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गांव की चुप्पी तोड़ें, पत्रकारों को क्षेत्रीय भाषा में लोगों तक पहुंचानी होगी सूचना, रांची में बोले पी साईनाथ

रांची में आयोजित स्टैन स्वामी व्याख्यानमाला से पहले देश के जाने-माने पत्रकार पी साईनाथ ने प्रभात खबर से खास बातचीत की. इसमें उन्होंने कहा कि गांव की चुप्पी तोड़नी होगी. पत्रकारिता को भाषा विस्तार करना होगा. क्षेत्रीय भाषा में लोगों तक पहुंच बनानी होगी.

गांव की चुप्पी को तोड़ना होगा. स्थानीय भाषा में पत्र-पत्रिकाओं को लोगों तक पहुंचाना होगा. आज राष्ट्रीय समाचार पत्रों में ग्रामीण क्षेत्र की खबरों को जगह नहीं मिलती. राष्ट्रीय समाचार पत्रों की बात करें, तो सिर्फ 0.67 फीसदी गांव की खबरों को पहले पन्ने पर जगह मिल पाती है. ये आंकड़े पिछले पांच साल के हैं, जो सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज (सीएमएस) ने दिये हैं. ये बातें देश के जाने-माने पत्रकार और मैग्सेसे पुरस्कार विजेता पी साईनाथ ने प्रभात खबर (prabhatkhabar.com) के साथ बातचीत में कहीं.

गांवों में बढ़ रही है असमानता : पी साईनाथ

झारखंड की राजधानी रांची के एक्सआईएसएस में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) की ओर से आयोजित द्वितीय स्टैन स्वामी व्याख्यानमाला को संबोधित करने से पहले पी साईनाथ ने प्रभात खबर के साथ बातचीत में कहा कि आज पत्रकारिता पूरी तरह से बदल गयी है. मीडिया हाउस और पत्रकार दोनों अलग-अलग चीजें हो गयीं हैं. इसलिए गांवों में लगातार असमानता बढ़ रही है.

हमारे देश में महात्मा गांधी, भगत सिंह जैसे पत्रकार हुए

पी साईनाथ ने 25 जून (रविवार) को रांची में कहा कि 1980 में जब मैं पत्रकारिता के क्षेत्र में आया था, तब सभी समाचार पत्रों में श्रम संवाददाता (Labour Correspondent) , ग्रामीण पत्रकार (Rural Journalist) हुआ करते थे. आज नहीं होते. श्री साईनाथ ने कहा कि हमारे पत्रकार कौन थे? महात्मा गांधी, भगत सिंह और डॉ भीमराव आंबेडकर पत्रकार हुए. उन्होंने मुनाफे के लिए पत्र-पत्रिकाएं नहीं निकालीं. वे लोगों को जागरूक करने के लिए पत्र निकालते थे.

गांव की खबरें फ्रंट पेज पर नहीं दिखती

श्री साईनाथ ने कहा कि करीब 70 फीसदी आबादी आज भी गांवों में रहती है. लेकिन, समाचार पत्रों में गांव की खबरें कभी सुर्खियां नहीं बनतीं. पहले पन्ने पर बमुश्किल उसे जगह मिल पाती है. उन्होंने कहा कि गांव में हर चीज का अभाव है, लेकिन समाचार का अभाव नहीं है. चारों ओर समाचार ही समाचार हैं. फिर भी अखबारों के फ्रंट पेज पर कभी गांव की खबर नहीं दिखती. इस ट्रेंड को बदलना चाहिए.

किसान आंदोलन ने बताया कि प्रतिरोध कैसे करते हैं

आज किसानों की सबसे बड़ी समस्या क्या है, इस सवाल के जवाब में पी साईनाथ ने कहा कि किसानों ने दिल्ली में इतना लंबा आंदोलन किया. उन्होंने किसानों के मुद्दे उठाये. पिछले 30 साल में किसी भी देश का यह सबसे बड़ा आंदोलन था. उन्होंने हमें सिखाया कि प्रतिरोध क्या है और कैसे किया जाता है. 53 सप्ताह तक वे डटे रहे और सरकार की नीतियों का विरोध किया.

किसानों के प्रति जवाबदेहा होगा किसान मजदूर कमीशन

यह पूछने पर कि मिनिमम सपोर्ट प्राइस (एमएसपी) और सब्सिडी के अलावा भी किसानों के कई मुद्दे हैं. लोग एमएसपी और सब्सिडी की मांग तो करते हैं, लेकिन कोई सॉयल इरोजन (मिट्टी का कटाव) और डेजर्टीफिकेशन (भूमि के बंजर होने की प्रक्रिया) के बारे में कोई बात नहीं करता. पी साईनाथ ने इसका कोई सीधा जवाब नहीं दिया. उन्होंने कहा कि उन्होंने किसान मजदूर कमीशन की सलाह दी है, जिसमें 30 सदस्य होंगे. इसमें हर वर्ग के लोग होंगे. यह कमीशन किसानों के प्रति जवाबदेह होगा.

बैंकों ने इस तरह किसानों को किया बर्बाद

पी साईनाथ ने बताया कि कैसे बैंक से लोन लेकर किसान बर्बाद हुए. उन्होंने बताया कि जब वह किसानों की आत्महत्या की रिपोर्टिंग कर रहे थे, तब एक बैंक के अधिकारी ने उन्हें बताया कि किसान ने कृषि ऋण लिया था, लेकिन बैंक ने उसे लांग टर्म लोन बना दिया. इसकी वजह से तेजी से ब्याज बढ़ा और किसानों पर कर्ज का बोझ इतना हो गया कि वे चुकाने की स्थिति में नहीं थे. इसलिए उन्हें आत्महत्या करनी पड़ी.

अरबपतियों के मामले में तीसरे नंबर पर भारत

बाद में वह स्टैन स्वामी की स्मृति में आयोजित व्याख्यानमाला में शामिल हुए. ‘जबानबंदी का शासन और मीडिया का नैतिक संसार’ विषय पर अपने व्याख्यान में भी उन्होंने किसान आंदोलन का जिक्र किया. उन्होंने बताया कि उदारीकरण के बाद देश में किस तरह से असमानता बढ़ी है. उन्होंने कहा कि उदारीकरण के पहले यानी 1991 में हमारे देश में कोई अरबपति नहीं था. आज 167 अरबपति हैं. अरबपतियों के मामले में हम विश्व में तीसरे नंबर पर हैं. सिर्फ कोरोना काल में हमारे देश में 40 से अधिक अरबपति बने. इनमें सबसे ज्यादा हेल्थ सेक्टर से जुड़े लोग हैं.

राजद्रोह कानून को और कड़ा करने की चल रही बात

अपने लेक्चर में श्री साईनाथ ने पत्रकारों और पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर भी चर्चा की. उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में पत्रकारों को भी कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ रहा है. कोरोना काल में एक पत्रकार को एपिडेमिक एंड डिजीजेज एक्ट 1897 के तहत गिरफ्तार किया गया. बाल गंगाधर तिलक देश के आखिरी पत्रकार थे, जिन्हें इस एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया था. उन्होंने कहा कि लॉ कमीशन ने राजद्रोह कानून को और कड़ा करने की मांग की है, यह चिंता का विषय है.

स्टैन स्वामी सबकी सुनते थे, समाधान देते थे : फादर टॉम

करीब दो घंटे के अपने लेक्चर में कई घटनाओं का जिक्र करते हुए पी साईनाथ ने बताया कि कैसे पुलिस और अधिकारी लोगों को परेशान करते हैं. स्वागत भाषण फादर सोलोमन ने दिया. उन्होंने कहा कि स्टैन स्वामी का मीडिया और न्यायपालिका में अटूट विश्वास था. फादर टॉम ने कहा कि फादर स्टैन स्वामी का मानना था कि सबको पूरी आजादी के साथ जीने का अधिकार है. वह लोगों की समस्या सुनते थे. उसका समाधान भी देते थे.

कार्यक्रम की अध्यक्षता रणेंद्र ने की

कार्यक्रम की अध्यक्षता जाने माने साहित्यकार रणेंद्र ने की. मंच का संचालन पीयूसीएल झारखंड के अध्यक्ष चंद्रशेखर भट्टाचार्य ने किया. कार्यक्रम को सफल बनाने में पीयूसीएल झारखंड के महासचिव अरविंद अविनाश, महासचिव शशि सागर वर्मा, आनंद, अशोक झा, शैलेश व अन्य ने सक्रिय भूमिका निभायी.

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