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PHOTOS: चार जुलाई से सावन शुरू, यहां पढ़ें कोल्हान के शिव मंदिर की पूरी डिटेल्स

इस साल चार जुलाई से सावन शुरू हो रहा है. अगर आप भी किसी प्रसिद्ध शिव मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना की योजना बना रहे हैं, तो कोल्हान बेहतर विकल्प है. यहां महादेवशाल बाबा मंदिर के साथ कई अन्य मंदिर हैं, जहां देश के लाखों श्रद्धालु बाबा भोलेनाथ के द्वार पर माथा टेकते हैं.

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19 साल बाद खास संयोग 
श्रद्धालुओं पर बरसेगी कृपा

Shravani Mela 2023: 19 साल के बाद इस बार सावन दोमास का हो रहा है. दरअसल, अधिमास के कारण सावन दो माह (59 दिन) का होगा. मलमास के कारण श्रद्धालुओं पर भगवान शिव के साथ भगवान विष्णु की कृपा बरसेगी. सावन चार जुलाई को शुरू होकर 31 अगस्त को समापन होगा. इस बार 18 जुलाई से 16 अगस्त तक सावन मलमास रहेगा.

इस बार सावन में आठ सोमवार

पहला सोमवार : 10 जुलाई

दूसरा सोमवार : 17 जुलाई

तीसरा सोमवार : 24 जुलाई

चौथा सोमवार : 31 जुलाई

पांचवां सोमवार : 07 अगस्त

छठा सोमवार : 14 अगस्त

सातवां सोमवार : 21 अगस्त

आठवां सोमवार : 28 अगस्त.

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खंडित बाबा व जंगली बाबा के नाम से मशहूर ‘महादेवशाल’

पश्चिमी सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर-पोड़ाहाट अनुमंडल के गोइलकेरा प्रखंड से तीन किलोमीटर दूर महादेव साल धाम में खंडित शिवलिंग है. सावन में यहां भक्तों का सैलाब उमड़ता है. बोल बम और बाबा भोलेनाथ की जय-जयकार से क्षेत्र एक महीने तक गूंजता रहता है. दरअसल, बंगाल से झारखंड होते हुए बंबई (मुंबई) तक रेल लाइन बिछाने का काम चल रहा था. इस खुदाई के दौरान शिवलिंग निकल आया, तो मजदूरों ने काम रोक दिया. ब्रिटिश इंजीनियर रॉबर्ट हेनरी ने खुद फावड़ा लेकर शिवलिंग पर दे मारा. शिवलिंग खंडित हो गया. कहा जाता है कि थोड़ी देर बाद इंजीनियर की मौत हो गयी. इसके बाद रेलवे लाइन घुमा कर ले जाना पड़ा.

कैसे पहुंचें : खंडित बाबा व जंगली बाबा के नाम से मशहूर बाबा महादेवशाल धाम तक आने के लिए सड़क व रेल मार्ग की सुविधा है. सावन में रेल मंडल की ओर से करीब छह जोड़ी पैसेंजर व एक्सप्रेस ट्रेनों का ठहराव होता है. सड़क मार्ग से चक्रधरपुर एनएच 320 डी में 39 किलोमीटर पर धाम मिलेगा. चाईबासा व जमशेदपुर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए वाया चक्रधरपुर होकर ही धाम तक पहुंचना होगा. ओडिशा के श्रद्धालुओं के लिए मनोहरपुर से 39 किलोमीटर की दूरी तय कर धाम पहुंचा जा सकता है.

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रामगढ़ शिव मंदिर : पूरी होती है भक्तों की मनोकामना

सरायकेला-खरसावां जिला अंतर्गत खरसावां प्रखंड मुख्यालय से तीन किमी दूर रामगढ़ गांव के शिव मंदिर के प्रति लोगों में भारी आस्था है. मान्यता है कि यहां सच्चे हृदय से मांगी गयी हर मन्नत पूरी होती है. सावन में भक्तों भीड़ उमड़ती है. यहां स्वयंभू शिवलिंग है. मंदिर की स्थापना के संबंध में कहा जाता है कि राजा राजवाड़े के समय से मंदिर में पूजा-अर्चना हो रही है. समय के साथ मंदिर का स्वरूप भी बदलता गया. आज यहां भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है. मंदिर के बाहर नंदी महाराज के पाषाणकालीन मूर्ति भक्तों में कौतूहल पैदा करती है. भक्त नंदी महाराज की मूर्ति पर जलाभिषेक या दुग्धाभिषेक करना नहीं भूलते हैं. लोगों में इस मंदिर के प्रति अटूट श्रद्धा व विश्वास है. भक्तों का मानना है कि यहां से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता है.

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गालूडीह के झाटीझरना में हल चलाते वक्त 
मिला था शिवलिंग

पूर्वी सिंहभूम जिले के गालूडीह थाना क्षेत्र की झाटीझरना पंचायत में पहाड़ों के बीच काशीडांगा प्राचीन शिव मंदिर ऐतिहासिक है. यहां मकई की खेती के लिए हल जोतते समय 1936 को शिवलिंग मिला है. यहां के लोग शिव भगवान की पूजा कर रहे हैं. पहले झोपड़ी बनाकर पूजा शुरू की गयी. विधिवत 1938 से पूजा शुरू हुई. पहले साल में एक बार चड़क पूजा के वक्त पूजा होती थी. अब 12 माह पूजा होती है. सावन में यहां झारखंड और बंगाल के भक्तों का मेला लगता है. यहां होपना हेब्रम पुजारी बने. उनके निधन के सोम हेंब्रम ने पूजा शुरू की. सोम हेंब्रम ने निधन के बाद उनके पुत्र चंद्र हेंब्रम पूजा कर रहे हैं.

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राजबाड़ी शिव मंदिर आस्था का केंद्र

पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला राजस्टेट राजबाड़ी के निकट प्राचीन शिव मंदिर आस्था का केंद्र है. धालभूम राजा रामचंद्र धवलदेव ने इसे स्थापित किया. बाद में भव्य शिव मंदिर बना. उसी समय से राजा जगदीश चंद्र धवलदेव के पूर्वज व राजा जगदीश चंद्र देव इस मंदिर में पूजा करते आ रहे थे. 1947 में भारत स्वतंत्र होने के बावजूद राजा के परिवार व यहां के आसपास के ग्रामीण भगवान शिव के मंदिर में पूजा करते आ रहे हैं. आज भी यहां पर लोग सावन माह में विशेष रुप से पूजा करते हैं. यहां दूर दराज से भी ग्रामीण आते हैं. ग्रामीणों ने बताया कि घाटशिला का सबसे प्राचीन शिव मंदिर है. उदित नारायण देव की विधवा पत्नी गौरी नारायण देव की करीब 100 वर्ष आयु है. वह कहती हैं राजा रामचंद्र धवल देव जब धालभूमगढ़ के राजा थे और राजपाट संभाले थे तो उन्हीं ने मंदिर बनाया था.

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हाकुइयम : प्रकृति की गोद 
में जलाभिषेक का आनंद

पश्चिमी सिंहभूम जिले के झींकपानी में इली नदी के तट पर स्थित हाकुइयम शिव मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है. वहीं प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण यह रमणीक स्थल है. चट्टानों के बीच बहती नदी व लगभग 60 फीट ऊंचाई से गिरता पानी देखने लोग खींचे चले आते हैं. सावन में हाकुइयम में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ती है. यहां की प्राकृतिक सुंदरता को लोग निहारते रह जाते हैं. यह अध्यात्म का केंद्र बिंदु भी है. कैसे पहुंचें : झींकपानी से नवागांव होते हुए हाकुइयम तक सीधे पहुंचा जा सकता है. इसकी दूरी छह किलोमीटर है.

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400 साल पुराना है बुद्धेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास

सरायकेला-खरसावां जिले के कुदरसाई स्थित बुद्धेश्वर महादेव शिव मंदिर का इतिहास 400 साल पुराना है. सरायकेला रियासत के के समय मंदिर बना था. राजा और उनके परिवार के मुख्य सहयोगियों के लिए क्षेत्र में महल बनवाया गया था. तत्कालीन राजा ने इसके पूर्व बाबा बुद्धेश्वर शिवलिंग की स्थापना की थी. सावन मास में भक्तों का तांता लगा रहता है. ऐसे पहुंचें : सरायकेला गैरेज चौक बस स्टैंड से जेल रोड होते हुए कुदरसाई मोड़ पहुंचाना पड़ता है. मोड़ से 200 मीटर की दूरी पर भगवान बुद्धेश्वर महादेव का भव्य मंदिर है.

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300 साल पुराने चित्रेश्वर शिव मंदिर के प्रति अटूट आस्था

पूर्वी सिंहभूम जिले के बहरागोड़ा प्रखंड में चित्रेश्वर शिव मंदिर 300 साल प्राचीन और ऐतिहासिक है. सावन माह में भक्तों का मेला लगता है. यहां झारखंड, बंगाल, बिहार और ओडिशा के कावंड़िए पहुंचते हैं. खासकर सोमवार को हजारों की संख्या में लोग जलाभिषेक करने पहुंचते हैं. मंदिर के पास एक तालाब है, जहां श्रद्धालुओं ने नहाने के बाद पानी डालने मंदिर जाते हैं. चित्रेश्वर मोड़ से शिव मंदिर तक सड़क बिल्कुल जर्जर है. मंदिर में पानी की भी समस्या है. चित्रेश्वर का मुख्य गेट बरसों पहले से अधूरा है.

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200 साल प्राचीन है गालूडीह का बूढ़ा बाबा शिवालय

पूर्वी सिंहभूम जिले के गालूडीह स्थित बंगाली पाड़ा में बूढ़ा बाबा प्राचीन शिव मंदिर दो साल से अधिक पुराना है. यहां के पुजारी विश्व मोहन चटर्जी हैं. वे कहते हैं यह शिवालय ऐतिहासिक है. अब पक्का मंदिर बन गया है. यहां सावन में भक्तों की भीड़ रहती है. जलाभिषेक व रुद्राभिषेक होता है. एक माह कई तरह के धार्मिक अनुष्ठान होते हैं. यहां मन्नत मांगने आते हैं. इस मंदिर में शिवरात्रि के अवसर पर काफी भीड़ होती है. खास कर बंगाली समुदाय के लोगों का इस मंदिर का विशेष आस्था है.

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जयदा में पूजा कर कांवरिये जाते हैं बाड़ेदा शिव मंदिर

सरायकेला-खरसावां जिले के चांडिल स्थित प्राचीन कालीन जयदा शिव मंदिर आस्था का प्रमुख केंद्र है. कहा जाता है कि 18वीं व 19वीं सदी के मध्यकालीन दिनों में केरा (वर्तमान खरसावां) महाराज जयदेव सिंह के सपने में बाबा आये. उन्होंने ईचागढ़ के राजा विक्रमादित्यदेव को जयदा बूढ़ा बाबा के बारे में जानकारी दी. ईचागढ़ राजा की देखरेख में जयदा मंदिर बनना शुरू हुआ. वर्ष 1966 में यहां जूना अखाड़ा के बाबा ब्रह्मानंद सरस्वती का आगमन हुआ. इसके बाद मंदिर का निर्माण संपन्न हुआ. यहां से श्रद्धालु जल उठाकर बंगाल के पुरुलिया में एनएच 32 किनारे प्राचीन कालीन बाड़ेदा शिव मंदिर में जाते हैं.

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दलमा बाबा : 3000 फीट ऊंची चोटी पर मंदिर

एनएच-33 (रांची-जमशेदपुर मार्ग) किनारे स्थित दलमा पहाड़ हाथियों के लिए संरक्षित है. यहां पहाड़ पर 3000 फीट ऊंचाई पर भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है. एक गुफा में भगवान शिव का मंदिर है, जिसे लोग प्राकृतिक मंदिर बताते हैं. लोग इन्हें दलमा बाबा के नाम से पुकारते हैं. सावन में यहां श्रद्धालुओं की बीड़ रहती है. मंदिर के बारे में एक दंतकथा प्रचलित है कि माता मंदिर से शिवलिंग तक गुफा थी. एकबार पूजा के बाद पुजारी गुफा से बाहर निकले, लेकिन अपना हथियार अंदर भूल गये. उन्होंने हथियार लाने के लिए बेटी को अंदर भेजा, लेकिन बेटी वापस नहीं आयी. इसके बाद शिवलिंग तक जाने वाली गुफा बंद हो गयी.

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मुर्गा महादेव : वनवास के समय पहुंचे थे श्रीराम

मुर्गा महादेव मंदिर कोल्हान के तीनों जिले व ओडिशा के कई जिलों के लोगों की आस्था का केंद्र है. जिसका वास्तविक नाम बाबा मृगेश्वर महादेव मंदिर है. यहां सावन में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. कहा जाता है कि ओडिशा के जोड़ा प्रखंड निवासी एक दंपती ने मंदिर का निर्माण कराया था. अंग्रेजों ने अपने शासनकाल में शिव लिंग चुराने का प्रयास किया था, लेकिन वह कामयाब नहीं हो पाए थे. इस मंदिर को लेकर और भी कई दंत कथाएं प्रचलित हैं. भगवान श्री राम अपने वनवास काल में विश्राम के लिए रुके थे. यहां शिवलिंग की स्थापना कर पूजा की थी. मंदिर के आस पास हिरणों की संख्या काफी थी. श्री राम ने इस शिव लिंग को बाबा मृगेश्वर महादेव कहा था.

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ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बहारोगाड़ा का कामेश्वर शिव मंदिर

पूर्वी सिंहभूम जिले के बहरागोड़ा की पाथरी पंचायत स्थित मोहुलडांगरी स्थित कामेश्वर शिव मंदिर ऐतिहासिक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है. मंदिर में सावन को लेकर विशेष तैयारी चल रही है. ऐतिहासिक दृष्टि व राजवंशों से जुड़े अवशेष क्षेत्र से प्राप्त होते हैं. कुछ हिस्सा सुवर्णरेखा नदी में समा गया. कहा जाता है कि लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व सुवर्णरेखा के बीच कामाराआड़ा नामक गांव था. कलिंग विजय अभियान के क्रम में अशोक सम्राट की छावनी इसी गांव में लगी थी. उसके बाद पाल वंश के शासन काल में मंदिर की सजावट की गयी. वर्ष 1912 की बाढ़ के बाद धीरे-धीरे 1920 में मंदिर विलुप्त हो गया. उक्त शिवलिंग को यहां लाकर स्थापित किया गया था.

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बहरागोड़ा का कपिलेश्वर शिव मंदिर

पूर्वी सिंहभूम जिले के धालभूमगढ़ प्रखंड स्थित कोकपाड़ा स्थित प्राचीन व ऐतिहासिक कपिलेश्वर जीउ शिव मंदिर आस्था का केंद्र है. मंदिर में स्वतः निकला शिवलिंग है. सावन में कांवरियों का रेला लगता है. पर्यटन स्थल घोषित होने के बाद भी इसका जीर्णोद्धार नहीं हुआ है. कहा जाता है कि 800 साल पहले यहां शिवलिंग मिला था. पुजारी व सेवायत तपन कर ने बताया कि मयूरभंज राजा के अधीन यहां सैकड़ों गायों का गोकुल था. इनका दूध मयूरभंज राज परिवार में भेजा जाता था. एक गाय एक पत्थर पर खड़ी हो जाती है. स्वतः दूध निकलने लगता है. खुदाई करने पर वहां वर्तमान शिवलिंग प्राप्त हुआ. जाजपुर से तपन कर के पुरखों को यहां पुजारी नियुक्त किया गया.

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सुवर्णरेखा व शंख नदी के संगम पर है देवलेश्वर मंदिर

पूर्वी सिंहभूम जिले में सुवर्णरेखा और शंख नदी के संगम स्थल देवली में देवलेशवर मंदिर सबसे पुराने शिव मंदिर के रूप में जाना जाता है. प्राचीन मान्यताओं के अनुसार यह मंदिर महाभारत काल का है. जयद्रथ ने यहां भगवान शिव की आराधना की थी. भगवान शिव उनके आराधना से प्रसन्न हुए थे. मंदिर का पुनर्निर्माण 1978 में स्थानीय लोगों ने किया है. सावन के सोमवार को दूर-दूर के लोग जल चढ़ाने आते हैं. मंदिर के अगल-बगल खुदाई के दौरान प्राचीन मंदिर के कई अवशेष मिले हैं. उन्हें मंदिर परिसर में रखा है. मंदिर के आस पास खुदाई करने पर आज भी पुराने मंदिर के अवशेष निकलते हैं. सावन में शिवभक्त जला अभिषेक करते हैं.

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जादूगोड़ा का बाबा सिद्धेश्वर शिव मंदिर

पूर्वी सिंहभूम जिले के जादूगोड़ा के पास सिद्धेश्वर पहाड़ पर शिव मंदिर है. यह हाता-मुसाबनी मुख्य मार्ग से कुछ मीटर की दूरी पर मुख्य सड़क से 2000 फीट उंची पहाड़ पर है. सिद्धेश्वर बाबा का शिव मंदिर अटूट आस्था का केंद्र है. इस शिवलिंग का इतिहास बरसों पुराना है. माना जाता है कि यहां जलाभिषेक करने से सारी मनोकामना पूर्ण हो जाती है. इस मंदिर में सावन में बंगाल, झारखंड व ओडिसा से भक्त जलाभिषेक करने आते हैं. मंदिर पहाड़ी पर होने के कारण पर्यटकों के लिए दर्शनीय स्थल है. मंदिर के आसपास मनमोहक दृश्य है. मंदिर का निर्माण सन 1987 में गालूडीह प्राचीन रंकिणी मंदिर के संस्थापक मुख्य पुजारी विनय दास बाबाजी द्वारा किया गया. समिति के सदस्यों ने बताया कि अभी तक मंदिर में सीढ़ी का निर्माण नहीं हो पाया है.

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पांच माह तक नहीं होंगे मांगलिक कार्य

इस बार चातुर्मास पांच महीने का है, इसलिए पांच माह तक कोई मांगलिक कार्य नहीं हो पायेगा. देवशयनी एकादशी से चातुर्मास का प्रारंभ होता है. इस साल देवशयनी एकादशी 29 जून को था. इस दिन से भगवान विष्णु चार माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं, लेकिन इस साल चातुर्मास के दौरान अधिमास है, जिससे पांच माह के लिए चातुर्मास होगा. भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी को योग निद्रा से बाहर आयेंगे, तब चातुर्मास का समापन होगा. देवउठनी एकादशी 23 नवंबर को है. इस तरह से चातुर्मास 29 जून से लगेगा और 23 नवंबर को खत्म हो जायेगा.

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