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केदारनाथ धाम त्रासदी : 10 साल बाद भी लोग नहीं भुला पाये वो मंजर, जब मंदाकिनी के रौद्र रूप से बिछ गयी थीं लाशें

केदारनाथ धाम में 2013 में जो आपदा आयी उसे विशेषज्ञ प्राकृतिक नहीं मान रहे थे. उनका यह कहना था कि यह प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का नतीजा है. मानव ने अपनी सुविधा के लिए नदियों-पहाड़ों का दोहन किया है जिसकी वजह से यह आपदा आयी.

केदारनाथ धाम की त्रासदी को आज 10 वर्ष हो गये हैं. साल 2013 में बादल फटने की घटना के बाद वहां भयंकर तबाही हुई थी और लगभग पांच हजार से ज्यादा लोगों के शव बरामद हुए थे और लगभग उतने ही लोग लापता थे. जिस वक्त त्रासदी हुई थी उस वक्त भी चार धाम की यात्रा जारी थी और प्रतिदिन 20 से 25 हजार लोग दर्शन के लिए केदारनाथ पहुंच रहे थे. उस त्रासदी में कई होटल और मकान भी चपेट में आये, लेकिन मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ था. आज जबकि केदारनाथ त्रासदी को दस हो गये हैं, लोगों के जेहन में उस त्रासदी की भयावहता कायम है.

दो-तीन साल तक मानव अंग के टुकड़े मिलते रहे

लगातार बारिश और बादल फटने की घटना के बाद केदारनाथ धाम में मंदाकिनी नदी उफान पर थी और उसने अपना रौद्र रूप दिखाया था. जलप्रलय की स्थिति में हजारों लोगों की मौत हुई तो हजारों लोग लापता हुए. प्रलय के दो-तीन साल बाद भी वहां मानव अंग के टुकड़े मिलते रहे थे. हजारों स्थानीय और पर्यटक मारे गये थे.

मंदिर को नहीं हुआ कोई बड़ा नुकसान

त्रासदी के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने मंदिर की नींव की स्थिति का अध्ययन किया. उनकी मदद आईआईटी मद्रास के विशेषज्ञों ने की और उन्होंने कई बार मंदिर का दौरा करने के बाद यह जानकारी दी थी कि मंदिर को इस जलप्रलय से कोई खास नुकसान नहीं हुआ है. एएसआई ने मंदिर के जीर्णोद्धार का काम किया, लेकिन उन्होंने मंदिर की मूल संरचना में ना तो कोई बदलाव किया और ना ही उन्होंने इसकी जरूरत महसूस की.

क्या थी आपदा की वजह

केदारनाथ धाम में 2013 में जो आपदा आयी उसे विशेषज्ञ प्राकृतिक नहीं मान रहे थे. उनका यह कहना था कि यह प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का नतीजा है. मानव ने अपनी सुविधा के लिए नदियों-पहाड़ों का दोहन किया है जिसकी वजह से यह आपदा आयी. साल 2013 में जितनी बारिश हुई वह केदारनाथ के लिए असामान्य नहीं थी उतनी वर्षा वहां होती रहती है. उत्तराखंड के डिजास्टर मिटिगेशन एंड मैनेजमेंट सेंटर ने बताया था कि सड़क निर्माण के लिए प्रयोग हो रहे विस्फोटकों के कारण पहाड़ ज्यादा गिरे हैं. मंदाकिनी पर बन रही दो परियोजनाओं में 15 से 20 किमी की सुरंगें निर्माणाधीन थीं. ये परियोजनाएं केदारनाथ के नजदीक हैं. इन सुरंगों को बनाने के लिए भारी मात्र में विस्फोटों का प्रयोग किया गया था, जिससे पहाड़ हिल गये और टूटने लगे. मंदाकिनी नदी में पहाड़ों के बड़े-बड़े टुकड़े गिरे और आमतौर पर शांत वेग से बहने वाली मंदाकिनी मानो क्रोधित हो बिफर गयी और हजारों लोगों के लिए काल बन गयी.

गर्मियों में शुरू होती है यात्रा

केदारनाथ धाम की यात्रा करना एक आम भारतीय का सपना होता है. चार धाम की यात्रा में केदारनाथ धाम की यात्रा भी शामिल है. इस वर्ष चार धाम की यात्रा की शुरुआत 22 अप्रैल से हुई है. 22 अप्रैल को गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खुले 25 को केदारनाथ के और 27 को बद्रीनाथ के कपाट खुले थे. प्रतिवर्ष गर्मी के मौसम में चार धाम यात्रा की शुरुआत होती है और सर्दियों की शुरुआत के साथ ही यह यात्रा समाप्त हो जाती है.

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