाडु जाते हैं. प्रारंभिक जांच में पता चला है कि कोरोमंडल एक्सप्रेस बाहानगा बाजार स्टेशन से ठीक पहले मेन लाइन यानी मुख्य मार्ग के बजाय लूप लाइन पर चली गयी और वहां खड़ी एक मालगाड़ी से टकरा गयी. इसके बाद उसके डिब्बे बगल की पटरी पर जा गिरे, जिसके बाद वहां से गुजर रही बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस के डिब्बे चपेट में आ गये.

प्रारंभिक रिपोर्ट में बताया गया है कि ट्रेन को सिग्नल दिया गया था, जिसे बाद में बंद कर दिया गया. रेलवे ने हादसे की उच्चस्तरीय जांच शुरू की है, पर होता यह है कि जांच की गाज नीचे के अधिकारियों और कर्मचारियों पर गिरती है, जो समस्या का हल नहीं है. आज जरूरत है कि पूरी रेल व्यवस्था का ऑडिट हो, उसके आधार पर प्राथमिकताएं तय हों और फिर उस दिशा में समयबद्ध ढंग से काम हो.

यह सही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की सक्रियता के कारण राहत व बचाव अभियान बहुत तेज गति से चला. ओडिशा की जनता को भी साधुवाद. मैंने ऐसी कई तस्वीरें देखीं हैं, जिनमें रेल हादसे में घायल यात्रियों के लिए रक्तदान करने के इच्छुक लोगों की अस्पतालों के बाहर लंबी कतारें लगी हुई थीं.

रेल दुर्घटनाओं के बाद यह सवाल जायज है कि हमारी रेल व्यवस्था कितनी सुरक्षित है. हालांकि समय-समय पर विशेषज्ञ इस ओर इशारा करते आये हैं कि हमारे ट्रैक पर भारी ट्रैफिक है और आधारभूत ढांचा उसके अनुरूप नहीं है. अधिकांश दुर्घटनाओं में प्रमुख कारण यही होता है. हालांकि रेल दुर्घटनाएं कई अन्य कारणों से भी होती हैं, जैसे गलत सिग्नल दे दिया जाना, खुले फाटक और कभी कभार आतंकवादी व अराजक तत्व भी ट्रेनों को निशाना बनाते आये हैं.

पिछले कुछ समय में कोई बड़ी रेल दुर्घटना तो नहीं हुई, लेकिन छोटी-छोटी कई दुर्घटनाएं हुई हैं. 13 जनवरी, 2022 को बीकानेर-गुवाहाटी एक्सप्रेस के 12 डिब्बे पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार में पटरी से उतर गये थे, जिससे नौ लोगों की मौत हो गयी थी और 36 अन्य घायल हो गये थे. इसके बाद कुछ और दुर्घटनाएं हुईं, लेकिन उनमें जान-माल की कोई क्षति नहीं हुई थी. जैसे महाराष्ट्र में नासिक के निकट जयनगर एक्सप्रेस के 11 डिब्बे पटरी से उतर गये थे.

वैसे ही दादर से पुडुचेरी जाने वाली दादर पुडुचेरी एक्सप्रेस के तीन डिब्बे पटरी से उतर गये थे. लगातार हो रहीं ये छोटी दुर्घटनाएं यह सचेत करने के लिए पर्याप्त थीं कि भारतीय रेल प्रणाली में सब चुस्त-दुरुस्त नहीं है. यह तथ्य छुपा नहीं है कि देशभर में लगभग सभी स्थानों पर पटरियां अपनी क्षमता से कई गुना ज्यादा बोझ ढो रही हैं. फरवरी, 2015 में रेल मंत्रालय ने रेलवे की स्थिति पर एक श्वेत पत्र प्रकाशित किया था. इसमें भी पटरियों के रखरखाव को लेकर गंभीर चिंता जाहिर की गयी थी.

ऐसा नहीं है कि रेलवे का आधुनिकीकरण नहीं हुआ है. रेलवे ने यांत्रिक सिग्नल प्रणाली के स्थान पर इलेक्ट्रो मैकेनिकल रिले और माइक्रोप्रोसेसर आधारित इंटरलॉकिंग को स्थापित किया है. इसी प्रकार रेलवे टेलीकम्युनिकेशन के क्षेत्र में इलेक्ट्रोमैकेनिकल एक्सचेंजों और ओवर हैड लाइनों के स्थान पर धीरे-धीरे अत्याधुनिक ऑप्टिकल फाइबर और डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक तकनीक पर आधारित प्रणाली को लगा रहा है.

उत्तर रेलवे में कुल 40 रूट रिले इंटरलॉकिंग प्रणालियां कार्य कर रही हैं, जिनमें दिल्ली मेन पर लगायी गयी रूट रिले इंटरलॉकिंग प्रणाली को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में विश्व की सबसे बड़ी रूट रिले प्रणाली के रूप में मान्यता दी गयी है. इंजन फेल होने और कभी-कभार एचपी कम्प्रेसर पाइप में अत्यधिक गर्मी के कारण लोको में आग लगने की घटनाओं में कमी लाने के लिए एक आधुनिक पद्धति विकसित की गयी है.

वैसे, रेल व्यवस्था के बारे में पड़ताल करनी है, तो किसी भारी भरकम सर्वे की जरूरत नहीं है. बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल की ट्रेनों में यात्रा कर यात्रियों के अनुभव सुन लीजिए, तो पूरी तस्वीर साफ हो जायेगी. रिजर्वेशन खुलता नहीं कि सारी सीटें भर जाती हैं और फिर कैसी मारामारी होती है, यह सब लोग जानते हैं. हर साल दुर्गा पूजा, दिवाली और छठ पर तो बुरा हाल होता ही है. छठ पर दिल्ली से खुलने वाली ट्रेनों में यात्रियों की मारामारी की तस्वीरें हर साल छपती हैं.

वर्षों से छप रहीं वैसी तस्वीरें आज तक नहीं बदली हैं. ट्रेनों की आपस में टक्कर को रोकने के लिए कवच नामक सुरक्षा प्रणाली का उपयोग शुरू हुआ है. इसके पहले इस्तेमाल के समय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का एक वीडियो काफी वायरल हुआ था, लेकिन इसके व्यापक इस्तेमाल की गति बहुत धीमी है. इस दुर्घटना के बाद तो इसका दायरा तत्काल बढ़ाने की सख्त जरूरत है.

यह अच्छी पहल है कि रेलवे भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल करता है और ऐसी खबरें आती हैं कि ट्वीट पर कार्रवाई हुई. इसका सकारात्मक पक्ष यह है कि यह यात्री को एहसास दिलाता है कि उनकी कोई सुनने वाला है, पर ये सूचनाएं चिंताजनक हैं कि रेलवे में कर्मचारियों की कमी है, जिसमें रखरखाव करने वाले स्टाफ की बड़ी संख्या है. कर्मचारियों को अधिक काम करना पड़ता है, जिससे गलती की आशंका बनी रहती है.

नीति आयोग के एक अध्ययन के हवाले से कहा गया है कि 2012 के बाद से हर 10 में छह रेल दुर्घटनाएं रेलवे कर्मचारियों की गलती से होती हैं. रेलवे ने अपने 67368 किलोमीटर लंबे चौड़े ट्रैक को 1219 सेक्शन में बांटा हुआ है. इनमें लगभग 500 सेक्शन 100 फीसदी क्षमता पर कार्य कर रहे हैं यानी जितनी संभव है, उतनी ट्रेन इन पर चल रही हैं.

कहीं-कहीं तो क्षमता से अधिक ट्रेनों के परिचालन की भी सूचनाएं आती हैं. ट्रेन दुर्घटनाएं अधिकतर इन्हीं सेक्शन पर होती हैं. इन ट्रैकों पर इतना दबाव है कि रखरखाव के लिए पर्याप्त समय उपलब्ध नहीं होता है. इस दुर्घटना ने आमजन के मन में रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सवाल खड़े कर दिये हैं. अब यह जिम्मेदारी रेलवे की है कि वह इन आशंकाओं को दूर करे.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें