24.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Guru Purnima 2023: गुरु वही जो अपने शिष्य से हार जाये

Guru Purnima 2023: गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा और वेद व्यास जयंती के नाम से भी जाना जाता है. वेद व्यास महर्षि पराशर और सत्यवती के पुत्र हैं. उन्होंने मानव जाति को पहली बार चार वेदों का ज्ञान दिया था, इसलिए उनको मानव जाति का प्रथम गुरु माना जाता है.

Guru Purnima 2023: हर वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को गुरु-पूर्णिमा मनायी जाती है. सनातन धर्म में गुरु को भगवान से भी श्रेष्ठ दर्जा प्राप्त है, क्योंकि गुरु ही भगवान के बारे में बताते हैं और इनके बिना ब्रह्मज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती है. आषाढ़ पूर्णिमा के दिन वेद व्यासजी का जन्म हुआ था, इसलिए गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा और वेद व्यास जयंती के नाम से भी जाना जाता है. वेद व्यास महर्षि पराशर और सत्यवती के पुत्र हैं. उन्होंने मानव जाति को पहली बार चार वेदों का ज्ञान दिया था, इसलिए उनको मानव जाति का प्रथम गुरु माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार, व्यासजी को तीनों काल का ज्ञाता भी माना जाता है, जिन्होंने महाभारत ग्रंथ, ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद, अट्ठारह पुराण, श्रीमद्भागवत और मानव जाति को अनगिनत रचनाओं का भंडार दिया है. गुरु पूर्णिमा की शुरुआत व्यासजी के पांच शिष्यों ने की थी.

गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाये

कबीरदासजी ने लिखा है- ‘‘गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाये, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो मिलाये।’’ कबीरदासजी का यह दोहा भारत के महान गुरु-शिष्य परंपरा के प्रति सम्मान को दर्शाता है. गुरु ही अपने ज्ञान से शिष्य को सन्मार्ग पर ले जाता है. गुरु का वास्तविक अर्थ तो यही ध्वनित होता है कि जो जीवन में गुरुता यानी वजन-शक्ति बढ़ाये. यह भौतिक पदार्थों से नहीं, बल्कि सत-शास्त्रों के निरंतर अध्ययन और चिंतन-मनन से ही संभव है. बाहरी गुरु से धोखा हो सकता है, लेकिन सत्साहित्य से व्यक्ति निरंतर वजनदार होता जाता है. सच तो यह है कि हर मनुष्य ‘गोविंद’ बन कर ही जन्म लेता है. यही कारण है कि शिशु को जन्म देते ही एक मां को ईश्वर को पाने जैसा सुख मिलता है. कबीर कहते हैं कि भगवान और गुरु दोनों साथ मिलें, तो गुरु के चरणों में समर्पित हो जाना चाहिए. जिस गुरु की ओर कबीर का संकेत है, उस गुरु के दो चरण हैं- पहला चरण ‘बुद्धि’ और दूसरा ‘विवेक’ है. जिसने भी गुरु के इन चरणों को मजबूती से पकड़ लिया, उसका गुरुत्व और गुरुत्वाकर्षण बढ़ जाता है.

गुरु को बाह्यजगत में तलाशने के बजाय अंतर्जगत में ही तलाशना पड़ेगा

धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष उसी ओर खींचे चले आते हैं. इस गुरु को बाह्यजगत में तलाशने के बजाय अंतर्जगत में ही तलाशना पड़ेगा. इस गुरु को पाने के लिए मां के गर्भ में नौ माह पोषित होते समय स्नेह, प्रेम, करुणा, दया, आत्मीयता एवं आनंद की जो अनुभूति हुई, उसी को जीवन मे विकसित करने की जरूरत है. ये सारे गुण व्यक्ति के गुरुत्व को बढ़ाते हैं. गुरु के लिए कहा भी गया है कि गुरु वही जो अपने शिष्य से हार जाये. अंतर्जगत का यह गुरु सच में हर पल हारता है. एक-एक उपलब्धि, ऋद्धि-सिद्धि-समृद्धि देने के बावजूद उसे लगता है कि कुछ और देना बाकी है. कठिनाई यही है कि इसे पाने का स्थान कहीं है और तलाश कहीं और हो रही है. मुठ्ठी बांध कर जन्म लेते समय बच्चा इसीलिए रोता है कि मां के गर्भ में जो अनमोल रत्न मिला, जिसे वह मुठ्ठी में बांधकर संसार में आया, वहां इसकी जरूरत ही नहीं. अंत में सब गंवा के खाली हाथ ही लौटना पड़ता है.

गोस्वामी तुलसीदास को इसका आभास जन्म के समय ही हो गया था

गोस्वामी तुलसीदास को इसका आभास जन्म के समय ही हो गया था. लिहाजा वे रोने के बजाय ‘राम’ बोल पड़े. ढाई अक्षर के इस राम-नाम ने उन्हें अमरत्व प्रदान किया. इसलिए गुरु के लिए सर्वश्रेष्ठ मंत्रवाक्य ‘शीश कटाए गुरु मिले तो भी सस्ता जान’ शत-प्रतिशत सही है. यह ‘शीश’ अहंकार का है, जिससे मान-सम्मान, चर्चा-ख्याति के लिए नकारात्मक कार्य करने पड़ते हैं और न जाने कितनी ऊर्जा व्यर्थ में गंवा देनी पड़ती है.

Also Read: Sawan 2023: इस बार सावन में लग रहा भक्ति का मलमास, दो अमावस्या और दो पूर्णिमा होंगे, जानें महत्वपूर्ण बातें
Also Read: Sawan 2023: सावन दो महीने का, जानें कौन से सोमवार व्रत रखने हैं और कौन से नहीं? 4 सोमवारी व्रत ही होंगे मान्य

सलिल पांडेय

अध्यात्म लेखक, मिर्जापुर

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें