कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल एमजीएम का बजट करोड़ों में हैं. मंत्री से लेकर अस्पताल प्रबंधन तक बेहतर व्यवस्था की बात करते हैं. इसके बावजूद हर दिन यहां की व्यवस्था की बदहाल तस्वीरें सामने आती रहती हैं. यह स्थिति तब है, जब राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता भी इसी शहर से हैं.
हालांकि, जिला प्रशासन का दावा है कि अस्पताल चकाचक और सुविधाओं से लैस है, जबकि सोमवार की घटना ने एक बार फिर एमजीएम की अव्यवस्था की पोल खोल कर रख दी. एंबुलेंस से इलाज के लिए पहुंचने वाले मरीजों को इमरजेंसी और वार्ड में ले जाने के लिए पर्याप्त संख्या में स्ट्रेचर तक नहीं हैं. सोमवार को हल्दीपोखर में सड़क हादसे में घायल तीन युवकों को इलाज के लिए एमजीएम लाया गया.
परिजन अस्पताल कर्मियों से स्ट्रेचर लाने को कहते रहे, लेकिन कोई सामने नहीं आया. करीब 15 मिनट तक वे स्ट्रेचर के लिए इमरजेंसी और वार्ड में दौड़ते रहे. जब स्ट्रेचर नहीं मिला, तो वे मरीजों और उनके परिजनों के बैठने के लिए लगे लॉबी वेटिंग चेयर को उठाकर एंबुलेंस के पास ले आये और उसी पर मरीज को लेटाकर इमरजेंसी में ले गये. थोड़ी देर बाद वार्ड से एक स्ट्रेचर लाया गया. वार्ड में जाने पर जानकारी मिली कि स्ट्रेचर पर मरीजों का इलाज किया जा रहा है.
इमरजेंसी वार्ड में बेड की कमी होने के कारण स्ट्रेचर का प्रयोग बेड के रूप में किया जा रहा है. अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में पांच स्ट्रेचर है, जिसे ऑपरेट करने के लिए हर शिफ्ट में तीन कर्मचारी की ड्यूटी है. वहीं, कपाली गैलेक्सी पब्लिक स्कूल की बेहोश हुई छठी कक्षा की छात्रा रफीजा परवीन (11 वर्ष) को उसके परिजन गोद में लेकर इमरजेंसी में लेकर गये और जमीन पर लेटाकर इलाज हुआ.
यह स्थिति तब है जब स्वास्थ्य विभाग अस्पताल को 60 -70 करोड़ रुपये प्रति वर्ष देता है. अस्पताल की स्थिति को सुधारने के लिए उपायुक्त विजया जाधव ने 35 सदस्यीय टीम का गठन किया है, जिन्हें संसाधन, साफ-सफाई, शौचालय, कर्मचारी, पेयजल समेत 16 बिंदुओं पर नजर रखने की जिम्मेदारी दी गयी है. टीम अस्पताल आती है. लेकिन सिर्फ खानापूर्ति कर चली जाती है.
अस्पताल में अचानक मरीजों की संख्या बढ़ जाने के कारण स्ट्रेचर पर मरीजों का इलाज किया जा रहा था. इस वजह से अस्पताल में स्ट्रेचर की कमी हो गयी थी. बाद में बेड खाली होने पर मरीज को उस पर शिफ्ट कर दिया गया. इसके बाद स्ट्रेचर खाली हो गये.