Jharkhand News: झारखंड हाइकोर्ट ने झारखंड विधानसभा में लगभग 150 से अधिक अवैध नियुक्तियों के मामले में दायर जनहित याचिका पर मंगलवार को सुनवाई की. चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्र और जस्टिस आनंद सेन की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान प्रार्थी व विधानसभा का पक्ष सुना. इसके बाद खंडपीठ ने इस मामले में जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की एक सदस्यीय आयोग द्वारा तैयार की गयी जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया. खंडपीठ ने कहा कि वह आयोग की रिपोर्ट कोर्ट देखना चाहता है. इसलिए विधानसभा के सचिव आयोग की रिपोर्ट शपथ पत्र के माध्यम से अगली सुनवाई के दौरान प्रस्तुत करें. खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 18 जुलाई, 2023 की तिथि तय की.
झारखंड विधानसभा में 150 से अधिक लोगों की बहाली बतायी गयी अवैध
इससे पहले प्रार्थी की ओर से अधिवक्ता राजीव कुमार ने बताया कि वर्ष 2005 से लेकर 2007 के बीच में झारखंड विधानसभा में लगभग 150 से अधिक लोगों की विभिन्न पदों पर बहाली की गयी थी, जो अवैध थी. नियुक्ति की जांच जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की एक सदस्यीय आयोग ने की थी. आयोग ने राज्यपाल को वर्ष 2018 में रिपोर्ट सौंपी थी. रिपोर्ट के आधार पर राज्यपाल ने विधानसभा अध्यक्ष को कार्रवाई करने को कहा था, लेकिन उक्त आयोग की रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी है. उसकी रिपोर्ट को जांचने के लिए एक दूसरा आयोग बना दिया गया है.
विधानसभा सचिव ने दाखिल की स्टेटस रिपोर्ट
विधानसभा सचिव की ओर से इस मामले में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की गयी. उनकी ओर से अधिवक्ता अनिल कुमार ने पक्ष रखते हुए खंडपीठ को बताया कि जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की रिपोर्ट का अध्ययन कर रहे जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की अध्यक्षतावाली आयोग की रिपोर्ट अब तक नहीं मिली है. रिपोर्ट तैयार करने की प्रक्रिया जारी है. आयोग का कार्यकाल सितंबर 2023 तक है. उल्लेखनीय है कि प्रार्थी शिवशंकर शर्मा ने जनहित याचिका दायर की है. उन्होंने झारखंड विधानसभा में हुई अवैध नियुक्तियों के मामले में उचित कार्रवाई करने की मांग की है. जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की जांच रिपोर्ट का अध्ययन करने के लिए जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की एक सदस्यीय आयोग बना दी गयी, जिसकी रिपोर्ट अब तक नहीं मिली है.
नेता और रसूखदारों की पैरवी पर मिली थी नौकरी
झारखंड विधानसभा में अवैध नियुक्ति और प्रोन्नति का मामला लंबे समय से चल रहा है. राज्य के पहले स्पीकर इंदर सिंह नामधारी के कार्यकाल में 274 और स्पीकर आलमगीर आलम के कार्यकाल में 324 लोगों की नियुक्ति हुई थी. वहीं, स्पीकर रहते शशांक शेखर भोक्ता ने गलत तरीके से लोगों को प्रोन्नत किया. श्री नामधारी के समय एक जिला से 70 प्रतिशत लोगों की बहाली की गयी. श्री आलमगीर के समय नियुक्ति में पैसे की लेन-देन का मामला सामने आया था. राज्यपाल सिब्ते रजी ने जांच के आदेश दिये थे. पहले सेवानिवृत्त न्यायाधीश लोकनाथ प्रसाद ने जांच की, उसके बाद जांच का जिम्मा सेवानिवृत्त न्यायाधीश विक्रमादित्य प्रसाद को मिला. वर्ष 2018 में विक्रमादित्य ने तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू (वर्तमान में राष्ट्रपति) को जांच रिपोर्ट सौंपी. श्रीमती मुर्मू ने जांच रिपोर्ट विधानसभा को कार्रवाई के लिए भेज दिया. विधानसभा ने पूरे मामले में अबतक कोई कार्रवाई नहीं की है. वर्तमान सरकार ने पूर्व न्यायाधीश बीके गुप्ता की अध्यक्षता में जांच रिपोर्ट की समीक्षा करते हुए कार्रवाई के बिंदु पर अध्ययन करने के लिए एक सदस्यीय आयोग बनाया है.
इनको माना गया था दोषी
पूर्व स्पीकर इंदर सिंह नामधारी, आलमगीर आलम, शशांक शेखर भोक्ता, तत्कालीन पूर्व तीन विधानसभा के सचिव और छह से ज्यादा विधानसभा के पदाधिकारी व कर्मी.