बिहार में शिक्षक नियोजन में दूसरे राज्यों के निवासियों को अवसर देने को लेकर चल रहे आंदोलन के बीच सरकार ने अभ्यर्थियों में फैले भ्रम को दूर करने की कोशिश की है. मुख्य सचिव आमिर सुबहानी ने सोमवार को शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के साथ इसको लेकर स्थिति स्पष्ट की. उन्होंने बताया कि 1991 में तैयार की गयी थी. इस नियमावली के आधार पर बिहार लोक सेवा आयोग की ओर से वर्ष 1994, वर्ष 1999 और वर्ष 2000 में बिना किसी भेदभाव के शिक्षकों का नियोजन किया गया था.
मुख्य सचिव ने बताया कि संविधान का अनुच्छेद 16 का (सेक्शन-2) कहता है कि राज्य के अधीन किसी भी नियोजन में धर्म, जाति, जन्मस्थान, निवास स्थान या अन्य किसी आधार पर कोई भी नागरिक अपात्र नहीं होगा. अगर कोई राज्य ऐसा करता है तो वह पूरी तरह से असंवैधानिक और गैर कानूनी होगा.
मुख्य सचिवालय में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में मुख्य सचिव ने बताया कि हाल ही में सरकार ने नियमावली में संशोधन करके अभ्यर्थियों के लिए बिहार के निवासी होने की शर्त को हटा दिया. इस शर्त को रखना व्यावहारिक और विधि सम्मत नहीं था. राज्य की नागरिकता के आधार पर अभी तक किसी पड़ोसी राज्य ने भी ऐसी जानकारी नहीं दी है. शिक्षक नियुक्ति में 50 प्रतिशत सीटों पर दूसरे राज्यों के नहीं सिर्फ बिहार के अभ्यर्थियों को आरक्षण का लाभ मिलेगा.
मुख्य सचिव ने बताया कि वर्ष 2012 की नियमावली के आधार पर बिहार में शिक्षकों की नियुक्ति की गयी थी. उसमें एक लाख 68 हजार शिक्षकों का नियोजन हुआ था. उस नियोजन में सिर्फ 3413 अभ्यर्थी ही दूसरे राज्य के नियोजित हुए थे. शिक्षकों की नियुक्ति में देश के नागरिकों के लिए नियोजन का रास्ता खोला गया है फिर भी बाहरी लोगों के चयन की संभावना कम है. बिहार के छात्रों में विज्ञान और गणित की बहुत मेधा है. मेधा की बिहार में कमी नहीं है.
मुख्य सचिव ने बताया कि डोमिसाइल की नीति के कारण पटना हाइकोर्ट में दर्जनों रिट याचिका दायर की गयी है जिसमें जवाब देने में परेशानी हो रही थी. जब डोमिसाइल के बिंदु उजागर हुए तो पूर्व की नियमावली में संशोधन किया गया है. राज्य में हो रहे धरना, प्रदर्शन की घटनाओं को लेकर उन्होंने कहा कि सरकारी सेवक की अनुशासनहीनता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. चाहे वह शिक्षक हों या कोई भी अन्य सरकारी सेवक.
शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने शिक्षक नियोजन नियमावली में डोमिसाइल नीति को लेकर बताया कि अगर कोई राज्य अपनी नियमावली या गाइडलाइ में ऐसा क्लॉज डालता है तो उसे हाइकोर्ट का सामना करना पड़ा. उसे कोर्ट में चैलेंज किया गया है. हाइकोर्ट द्वारा ऐसे प्रावधान को निरस्त किया है या सरकार अपील में भी गयी तो सुप्रीम कोर्ट में हार का सामना करना पड़ा है. अगर कोई राज्य ऐसा करते हैं तो वह मुकदमे के लिए तैयार रहें. बिहार में यह मामला प्रकाश में आने पर पहले ही सुधार कर लिया गया.