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बेतहाशा बढ़ते हवाई किरायों पर लगे लगाम

पिछले दो दशक में हवाई किराये में खासी कमी के चलते काफी लोग रेल की जगह हवाई यात्रा को प्राथमिकता देने लगे थे. लेकिन किराया बढ़ने से अब लोग पुनः अन्य साधनों की ओर मुड़ सकते हैं, जिससे हवाई यात्रा की मांग कम हो सकती है और इस उद्योग का विकास बाधित हो
सकता है.

पिछले कुछ समय से देश के अंतर्देशीय वायु परिवहन में हवाई किराये लगातार बढ़ रहे हैं. दिल्ली-मुंबई का अधिकतम हवाई किराया 20,000 रुपये तक पहुंच गया, जो पूर्व में मात्र 7000 ही होता था. शेष मार्गों पर भी किराये में वृद्धि के संकेत मिल रहे हैं. केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के बाद किरायों में कुछ कमी देखने को मिल रही है, लेकिन अभी भी यह बहुत अधिक है. कोविड के बाद यात्रियों की आवाजाही में काफी वृद्धि हुई है. हवाई यात्राओं की मासिक यात्री संख्या 1.2 करोड़ से 1.3 करोड़ बनी हुई है. इस वर्ष 30 अप्रैल को, एक दिन में 4.56 लाख यात्रियों ने अंतर्देशीय हवाई यात्रा कर एक रिकॉर्ड बनाया.

पिछले दो दशक में हवाई किराये में खासी कमी के चलते काफी लोग रेल की जगह हवाई यात्रा को प्राथमिकता देने लगे थे. लेकिन किराया बढ़ने से अब लोग पुनः अन्य साधनों की ओर मुड़ सकते हैं. जिससे हवाई यात्रा की मांग कम हो सकती है और इस उद्योग का विकास बाधित हो सकता है. हवाई किराया में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी वृद्धि हो रही है. एयरपोर्ट काउंसिल इंटरनेशनल (एशिया-पैसिफिक) की रिपोर्ट के अनुसार, अंतरराष्ट्रीय हवाई किराये में 50 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज हुई है. कहा जा रहा है कि विमानन किरायों में वृद्धि के दो प्रमुख कारण हैं. पहला, ईंधन की कीमत में वृद्धि. दूसरा, सामान्य महंगाई की दर में वृद्धि. वर्ष 2019 से अब तक विमानन ईंधन की कीमतों में 76 प्रतिशत वृद्धि हो चुकी है, जबकि विमानन कंपनियों की अन्य लागतें 10 प्रतिशत मंहगाई की दर से बढ़ रही हैं. पर एयरपोर्ट काउंसिल इंटरनेशनल का मानना है कि किराया को ऊंचा रखने के लिए विमानन कंपनियां आपूर्ति (सीट उपलब्धता) को सीमित रख कीमतों को ऊंचा रखने का प्रयास कर रही हैं. कंपनियों का यह कृत्य विमानन उद्योग में ग्रोथ को प्रभावित कर सकता है.

भारत में घरेलू विमानन क्षेत्र में कई कंपनियां कार्यरत हैं. फरवरी 2023 में 55.9 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ पहले स्थान पर इंडिगो, दूसरे और तीसरे स्थान पर टाटा समूह की एयर इंडिया और विस्तारा रहीं, जिनकी बाजार में हिस्सेदारी क्रमश: 8.9 प्रतिशत और 8.7 प्रतिशत थी. चौथे और पांचवें स्थान पर गो फर्स्ट और स्पाइसजेट हैं, जिनका बाजार में हिस्सा क्रमश: आठ और 7.1 प्रतिशत रहा. लेकिन ये दोनों विमानन कंपनियां अभी मुश्किल में आ चुकी हैं. गो फर्स्ट एयरलाइंस, वित्तीय कठिनाइयों से ही नहीं गुजर रही, बल्कि उसकी दिवालिया प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है. हालांकि उसकी कठिनाइयों के पीछे वित्तीय से ज्यादा तकनीकी कारण हैं, जिसके लिए इंजन आपूर्ति करने वाली कंपनी ‘प्रैट एंड विटनी’ जिम्मेदार है. पिछले कुछ समय से इस कंपनी द्वारा दिये गये इंजनों में खराबी के कारण गो फर्स्ट को अपने कई हवाई जहाज ग्राउंड करने पड़े. इन सबसे कंपनी भारी नुकसान में चली गयी.

इसी प्रकार, स्पाइसजेट भी आर्थिक मुश्किलों से गुजर रही है. यह एयरलाइन भी विमानों में तकनीकी गड़बड़ियों से जूझ रही है. नागरिक उड्डयन महाप्रबंधक ने कंपनी को अपने 10 बोइंग-737 मैक्स जहाजों को ग्राउंड करने का निर्देश दिया है. इंडिगो और टाटा समूह की एयर इंडिया, विस्तारा और एयर एशिया सरीखी बड़ी कंपनियों को स्पाइसजेट और गो फर्स्ट खासी प्रतिस्पर्धा देती थीं. इनके मुश्किल में पड़ने से इंडिगो और टाटा समूह की कंपनियों की प्रतिस्पर्धा घट गयी है. इसी कारण ये कंपनियां बेतहाशा हवाई किराया बढ़ा रही हैं. नागरिक विमानन क्षेत्र में निजी क्षेत्र के प्रवेश के बाद सामान्य तौर पर हवाई किरायों का निर्णय विमानन कंपनियों पर छोड़ा गया है ताकि वे बाजार के अनुसार कीमतें तय करें और उन्हें बिना वजह घाटा न सहना पड़े तथा विमानन क्षेत्र का स्वस्थ विकास हो.

बड़ी संख्या में विमानन कंपनियों की आपसी प्रतिस्पर्धा के चलते न केवल हवाई किराया काफी हद तक किफायती बना रहा, बल्कि नागरिक उड्डयन क्षेत्र का स्वस्थ विकास भी हुआ. हाल ही में एयर इंडिया द्वारा 550 नये विमानों सहित भारतीय विमानन कंपनियों द्वारा 1000 विमानों के ऑर्डर ने दुनिया को अचंभित कर दिया था. यह हमारे नागरिक उड्डयन क्षेत्र की विकास गाथा को परिलक्षित करता है. पर दो प्रमुख विमानन कंपनियों की आर्थिक कठिनाइयों के चलते इस क्षेत्र पर संकट छाया हुआ है. यदि गो फर्स्ट और स्पाइसजेट दिवालिया होती हैं, तो विमानन क्षेत्र में वस्तुतः इंडिगो और टाटा समूह का एकाधिकार हो जायेगा. ऐसे में पिछले दो दशकों से विमानन क्षेत्र में विकास और प्रतिस्पर्धा का जो लाभ आम जन को सस्ती हवाई यात्रा के रूप में मिल रहा था, वह समाप्त हो जायेगा.

पूर्व में एयर इंडिया के सार्वजनिक क्षेत्र में होने के कारण हवाई यात्रा में स्वाभाविक रूप से प्रतिस्पर्धा का लाभ जनता को मिल रहा था. पर अब एयर इंडिया टाटा समूह का हिस्सा है, सो प्रतिस्पर्धा बनाये रखने के लिए गो फर्स्ट और स्पाइसजेट को बचाना और भी जरूरी हो गया है. ये कंपनियां वित्तीय अनिमयताओं के कारण नहीं, बल्कि विमान एवं इंजन निर्माताओं द्वारा की गयी कोताही के कारण संकट में हैं. ऐसे में भारत सरकार द्वारा इस मामले में दखल जरूरी हो जाता है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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