राजस्व पर्षद सदस्य अमरेंद्र प्रताप सिंह ने जमीन की खरीद-बिक्री के दौरान पड़ोसी को प्राथमिकता देनेवाले कानूनी प्रावधान को समाप्त करने की अनुशंसा की है. राजस्व पर्षद ने समीक्षा के दौरान इस कानूनी प्रावधान के दुरुपयोग की घटनाओं को देखते हुए यह अनुशंसा की है. बिहार ने भी कानून के दुरुपयोग के मद्देनजर इस प्रावधान को समाप्त कर दिया है. भूमि सुधार अधिनियम की धारा-16(3) में खरीद-बिक्री में पड़ोसी को प्राथमिकता देने का प्रावधान है.
राजस्व पर्षद सदस्य ने राज्य में भूमि सुधार (अधिकतम सीमा निर्धारण तथा अधिशेष भूमि अर्जन) 1961 के तहत विभिन्न न्यायालयों में दायर मुकदमों की समीक्षा की. समीक्षा में यह पाया गया कि राज्य में अधिनियम में अधिकतम सीमा निर्धारण के लिए दायर मुकदमों के मुकाबले जमीन की खरीद-बिक्री में प्राथमिकता देने की मांग को लेकर अधिक मुकदमे दायर किये जा रहे हैं. 2019 में भूमि सुधार अधिनियम के प्रावधानों के तहत सीमा निर्धारण के मामले में 19 मुकदमे दायर हुए.
इसके मुकाबले जमीन की खरीद-बिक्री में प्राथमिकता देने की मांग को लेकर 14 मुकदमे दर्ज हुए. यह मूल प्रावधान के आधार पर दायर मुकदमों का 74% है. पर्षद ने समीक्षा में पाया कि खरीद-बिक्री में पड़ोसी को प्राथमिकता देने की मांग को लेकर दायर मुकदमों में वृद्धि हो रही है. वर्ष 2020 में यह 88% तक पहुंच गया गया था. खरीद-बिक्री में पड़ोसी को प्राथमिकता देने के मुकदमों में दो, तीन डिसमिल या इससे कुछ अधिक क्षेत्रफल की जमीन शामिल है.
इन मुकदमों की संख्या बढ़ने की वजह से लोगों पर कानूनी लड़ाई का खर्च जमीन की कीमत से ज्यादा हो रहा है. साथ ही इस प्रावधान का मूल उद्देश्य पूरा नहीं हो रहा है. इस प्रावधान का मूल उद्देश्य छोटे-छोटे जमीन के टुकड़ों को खत्म कर बड़ा टुकड़ा बनाना था. लेकिन, अब इस कानून का इस्तेमाल पड़ोसियों को परेशान करने के लिए किया जा रहा है.
बिहार सरकार ने भी इससे संबंधित मुकदमों की समीक्षा के बाद कानून के दुरुपयोग को देखते हुए वर्ष 2019 में इस प्रावधान को समाप्त कर दिया है. झारखंड में भी इस कानून का लाभ नहीं हो रहा है. इसलिए बिहार की तर्ज पर यहां भी पड़ोसी को प्राथमिकता देनेवाले प्रावधान को समाप्त कर देना चाहिए. या फिर इसे कम से कम 25 डिसमिल जमीन के लिए लागू करने के लिए आवश्यक संशोधन करना चाहिए.
2019 19 14 74%
2020 17 15 88%
2021 16 13 81%
2022 34 27 79%