रांची: संताल हूल को रोकने के लिए अंग्रेजों ने झारखंड के पाकुड़ में मार्टिलो टावर बनवाया था. मार्टिलो टावर का इतिहास काफी रोमांचक है. देश में क्रांति की शुरुआत 1857 से मानी जाती है, लेकिन झारखंड में दो साल पहले ही 1855 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बज उठा था, जिसे संताल हूल कहा गया. महाजनी व्यवस्था को लेकर अंग्रेजी शासन के विरुद्ध संताल क्रांतिकारी सिदो-कान्हू और चांद-भैरव (चारों भाइयों) के नेतृत्व में लगभग 50 हजार आदिवासियों ने 30 जून 1855 को भारत में प्रथम क्रांति का बिगुल फूंका था. क्रांति के बाद अंग्रेजों ने साहेबगंज से भाग कर पाकुड़ में शरण ली थी.
मार्टिलो टावर से अंग्रेजों ने 10 हजार संताल विद्रोहियों को रोका था
हूल के खिलाफ मार्शल लॉ भी लगाया गया था. ब्रिटिश इंपायर की रक्षा के लिए 1855 में संताल विद्रोह के समय पाकुड़ के 10वें अनुमंडल पदाधिकारी सर मार्टिन ने रातोंरात पाकुड़ में मार्टिलो टावर का निर्माण कराया था. अंग्रेजों द्वारा बनवाये गये इस टावर के 162 वर्ष बीत चुके हैं. इसमें 52 छिद्र हैं. जिसके माध्यम से अंग्रेजों ने फायरिंग कर उस दौरान तकरीबन 10 हजार संताल विद्रोहियों को रोका था. इसमें सैंकड़ों क्रांतिकारी शहीद हुए थे. मार्टिलो टावर से एक ओर जहां अंग्रेज गोलियों की बौछार करते थे, वहीं संताल क्रांतिकारी अपने बचाव में महज पारंपरिक हथियार तीर-धनुष पर ही आश्रित थे.
मार्टिलो टावर में आज भी हैं तीर के निशान
जब क्रांतिकारी अंग्रेजों की ओर बढ़ते थे, अंग्रेजी सैनिक टावर में घुस कर क्रांतिकारियों पर गोलियों की बौछार कर देते थे. अंग्रेजी सेना की गोलियों के जवाब में क्रांतिकारियों द्वारा चलाये गये तीर के निशान आज भी मार्टिलो टावर में मौजूद हैं. मार्टिलो टावर पर्यटन के दृष्टिकोण से काफी अच्छा है. काफी संख्या में पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, छत्तीसगढ़ सहित अन्य क्षेत्रों से सैलानी यहां पहुंचते हैं. हर पर्यटक मार्टिलो टावर का इतिहास जानने को उत्सुक रहता है.