मनोज कुमार, पटना
World Environment Day: बिहार के खेतों में असंतुलित मात्रा में खाद का उपयोग हो रहा है. बिहार में खाद में नाइट्रोजन का अधिक मात्रा में प्रयोग किया जा रहा है. खाद में नाइट्रोजन का चार भाग, फॉस्फोरस का दो और पोटैशियम का एक भाग होना चाहिए, जबकि बिहार में नाइट्रोजन का 15 भाग, फॉस्फोरस का दो और पोटैशियम का एक भाग का उपयोग हो रहा है. आदर्श मात्रा से तीन गुना से अधिक नाइट्रोजन का उपयोग हो रहा है. फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में ये बातें कही गयी हैं. इससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है. असंतुलित मात्रा में नाइट्रोजन के उपयोग से नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है, जो तापमान बढ़ाता है.
खाद में युक्त नाइट्रेट भूजल में जाकर मिल जाता है. इससे पानी में नाइट्रेट की मात्रा भी बढ़ रही है. इसकी मात्रादस पानी में मात्रा पीटीएल से अधिक होने पर स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक होता है. खासकर यह बच्चों को काफी नुकसान करता है. बच्चों में होने वाला ब्लू बेबी सिंड्रोम का यह मुख्य कारक है.
बिहार कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान के सहायक प्राध्यापक डॉ नींटू मंडल ने बताया कि विश्वविद्यालय ने संतुलित खाद तैयार किया है. इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम की संतुलित मात्रा के साथ अतिरिक्त जिंक दिया गया है. अन्य खाद की अपेक्षा 40 फीसदी कम इसे खेतों में डालना पड़ेगा. इससे मिट्टी की पोषकता बनी रहेगी और पर्यावरण संतुलित रहेगा. इसका नाम मल्टी न्यूट्रिएंट नैनो पॉलीमर दिया गया है. दूसरा जीवाणु खाद (बायो फर्टिलाइजर) का भी निर्माण किया गया है.
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भागलपुर के बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के कुलपति डॉ डीएन सिंह ने बताया कि असंतुलित उर्वरक उपयोग मिट्टी के स्वास्थ्य को खराब करता है और पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ाता है. एमएनसीपीसी (एन,पी,के जेडएन), जैव उर्वरकों के उपयोग और एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन से मृदा स्वास्थ्य, फसल उत्पादकता को बनाये रखने के साथ पर्यावरणीय खतरे को कम किया जा सकेगा.